STORYMIRROR

Ashish Kumar Trivedi

Others

2  

Ashish Kumar Trivedi

Others

साउथ पार्क कब्रिस्तान

साउथ पार्क कब्रिस्तान

3 mins
469

मुझे बचपन से ही भूत प्रेत व पराशक्तियों में दिलचस्पी रही थी। मेरी बचपन से ही दिली तम्मन्ना थी कि मैं ऐसी किसी जगह पर जाऊँ जहाँ भूत प्रेत हों।‌

किसी काम से मेरा कोलकाता जाना हुआ। वहाँ मैंने साउथ पार्क कब्रिस्तान के बारे में सुना। 1767 में बने इस कब्रिस्तान में कई अंग्रेज़ सैनिकों की कब्रें थीं। लोगों का कहना था कि वहाँ एक लड़की का भूत रहता है। 

यह बात सुनते ही मेरा मन वहाँ जाने को मचल उठा। अपना काम समाप्त कर मैं साउथ पार्क कब्रिस्तान देखने चला गया। 

अब तक जो किस्से कहानियों में पढ़ा था वह सारी चीज़ें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मैंने सुना था कि इस जगह पर अक्सर भूत दिखाई पड़ते हैं। मैं उन सब बातों का अनुभव करने के लिए तैयार था जो ऐसी जगहों से जुड़े हुए थे। अतः मैं लोगों से अलग एकांत स्थान पर चला गया। 

मैं अपने मोबाइल पर आसपास की तस्वीरें ले रहा था। मुझे कोने में बनी एक कब्र दिखाई दी। मैं उसके पास गया और उसकी तस्वीर खींचने लगा। मैं कब्र पर ज़ूम कर रहा था तभी मुझे कब्र के पीछे पेड़ों के झुरमुट से ‌झांकती एक लड़की दिखाई दी। तस्वीर खींचना छोड़ कर मैं पेड़ों के झुरमुट की तरफ भागा।

मुझे अपनी तरफ आते देख कर वह भी भागने लगी। मैंने देखा कि उस लड़की ने ईसाई दुल्हन की तरह सफ़ेद गाउन पहना हुआ था। मुझे आश्चर्य हुआ कि दुल्हन के लिबास में कोई लड़की यहाँ क्या कर रही है। भागते हुए मैंने आवाज़ लगाई।

"ए लड़की....रुको।"

पर वह भागती रही। मैं भी उसके पीछे भाग रहा था। कुछ आगे जाकर वह एक कब्र पर रुक गई। घुटनों के बल वहाँ बैठ कर वह रोने लगी। मैं कुछ देर चुप खड़ा रहा। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ? उसे कैसे शांत कराऊँ ?

रोते रोते उस लड़की ने मेरी ओर देखा। मैं हिम्मत कर उसके पास गया। उसके पास पंजों के बल बैठ कर मैंने पूछा।

"कौन हो तुम ? दुल्हन के लिबास में इस कब्रिस्तान में क्या कर रही हो ?"

उस लड़की ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा। इस बार आँखों में आँसू नहीं एक रहस्य था। उसने कहा।

"मेरा नाम सोफिया है। मेरी शादी होने वाली थी। पर मेरे मंगेतर की मौत हो गई। मैं ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैंने अपनी वेडिंग ड्रेस पहनी और ज़हर खाकर अपनी जान दे दी।"

उसकी बात सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गया। जब तक मैं कुछ समझता तब तक वह लड़की ग़ायब हो गई। मैंने कब्र पर लगा पत्थर पढ़ा।

'सोफिया एंडरसन जन्म 23 जून 1758 मृत्यु 11 मई 1780'

मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया।

"उठो...उठो भाई...."

किसी ने मुझे झझकोर कर उठाया।

"विज़िटिंग टाइम खत्म। बाहर जाओ।"

मैंने इधर उधर देखा। मैं सोफिया की कब्र पर सर रखे बैठा था।

"उठो भाई...घर जाकर सोना।"

मैं उठा और कब्रिस्तान से बाहर आ गया। होटल के कमरे में पहुँच कर मैंने कब्रिस्तान में खींची अपनी तस्वीरों को देखा। कई तस्वीरों में सोफिया की हल्की सी झलक दिखाई पड़ रही थी। 

साउथ पार्क कब्रिस्तान की सैर मेरे लिए रहस्य व रोमांच से भरी हुई थी।


           


Rate this content
Log in