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Bhawna Kukreti Pandey

Others

4  

Bhawna Kukreti Pandey

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शायद-2

शायद-2

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सुबह के 4 बजने वाले थे चिड़ियों की चहचहाहट शुरु हो रही थी।अपनी अपनी कहते दोनो दो छोर पर स्लब से लगे स्टैंडीँग पिलर का सहारा लिये सो गये थे।


"तन्वी उठो सुबह होने वाली है " प्रियम शाह ने तन्वी का सर सहलाते हुए कहा। तन्वी रुचिर का सपना देख रही थी।मुस्कराई और बुदबुदाई," रुचिर, ऐसे ही रहो न !" प्रियम उसकी मुस्कान देख रहे थे। वो कुछ देर वहीँ बैठ गये। कुछ देर सिग्रेट मे समय निकाला।जब देखा सूरज क्षितिज पर आ रहा है। उन्होने फिर तन्वी को जगाया ।इस बार थोड़ा जोर से कहा " तन्वी जी उठिए सुबह हो गई।" तन्वी हड़बड़ा कर उठी।


मेस्स मे नाश्ते के दौरान प्रियम और तन्वी मे कोई संवाद नहीं हुआ। प्रियम कुछ अनमने से लग रहे थे।मयंक ने तन्वी के पास अपनी ट्रे लाकर कहा " सर का मूड कल शाम से कुछ उखड़ा उखड़ा सा लग रहा है", " हम्म" तन्वी ने एक कौर मुहँ मे डाला।" चलो ये देखो।" कहते हुए उसने मोबाइल पर कल शाम खिंची तस्वीर दिखायी।" एक फ्रेम मे कितने एमोशन!!", तन्वी ने देखा वाकई बहुत अच्छी तस्वीर थी।बैकग्राउंड मे निवेदीता और सर की बनाई पैंटींग और फ़्रंट मे मयंक, तन्वी और प्रियम शाह। सबके चेहरे पर अलग एमोशन थे। " जल्दी करो तुम दोनो।" प्रियम सर ने मेस्स से बाहर जाते हुए कहा।


प्रियम पूरे सेमिनार बुझे बुझे से रहे। मयंक ने एक दो बार तन्वी से पूछा की कोई बात है क्या ? पर तन्वी भी खुद हैरान थी की उस रात तो सर ने अपने और निवेदीता के बारे मे , स्ट्रगल के बारे मे , परिवार के सपोर्ट , खुल कर जीने वगैरह के बारे मे बताया था। तो क्यूँ वो इतने बुझे से हैं।


सेमिनार से लौटने के बाद प्रियम शाह को अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम मे जाना था।उन्होने मयंक और तन्वी को अपनी संस्था की जिम्मेदारी देदी।अब अक्सर प्रियम शाह, मयंक और तन्वी को जिम्मेदारी देकर चले जाते। जब जब लौटते तो दोनो के लिये कुछ उपहार भी लाते।मयंक को गजेट का शौक था तो उसके लिये उसी तरह के होते पर तन्वी को वो बस ब्रशेस, कलर लाकर देते।


सुबह सुबह तन्वी के दरवाजे की डोरबेल बजी। उसने देखा रुचिर था।" तुम इतनी सुबह?" तन्वी हमेशा रुचिर को सामने पा दिल के हाथों मजबूर हो जाती थी।उसे उम्मीद नहीं थी की पिछली आखिरी मुलाकात और मेसेज के बाद कभी रुचिर उस से खुद रुबरू होना चाहेगा।पर उसे देख वो अपनी नाराजगी भूल गई ।


रुचिर, तन्वी के सामने बहुत उदास सर पकडे बैठा हुआ था।शुरु शुरु मे जब वो परेशां होता था तो तन्वी के पास आकर उसके सानिध्य मे रह सुकून पा लेता था । तन्वी तन्हा तो थी मगर उसके मन ने सिर्फ रुचिर को ही अपना माना था सो उसने उसे प्यार से चाय नाश्ता कराया। शायद रात भर का जागा था। वहीँ सोफे पर पड़ा पड़ा सो गया। तन्वी जब नहा धो कर तैयार होकर अप्ने कमरे से बाहर आई देखा वो सिकुड़ कर सोया हुआ था ।सोता हुआ कितना रिलैक्स लग रहा था ।उस वक्त रुचिर वो रुचिर लग रहा था जो कभी तन्वी से मिला था। उसने उसे लिहाफ़ लाकर उढाया। रुचिर ने नींद भरी आँखों से उसे देखा और कहा " आज कहीं मत जाओ प्लीज " ये कह कर उसने तन्वी का हाथ पकडा। तन्वी को देर हो रही थी , चाबी उसी के पास थी और आज प्रियम सर एयरपोर्ट से सीधे ओफ्फिस आने वाले थे।"प्लीज तन्वी ", तन्वी ने रुचिर को देखा "ओके । एक मिनट।" तन्वी ने मयंक को फोन किया की वो आकर की ले ले , वो आज नही आयेगी उसकी तबियत ठीक नही लग रही। तन्वी वहीँ सोफे पर बैठ गयी रुचिर तन्वी के गोद मे सर रख कर उसे पकड़ कर सो गया। तन्वी उसके बालों मे उंगलियां फिराती उसे देख बीते खूबसूरत पलों को सोचने लगी। रुचिर ने काफी दिन से शेव नहीं किया था। कपड़े भी मिस मैच पहने थे । कभी जीन्स पर लैदर शू नही पहनता था। किसी बात से परेशान है । तन्वी का मन भी परेशान हो उठा। उसने रुचिर को देखा और उसके माथे पर प्यार से चूमा।


" अम सॉरी सॉरी, दरवाजा खुला था तो मैं " तन्वी ने पलट कर देखा प्रियम शाह दरवाजे पर थे।"सर आप?! " तन्वी ने धीरे से बोला ताकी रुचिर की नींद डिस्टर्ब न हो।लेकिन रुचिर प्रियम की भारी सी आवाज से जाग गया। " ओह! प्रियम सर!" तन्वी ने रुचिर को देखा ।रुचिर बाल सही कर उठ गया और प्रियम शाह से हैण्ड शेक किया " सोरी सर, आज आपकी इंटर्न का दिन ले लिया "," ईटस ओके, मयंक ने कहा शी इस नोट वेल ऐण्ड कीज़ भी इन्के ही पास थीं, बगल से निकल रहा था सोचा ये तो कभी बुलाएंगी नही चाय पर इसी बहाने चल लेता हूं।" कह कर प्रियम शाह हँसे।


रुचिर , तन्वी और प्रियम तीनो बालकनी मे खड़े हो कर कॉफी पीते बात कर रहे थे।रुचिर कह रहा था " मुझे तो पता ही नही था की तन्वी पैंटींग भी करती है ", " रियली ?! इस ईट सो तन्वी?" प्रियंक ने तन्वी की ओर देखा । तन्वी मुस्करा गयी।" बट शी इस बोर्न आर्टिस्ट, हैरान हूं की इन्होने पहले ये फिल्ड एक्सप्लोर क्यों नहीं किया।", " अब आप हैं तो होप्फुल्ली शी वील ब्लोसम " रुचिर ने तन्वी को देख कर कहा।


प्रियम शाह के जाने के बाद रुचिर उस्के ब्रश और कलर के ट्यूब्स से खेलने लगा।" कोई बात तुम्हे परेशान कर रही है ?" तन्वी ने पूछा " नही यार बस थोड़ा मार्केट डाऊन है बस ", " कितना लौस हुआ ?"" हो गया, अच्छा खासा पर लीव ईट, यार आज मेरा स्केच बनाओ।", रुचिर ने बात बदलते हुए कहा " तुम्हारा?"," हां,मेरा", " ओके" ।

तन्वी रुचिर का स्केच बनाने लगी। " प्रियम शाह ठीक ठाक इन्सान लगा मुझे ।" रुचिर ने कहा " हाँ सिंपल हैं"," तुम्हारी तरह "," हाँ शायद " तन्वी अपने स्केच मे तल्लीन हो जवाब दे रही थी।" लगा नही कि पहली बार मिला उनसे, मेरे बारे मे काफी कुछ जानते हैं!"," हूं ,उस रात तुम्हारी बात हुई थी" ," कब "," जब सेमिनार मे साउथ गये थे तब "तन्वी अब रुचिर की आँखों को स्केच कर रही थी । उसने रुचिर की आँखों को देखा , वो रुक गयी " क्या बात है?" उसने पूछा "नही कुछ नही ऐसे ही ।" ," फिर भी"," अच्छा ये तुम्हे फौरेन लेकर नही गये कभी? वहाँ अच्छा एक्सपोजर मिलता तुम्हे।", तन्वी ने महसूस किया की रुचिर के शब्द , हाव-भाव आँखें सब 

अलग ही सुर मे हैं। 


*शेष अगली किश्त मे


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