शेर की दूसरी शादी
शेर की दूसरी शादी
उत्तराखंड के पहाड़ी जंगलों में एक ऐसा शेर रहता था। जिसके हाथों में सुबह शाम बांसुरी रहती थी। वह जंगल के सभी जानवरों को अपनी सुरीली आवाज में लोकगीत सुनाया करता था। पर उसमें एक कमी थी, वह अपनी शेरनी और घर के कामों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया करता था। शेरनी जो भीखाने-पीने का समान लाती थी, उसे वह सबसे ज्यादा खा जाता था। उसकी ऐसी हरकतों से दुखी होकर एक दिन शेरनी उसे छोड़ कर चली जाती है। शेर की गुफा के आगे रोज लोमड़ी और भालू बंदर का बच्चा खेलने आया करते थे। लोमड़ी और भालू बंदर के बच्चों को शेर के लोकगीत बहुत अच्छे लगते थे। और जब से शेरनी चली जाती है, शेर गुफा के आगे धूप में लेट कर बांसुरी बजा बजा कर रोने पीटने के गीत गाया करता था। उसके यह लोकगीत लोमड़ी बंदर भालू को बिल्कुल भी पसंद नहीं आते थे। वह चाहते थे, कि दोबारा शेर उसी सुरीली आवाज में खुशी और मनोरंजन के गीत सुनाए। इसलिए लोमड़ी एक रात को भालू बंदर के बच्चों के साथ मिलकर, खाने पीने का सामान बांध कर और नई पेंट कमीज पहनकर, भालू बंदर के बच्चों के साथ शेर की शेरनी को ढूंढने दूसरे जंगल निकल जाती हैं। लोमड़ी पेंट कमीज में बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर भालू और बंदर के बच्चों ने लाल रंग के निकर पीली कमीज पहन रखी थी, इस वजह से वह भी लोमड़ी जितने ही खूबसूरत लग रहे थे। सुबह जब यह दूसरे जंगल में पहुंचते हैं, तो इनके रंग रूप और सुंदर कपड़ों को देखकर बहुत से जानवर इकट्ठा हो जाते हैं। उनमें से कुछ सीटी मार मार कर लोमड़ी को छेड़ते हैं। थोड़ा आगे जाने के बाद एक बूढ़ा गीदड़ मिलता है, वह बंदर और लंगूर के बच्चों के लाल और पीले कपड़े देखकर सीटी मार कर अपने पास बुलाता है। और बूढ़े गीदड़ को इनसे बातों ही बातों में पता चलता है, कि यह उस गाने वाले शेर की शेरनी को ढूंढने आए हैं। बूढ़ा गीदड़ लोमड़ी बंदर भालू के बच्चों को उस शेरनी के गुफा के बाहर छोड़ देता है। लोमड़ी गुफा के बाहर खड़े होकर आवाज देती है। अंदर से शेरनी और उसकी मां बाहर आते हैं। शेर की दुखद कहानी शेरनी को और उसकी मां को सुनाती है। शेर की दुखद कहानी सुनकर शेरनी का दिल पसीज जाता है। पर लोमड़ी उसको ऐसे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं होती। लोमड़ी कहती है "कि हम बारात लेकर आएंगे और आपको यहां से सम्मान से लेकर जाएंगे" पर हम शेर को नहीं बताएंगे। शेरनी की मां उसी समय इनकी दावत का इंतजाम करती है। 7 तरह की मिठाई फल फूल आदि खाने के लिए देती है। फिर लोमड़ी और बंदर भालू शेरनी की मां और शेरनी को नमस्ते करके, शादी की तारीख तय करके वहां से चल देते हैं। रास्ते में थोड़ा आगे चलकर बंदर अपनी लाल लिखकर की जेब में से मिठाई निकालकर चुपचाप खाने लगता है। लोमड़ी उसे देखकर बहुत गुस्सा होती है। और कहती है " चोरी करना गलत बात है।" पर भालू भी अपनी जेब से मिठाई निकालता है, और खाने लगता है। पर दोनों को उस दिनअपनी गलती का एहसास हो जाता है। यह तीनों अपने जंगल आकर शेर को दूसरी शादी के लिए तैयार कर लेते हैं।
शेर बिना मन के शादी की तैयारियों में जुट जाता है। पर उसका वही दुखी रवैया रहता है। शादी वाले दिन शेर शादी करने से मना करता है।और कहता है की "मैं पैदल नहीं जाऊंगा इस डोली में बैठकर शादी करने जाऊंगा" लोमड़ी और बाकी जानवर कहते हैं, "इससे हमारी वहां बहुत मजाक उड़ेगी" पर शेर नहीं मानता। डोली को दो बूढ़े चिंपांजी उठाते हैं। जैसे ही बरात शेरनी के घर पहुंचती है, शेर डोली से उतरता है, तो शेरनी के जंगल के सारे जानवर पेट पकड़ पकड़ कर हंसते हैं। और दूल्हा शेरऔर पूरी बारात की मजाक उड़ाते हैं। शेर की और बारातियों की और मजाक उड़े हैं, अपमान हो, इसलिए उसे जंगल की एक बिल्ली शेर के खाने में नशे की जड़ी बूटी मिला देती है।शेर को खाना खाने के बाद जैसे ही नशा होता है, वह गाने गाने लगता है। और नाचाता है। शेर फेरे लेते हुए शेरनी के ऊपर गिर जाता है। कभी पंडित कभी रिश्तेदारों पर शेर गिरता पड़ता है। की शादी में गधा गयकार था। गीदड़ लंगूर बैंड बाजे बजाने वाले थे। शर्म और अपमान की वजह से, लोमड़ी और बाकी जानवर रात को ही शेरनी को डोली में बिठाकर, बरात अपने जंगल ले आते हैं। और सुबह शेर का जब नशा उतरता है। वह शेरनी को घूंघट उठा कर देखता है। तो खुशी से पागल हो जाता है। यह तो मेरी ही शेरनी है । उस दिन से शेर हंसी खुशी के लोकगीत गाना शुरू कर देता है। लोमड़ी गीदड़ भालू और बंदर के बच्चे रोज सुबह धूप में बैठ जाते थे। और शेर के लोकगीतों का आनंद उठाते थे। कहानी की शिक्षा- दूसरों के दुख बांटने से बहुत खुशी मिलती है। और अपना दुख कम हो जाता है।
