हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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सौतेला : भाग 41

सौतेला : भाग 41

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रात के करीब 11 बजे शिवम घर वापस आया। बाकी लोग सो गए थे केवल सुमन जाग रही थी। दरवाजा सुमन ने ही खोला था। सुमन को सामने देखकर शिवम थोड़ा असहज हो गया 

"रामदास अंकल ने खाना खाने के लिए रोक लिया था , इसलिए देर हो गई बुआ" शिवम सफाई देने लगा 

"मैंने कुछ कहा क्या ? चल , मेरे कमरे में आजा। वहीं तेरा बिस्तर लगा दिया है"। 

शिवम चुपचाप सुमन के पीछे पीछे चलने लगा। वह मन ही मन सोचने लगा कि भगवान सुमन बुआ को कितने कष्ट दे रहा है। बुआ ने जिससे प्रेम किया और उससे शादी के लिए कम से कम पांच साल इंतजार किया उसी को शादी से ठीक दो दिन पहले ही भगवान ने छीन लिया ! जरा सी भी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई भगवान को ? बुआ आज भी उनकी विधवा बनकर रह रही हैं। उनको इस दुनिया से गये लगभग आठ साल हो गए हैं लेकिन बुआ शादी का नाम भी नहीं लेती हैं। सब लोग समझा समझा कर थक चुके हैं पर सुमन बुआ अपने फैसले से टस से मस नहीं होती हैं। अद्भुत प्रेम है बुआ का। ना देखा ना सुना। बिन फेरे हम तेरे। ये प्रेम है या दीवानगी ! 

सुमन का मन टटोलने के लिए शिवम ने दबी जुबान में कहा "बुआ , पहले नेहा चली गई और अब सोनू भी अपनी ससुराल जा रही है। अब आप भी अपने बारे में सोचिए ना" ! 


सुमन ने पलटकर उसकी ओर कड़ी निगाहों से देखा "अब तू मुझे सिखायेगा ? तुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाया है मैंने और आज तू मुझे बता रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए ? तहसीलदार बन गया तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि तू मेरा भी चाचा बन गया है ? आया है बड़ा ज्ञान देने मुझे" ! सुमन के तेवर देखकर शिवम चुप हो गया। 


कमरे में सुमन और शिवम के अलावा और कोई नहीं था। सुमन उससे कहने लगी "एक बात बता शिव, सबके बीच में तू हंस तो रहा है पर तेरी हंसी खोखली क्यों है ? क्या बात है बेटा जो तू मुझसे छुपा रहा है। देख, मैंने और अम्मा ने तुझे अपने बच्चे की तरह पाला है। अम्मा को अब कम दिखने लगा है इसलिए वे चेहरा पढ़ नहीं पाती हैं लेकिन मैं तो सब कुछ साफ़ साफ़ देख सकती हूं ना। तो मैंने तेरी आंखों में दर्द का सागर उमड़ते हुए देखा है। अब तो तू अफसर भी बन गया और पिंकी को मंत्री का दर्जा भी मिल गया , फिर अब क्या बात है जो तुझे परेशान कर रही है ? क्या बच्चा नहीं होना कोई कारण है ? तुम्हारी शादी को भी लगभग तीन साल हो चुके हैं लेकिन अभी तक बच्चा नहीं हुआ है। क्या बच्चे को लेकर तुम दोनों में कोई मतभेद हैं ? या फिर कोई और बात है ? मुझसे कुछ मत छुपा शिव, मैं तेरी बुआ नहीं मां हूं ना। अपनी मां से कोई बेटा कुछ छिपाता है क्या" ? कहते कहते सुमन का स्वर भीग गया था। 

सुमन की बात सुनकर शिवम हैरान रह गया "बुआ को कैसे पता चला कि मैं परेशान हूं। बुआ को उसकी परेशानी का पता नहीं चलना चाहिए नहीं तो बुआ बहुत चिंता करेंगीं"। वह सोचने लगा। 

"तेरी चुप रहने की आदत बड़ी खराब है। सच सच बता कि बात क्या है" ? 

अब तक शिवम संभल गया था। वह हलकी मुस्कुराहट के साथ बोला "ऐसा कुछ नहीं है बुआ। मैं बहुत खुश हूं। आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं खुश नहीं हूं" शिवम ने पलटकर वार कर दिया था। अब जवाब उसे नहीं , बुआ को देना था। 

"मैंने भी दुनिया तुझसे ज्यादा देखी है शिव। आंखों की भाषा पढ़नी आती है मुझे , इसीलिए पूछा था" 

"मुझे क्या परेशानी होगी बुआ ? तहसीलदार बन गया हूं। तनख्वाह भी बढ़ गई है। पिंकी राज्य महिला आयोग में सदस्य बन गई है तो उसको भी मंत्री जितनी तनख्वाह मिल जाती है। सरकारी बंगला, दोनों के पास अलग अलग गाड़ी है। नौकर चाकर भरे पड़े हैं। फिर किस बात की कमी है ? हां, व्यस्तता जरूर बढ़ गई है। घर आते आते आठ बज जाते हैं। पिंकी भी बहुत व्यस्त रहती है। बस , यही बात है और कुछ नहीं। आज इतनी दूर से सफर करके आ रहा हूं ना इसलिए चेहरे पर थकान नजर आ रही होगी"। शिवम ने सफाई से बात टाल दी थी। 

"सफर की थकान और अंदर का दुख , दोनों में अंतर होता है। तेरा चेहरा कुछ और कह रहा है और जुबां कुछ और। अपने दिल का दर्द बता दे बेटा नहीं तो यह दर्द एक दिन बीमारी बन जायेगा। बता दे बेटा , सही बात क्या है" ? 

सुमन ने उसके सिर पर हाथ रखकर धीरे धीरे फिराना शुरू कर दिया। सुमन का स्नेह देखकर शिवम को लगा कि उसे सुमन बुआ को साफ साफ बता देना चाहिए। लेकिन उसे लगा कि अभी शादी का माहौल है , सभी लोग दुखी होंगे और रंग में भंग पड़ जायेगा। अभी चुप्पी साधना ही ठीक रहेगा।

"जैसा आप सोच रही हैं वैसा कुछ नहीं है बुआ। हम दोनों मस्त हैं और मैं तो फिर कह रहा हूं कि आप भी शादी कर लो और मस्त रहो। ऐसे कब तक अकेली जिंदगी गुजारोगी" ? उसने बात पलटने की कोशिश की। 

"देख, तू फिर शुरू हो गया। ये जिंदगी तो राजेश के नाम लिख दी है मैंने। तकदीर ने राजेश को मुझसे छीन लिया तो क्या हुआ , राजेश हमेशा मेरे साथ हैं। अब तू ही बता , उनके रहते मैं किसी और से शादी कैसे कर लूं ? वो मेरी आंखों से एक पल को भी ओझल नहीं होते हैं तो मैं किसी और को कैसे देख सकती हूं" ? 

"पर बुआ , आपके ससुराल वाले तो आपको अपनी बहू नहीं मानते हैं। फिर आप उन्हें क्यों मानती हो" ? हिम्मत करके शिवम ने कह दिया।


"अरे वाह ! तू तो सचमुच बड़ा हो गया है रे ! तुझे कैसे पता कि मुझे मेरे ससुराल वाले नहीं मानते हैं ? ये तो सही बात है ना कि मेरी शादी राजेश से नहीं हुई इसलिए वैधानिक रूप से तो मैं उनकी बहू नहीं हूं। राजेश से रिश्ता मैंने बांध रखा है क्योंकि मैं उन्हें अपने मन मंदिर का देवता मानती हूं। पर वे लोग मुझसे रिश्ता रखने के लिए बाध्य नहीं हैं ना ! फिर भी राजेश के पापा मुझे अपनी बहू ही मानते हैं और मुझ पर बहुत वात्सल्य रखते हैं। रही बात मम्मी की तो उनका बेटा छीना है मैंने। इसलिए वे मुझसे रिश्ता क्यों रखना चाहेंगी" ? सुमन के स्वर में पीड़ा झलकने लगी थी। 

"पर इसमें आपका तो कोई कुसूर नहीं था बुआ। उन्होंने अपना बेटा खोया है तो आपने भी तो अपना सर्वस्व खो दिया है"। 

"हां, बात तो ठीक है बेटा। लेकिन हम औरतें हर दुर्घटना के लिए औरतों को ही जिम्मेदार ठहराती आई हैं। बहू के आने के कुछ समय पहले या बाद में यदि कोई दुर्घटना घट जाये तो उसके लिए तुरंत बहू को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। "आते ही फलां को खा गई"। ऐसे ताने मारे जाते हैं। ऐसे ही जब बेटी का जन्म होते समय उसकी मां मर जाये तो उस लड़की पर जिंदगी भर "अपशकुनी" होने का ठप्पा लग जाता है। ये काम केवल औरतें करती हैं, मर्द नहीं। औरतों ने औरतों का जितना नुकसान किया है उतना मर्दों ने नहीं किया। मम्मी ने अपना बेटा खोया है और वे इसके लिए मुझे जिम्मेदार ठहराती हैं तो वे भारतीय परंपरा के अनुसार कुछ ग़लत नहीं कर रही हैं। यह उनका अधिकार है और मैं उनका यह अधिकार कैसे छीन सकती हूं ? उनकी जगह यदि मैं होती तो शायद मैं भी यही करती।" 

कहते कहते आंसू आ गये थे सुमन की आंखों में। शिवम बुआ के आंसू पोंछने लगा। थोड़ी देर कमरे में खामोशी छाई रही फिर सुमन कहने लगी। 

"पापा मुझे वहां बुलाते हैं पर मैं मम्मी के कारण नहीं जाती हूं। मुझे देखकर मम्मी को राजेश की याद ज्यादा आती है। मेरे वहां होने से उन्हें राजेश की कमी खलती है। आखिर एक ही तो बेटा था उनका , वह भी मैंने छीन लिया"। सुमन का गला फिर अवरुद्ध हो गया। 

"फिर वही पागलपन। आप खुद को फिर से दोषी मान रही हो बुआ। सांसों पर किसका नियंत्रण है ? आपका और फूफाजी का साथ तकदीर में नहीं था इसलिए वे आपसे जुदा हो गए। उस बात को करीब आठ साल बीत चुके हैं बुआ। अब बीती बातें भूलकर आगे की सोचो। पहाड़ सी जिंदगी अकेले काटना बहुत मुश्किल है बुआ। मेरी बात सोचकर देखना। मेरे बारे में तो बहुत सोचती हो आप, पर कभी खुद के बारे में भी तो सोचा करो"। 

"अब रात बहुत हो गई है बेटा। चल, सो जा और मुझे भी सोने दे"। सुमन ने फिर से बात बदल दी। 

"जब खुद पर बात आती है तब आप ऐसे ही बदल देती हैं उसे। पर कोई बात नहीं , मैं भी पीछा नहीं छोड़ूंगा आपका, देख लेना।" हंसते हंसते शिवम कह गया। दोनों अपने अपने बिस्तरों पर लेट गये। 

क्रमशः 



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