हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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सौतेला : भाग 42

सौतेला : भाग 42

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सोनू की शादी में शामिल होने के लिए मेहमान आने लगे थे । शिवम, नेहा, आर्यन और बाकी लोग मेहमान नवाजी में व्यस्त हो गये । सुमन को नेहा की शादी याद आने लगी । उस शादी में सारी बागडोर राजेश के हाथ में थी । राजेश था भी कुशल प्रबंधक । थानेदार जो था । अच्छों अच्छों को ठीक करना आता था उसे । वह हर किसी को अपने वश में कर लेता था । ऐसा लगता था जैसे कोई वशीकरण मंत्र आता था उसे । सब लोग उसकी बातें मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे । एक चुंबकीय आकर्षण था उसमें जो सबको अपनी ओर खींच लेता था । सुमन भी तो खिंचती चली गई थी । तभी तो पसंद किया था सुमन ने उसे । 

लेकिन नियति का क्या करे वह ? सोचकर सुमन की आंखों में आंसू छलछला गये । अमृत कलश अधरों से लगने से पहले ही भरभरा कर टूट गया था । वह प्यासी ही रह गई थी । आज भी वह राजेश को भूली नहीं थी । भूल भी कैसे सकती थी वह । उसे दिल में बैठाया था उसने । इतना आसान होता है क्या अपने प्यार को भूल पाना ? आंखों में छलछलाते आंसुओं को छुपाने के लिए वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई । पर नेहा की आंखों से सुमन की कोई बात छिप सकती थी क्या ? नेहा को सुमन ने अपनी बच्ची की तरह पाला था । उसकी सौतेली बड़ी बहन अनीता नेहा को साल भर की छोड़कर चल बसी थी । सुमन ने नेहा को मां का प्यार देने के लिए क्या नहीं किया ? अपना सूखा आंचल तक उसने नेहा के मुंह में दे दिया था । सुमन और राजेश ने ही कन्यादान किया था नेहा का । तो नेहा उसके मन की थाह कैसे नहीं जान पाती ? 


वह सुमन के पीछे पीछे उसके कमरे में आ गई और उसने अपनी मां यानि सुमन को अपनी बांहों में भर लिया और वह सुमन के आंसू पोंछने लगी । 

"हे शिव ! तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया" ? सुमन के अधरों पर बस यही शब्द होते थे । नेहा सुमन को चुप कराते कराते खुद रोने लगी थी । नेहा की बेटी पाखी भी उसे ढूंढते ढूंढते वहां पर आ गई थी । उन दोनों को रोते देखकर वह भी रोने लगी । 

"नैना, आप क्यों रो रही हैं" । पाखी की तोतली जुबान सुनकर सुमन की हंसी छूट गई । सुमन पाख की नानी थी इसलिए पाखी उसे नानी के बजाय "नैना" कहा करती थी । पाखी की तोतली बातों ने सबको हंसा दिया था । सुमन ने पाखी को अपनी बाहों में भरकर उसे चूम लिया । 


शाम को संपत और कामिनी भी आ गये थे । कामिनी अपने बच्चों को साथ नहीं लाई थी । नई मां ने जब कामिनी से बच्चों को नहीं लाने के बारे में पूछा तो कामिनी बुरा सा मुंह बनाकर बोली "उनके एक्जाम चल रहे हैं । वैसे भी वे यहां आकर क्या करते" ? 

कामिनी की बातों से नई मां, चांदनी, सुमन और बाकी औरतों को बहुत बुरा लगा लेकिन नई मां ने आंखों के इशारे से सबको समझा दिया कि कुछ नहीं कहना है इसलिए सब औरतें चुप ही रहीं । शिवम ने संपत के चरण स्पर्श किये तो संपत ने उसे उठाकर अपनी बाहों में कस लिया 

"कैसा है रे तू ? अब तो तहसीलदार बन गया है । बहुत बहुत बधाई हो बेटा । मेरा आशिर्वाद सदा तेरे साथ है" । संपत के स्वर में आत्मीयता थी । साथ ही उसे पर्याप्त प्यार नहीं देने का क्षोभ भी था । 

"अच्छा हूं पापा । आपके आशीर्वाद से ही मैं तहसीलदार बना हूं । आपका प्रोमोशन नहीं हुआ अब तक" ? 

"अरे , हमारे पुलिस विभाग में शिकायती लोग बहुत हैं । उल्टी सीधी शिकायतें करते रहते हैं । उनकी जांच चलती रहती हैं । इस कारण हमारा प्रोमोशन अटका रहता है । देखो, ईश्वर ने चाहा तो अगले छ: माह में मैं एस पी बन जाऊंगा" । संपत मुस्कुराते हुए बोला । 

"सच पापा ! काश , वह दिन जल्दी आये" । कहकर शिवम संपत के लिए लाया गिफ्ट लेने चला गया । जब वह वापस आया तो उसके हाथ में एक पैकेट था जिसे शिवम ने संपतराम को दे दिया 

"ये आपके लिए है पापा" 

"क्या है ये" ? 

"एक छोटा सा गिफ्ट है" 

"किस खुशी में" ? 

"तहसीलदार बनने की खुशी में" 

"इसके अंदर क्या है" ? 

"आप खोलकर देख लो" हंसते हुए शिवम बोला 


संपत ने उस पैकेट को खोला तो वह दंग रह गया । ब्राउन कलर के चमचमाते जूते देखकर वह खुश हो गया । उसे जूतों से बहुत प्यार था । संपत को यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि शिवम उसकी पसंद जानता है । संपत के हृदय में शिवम के लिए वात्सल्य उमड़ आया लेकिन वह कितना मजबूर हैं जो अपने बेटे को ढंग से प्यार भी नहीं कर सकता है । गायत्री उसे रोज शाप देती होगी । वह अपनी मजबूरी पर रो पड़ा । 

"अरे पापा ! आप रो रहे हैं" ? शिवम परेशान होकर बोला 

"रो नहीं रहा, अपने पाप हलके कर रहा हूं" । गहरी सांस लेकर वह बोला । "मेरे जिगर का टुकड़ा था तू । पर मेरी ही गलती ने तुझे मुझसे अलग कर दिया । दूसरी शादी ना करता तो आज यह नौबत नहीं आ पाती" । संपत ने एक बार फिर से शिवम को अपने सीने से लगा लिया और उसे खूब प्यार किया । 


शिवम अब अपनी सौतेली मां से मिलने अंदर कमरे में चला गया । उसने कामिनी के पैर छूने की कोशिश की तो कामिनी ने उसे दूर से ही रोक दिया "ठीक है ठीक है । वहीं रह, पांव मत छू । मुझे पांव छुआना अच्छा नहीं लगता है" । कामिनी ने बेरुखी से कहा । कामिनी की बातों से शिवम ठिठक गया और अपने साथ लाया पैकेट कामिनी को पकड़ा दिया । 

"क्या लाया है इसमें" ? 

"आप इसे खोलकर देख लीजिए , खुद पता चल जाएगा" । शिवम की इच्छा हुई उसे मां कहने की लेकिन कामिनी के रूखे व्यवहार के कारण "मां" शब्द उसके गले में ही घुटकर रह गया । 

इतने में कामिनी ने वह पैकेट खोल लिया । एक खूबसूरत शॉल था उसमें । कामिनी उसे देखकर पहले तो बहुत खुश हुई लेकिन उसे शायद ध्यान आया कि वह शिवम की सौतेली मां है, रीयल नहीं । सौतेली मां को सौतेले बेटे से कभी खुश नहीं होना चाहिए । इतना सोचते ही उसकी भाव भंगिमा टेढ़ी हो गई । 

"गर्मी के मौसम में शॉल ! भगवान ने तुझे थोड़ी बहुत अक्ल भी दी है या नहीं ? यदि कोई गिफ्ट देना ही था तो जरा ढंग का देता । यूं नाम के लिए गिफ्ट देने की क्या जरूरत थी" ? 

शिवम का दिल टूटकर बिखर गया । उसकी आंखों से गंगा जमना बहने लगी । वह बिना कुछ बोले वहां से चला गया । कामिनी के इस व्यवहार से हर कोई हतप्रभ रह गया । नई मां शिवम को ढांढस बंधाने उसके पीछे दौड़ी । चांदनी उम्र में बहुत छोटी थी इसलिए वह खामोश ही रही । कामिनी नेहा की मामी लगती थी इसलिए वह भी गुस्से को पी गई । लेकिन सुमन यह अत्याचार सहन कैसे करती ? वह प्रतिकार करते हुए बोली 

"कितना प्यारा और कितने प्यार से ये शॉल लेकर आया है शिव और आपने उसका अपमान करते हुए उसे रुला दिया । तुमने उसे आंसुओं के अतिरिक्त और दिया ही क्या है ? तुम सौतेली मां हो , यह बात बताने का कोई मौका नहीं छोड़ती हो तुम । शिव सबके लिए कुछ न कुछ तो लेकर आया है ना ! तुमने आज तक किसी को कुछ दिया है क्या सिवाय आंसुओं के ? कभी कुछ लेकर आई हो क्या ? जब देखो तब उसका दिल छलनी करती रहती हो । वो तो बहुत सीधा है मेरा शिव नहीं तो तुम्हें यहीं सबक सिखा देता ! अगर मुंह से मीठी बात नहीं निकलती है तो अपना मुंह बंद रखा करो । समझीं तुम" । सुमन चीख पड़ी थी कामिनी पर । सुमन का रौद्र रूप देखकर चांदनी और सोनू तो डर ही गये थे लेकिन कामिनी पर इसका क्या प्रभाव पड़ना था । वह बड़ी बेशर्मी से बोली 

"मुझे पता था कि तुम बीच में जरूर बोलोगी । तुम्हारी औकात क्या है ? क्या हो तुम ? अपने मंगेतर को खाने वाली औरत मुझे उपदेश दे रही है ? थोड़ी बहुत शर्म बची है कि नहीं, या वह भी बेच खाई है" ? कामिनी ने पलटवार करते हुए कहा ‌ 

अब तो कोहराम मच गया । सुमन ने कामिनी को कसकर पकड़ लिया और उसकी धुनाई करने ही वाली थी कि बाहर से दौड़कर संपत , दौलत , शिवम और अन्य लोग अंदर आ गये और सबने मिलकर दोनों को अलग किया और उन्हें अलग अलग कोने में ले गये । बड़ी मुश्किल से सुमन शांत हुई मगर कामिनी फिर भी चीखती रही । उसे शांत करना किसी के भी वश में नहीं था । तब सबको संपत की स्थिति का पता चल गया । अब सबको संपत के साथ सुहानुभूति हो गई । वह कैसे इस ताड़का के साथ रहता होगा , सब लोग उसकी चिंता करने लगे । 

इस एक्शन, रोमांचकारी , एंग्री वूमेन के नाटक ने दुल्हन बनी सोनू को हिला दिया । वह जमीन पर गिरकर फूट फूटकर रोने लगी । चांदनी उसे अपनी बांहों में लेकर चुप कराने का प्रयास करने लगी । नेहा भी उसे समझाने लगी लेकिन सोनू का क्रंदन रुक नहीं रहा था । फिर दौलत ने उसे संभाला । वह अपने पापा के सीने में मुंह छुपाकर खूब रोई । जब मन का मैल साफ हो गया तब जाकर शांत हुई सोनू । 


उधर कामिनी का अलग ही ड्रामा शुरू हो गया । उसने जिद पकड़ ली कि उसे इस शादी में रहना ही नहीं है । उसने संपत को अपना सामान पैक करने को कह दिया । सब लोगों ने उसे मनाने के अनेक प्रयास किये मगर वह टस से मस नहीं हुई । आखिर संपत को नई मां से माफी मांगकर जाना ही पड़ा । कामिनी के जाने के बाद सब लोगों ने चैन की सांस ली । 



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