NARINDER SHUKLA

Others

5.0  

NARINDER SHUKLA

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सबूत

सबूत

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"सुच्चा सिंह, ये तू किन्हें उठा लाया है ? सामने खड़े, दुबले-पतले से दिखने वाले ग्रामीण युवक तथा पास खड़ी, सांवले - मंझोले कद - काठी वाली युवती की ओर इशारा करते हुये इंस्पैक्टर सुमेर सिंह ने अपनी लंबी व तीखी मूंछों को मरोड़ते हुये कहा।"

"सर, ये प्रेमी -प्रेमिका हैं। शिवाजी पार्क के एक कोने में झगड़ रहे थे। ये इस लड़की को जबरदस्ती अपनी साइकिल पर बैठाने की कोशिश कर रहा था। और यह लड़की बार-बार मना कर रही थी।"

"क्यों बे मज़नू की औलाद। कहां भगा कर ले जा रहा था इसे? बेंत  की नोक, युवक के पेट में चुभोते हुये, इंस्पैक्टर सुमेर सिंह पूछा।"

". . . इंस्पैक्टर साहब, हम पति - पत्नी हैं। यह हमारी जोरू, रामवती है। मायके जाने की ज़िद कर रही थी। और हम कह रहे थे कि ‘बचवा‘ की बोरड की परीक्षा के बाद हम खुद - ब - खुद छोड़ आयेंगे।  मुला, इ समझती ही नहीं। वह रोने लगा।"

"इ हमार मरद ही है हुज़ूर। ठीक कह रहा है। हम, पति - पत्नी ही हैं। युवती ने अपने पति की हां में हां मिलाई। "

"तुम्हारे पास क्या सबूत है कि तुम दोनो, पति - पत्नी हो । इंस्पैक्टर सुमेर सिंह ने सख्ती से पूछा।"

"सबूत तो कोनो नाहीं है। पर माइ कसम हुज़ूर, इ हमार जोरू ही है युवक ने रोते हुये कहा।"

"सुच्चा सिंह, मुझे तो यह ‘लव -जे़हाद ‘ का मामला लगता है। दलाल भी हो सकता है। ज़रा तलाशी तो ले इसकी। इंस्पैक्टर साहब ने सुच्चा सिंह की ओर इशारा करते हुये कहा।"

सुच्चा सिंह ने युवक की धोती व कुर्ते पर हाथ मारा और धोती के एक छोर से निकली, रूमाल की एक पोटली को सामने मेज़ पर रख दिया।

"इसमें क्या है। इंस्पैक्टर साहब ने बड़े कोतुहल से, युवक की आँखों में आँखें डालते हुये पूछा।"

सरकार, ईमा हमार महीने भर की पगार है। आज ही ठेकेदार से मिली रही। बचवा की फीस भरनी है।"

इंस्पैक्टर साहब ने पूछा - "कितना है ?" उसने ज़वाब दिया - "पूरा एक हज़ार रूपइया।"

इंस्पैक्टर सुमेर सिंह के चेहरे पर मुस्कान उभर आई। फौरन पोटली को कब्ज़े में लेते हुये हवलदार सुच्चा सिंह को आदेश दिया - "सुच्चा सिंह, इन्हें छोड़ दो। पक्का सबूत मिल गया। ये दोनो पति - पत्नी हैं।"

थाने में ठहाके गूंजने लगे और वे दोनों असहाय, आर्द्र आँखों के साथ थाने से बहार निकल आये।



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