शरारती पंचम

शरारती पंचम

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पंचम सिंह बचपन से ही बहुत शरारती था। खुरापात करने में माहिर। बचपन में हम गाँव से दूर टुणीधार में गाय-बकरियां चराने के लिए जाने वाले ठैरै। पंचम सिंह वहाँ बैलों की लड़ाई कराने वाला ठैरा। उसकी इस आदत से उनका एक बैल रतिया बहुत ही लड़ाकू बन गया। वह जहाँ भी दूसरे बैलों को देखता, उनसे लड़ने के लिए दौड़ लगा देता। यहाँ तक कि वह आदमियों के भी पीछे पड़ जाने वाला ठैरा। आगे-आगे आदमी और पीछे-पीछे बैल को देखकर पंचम हँस-हँसकर लोट-पोट हो जाने वाला ठैरा।


एक दिन की बात है। फुन्नी कका अपने खेतों में बैल जोत रहे थे। खेत के ऊपर की चोटी में पंचम सिंह और हमारे बैल चर रहे थे। हल जोतने के बाद फुन्नी कका ने अपने बैल खोल दिये। पता नहीं फुन्नी कका के बैलों को जो हुआ होगा, वे जोर-जोर से हुआँ- हुआँ करने लगे। हुआँ- हुआँ की आवाज़ सुनकर पंचम के लड़ाकू बैल रतिया को जोश आ गया। उसने भी हुआँ- हुआँ करते हुए नीचे खेतों की ओर दौड़ लगा दी और मौका पाते ही अकेले दोनों बैलों से भिड़ गया।


रतिया दोनों बैलों से अकेले ही लोहा ले रहा था। देखते ही देखते वह दोनों बैलों पर भारी पड़ने लगा। फुन्नी कका जो डंडा खोज रहे थे, वे दौड़ते-दौड़ते आये और बैलों को छुड़ाने की कोशिश करने लगे। दो-चार डंडे उन्होंने रतिया की कमर में जमाये। रतिया को भी गुस्सा आ पड़ा। वह फुन्नी कका के बैलों को छोड़कर फुन्नी कका के पीछे दौड़ पड़ा। फुन्नी कका को दौड़ते-दौड़ते नानी याद आ गई। पंचम सिंह चोटी में बैठा हुआ ही-ही करके हँस रहा ठैरा। और साथ ही बैल की हौसला अफजाई भी कर रहा ठैरा- "शाबाश रतिया, शाबाश !"


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