रिश्तों के गणित
रिश्तों के गणित
"रिश्ते तब बनते हैं बेटा जब रिश्तों को संभाल कर रखा जाता है!" स्नेहा अपनी पंद्रह साल की बेटी बुलबुल से बोली।
" मैं समझी नहीं मम्मा ... रिश्ते तो बने बनाए होते हैं ना फिर संभालने से कैसे बनते!" बुलबुल बोली।
" बेटा रिश्ते बने बनाए मिलते हमें पर अगर हम उन्हें संभाल कर ना रखें तो क्या होगा .. क्या वो आजीवन बने रह सकते हैं?" स्नेहा ने समझाया।
" पर मम्मा बुआ ने हमेशा आपका पराया समझा है दादी भी बुआ के लिए आपको डांटती रहती फिर भी आप पल्लवी( बुलबुल की बुआ की बेटी) दीदी की शादी में इतना सब कर रहे क्या जरूरत है!" बुलबुल बोली।
(असल में बुलबुल की बुआ सौदामिनी थोड़े अलग स्वभाव की है उन्हें लगता है स्नेहा की अच्छाई कभी उसे अपने मायके से बेगाना ना कर दे इसलिए छोटी छोटी बातों पर अपनी मां और स्नेहा की सास पुष्पा जी को सिखा देती और वो स्नेहा को उस वक़्त डांट लगा देती जो बुलबुल को नागवार गुजरता।अब सौदामिनी की बेटी पल्लवी की शादी है तो स्नेहा दिन रात एक कर रही भात की तैयारी में जिससे उसके ससुराल का मान कम ना हो और बुलबुल को लग रहा वो क्यों कर रहीं है ये।)
" बेटा पहली बात तो ये कि सबकी अपनी अपनी सोच होती जरूरी नहीं एक ने गलत किया तो दूसरा भी करे। दूसरी बात बुआ को हमेशा से ये लगता रहा कि कहीं मैं उनकी जगह ना ले लूं इसलिए वो ऐसा करती थी और उनके सिखाने पर दादी भले मुझे डांट देती थी क्योंकि बेटी भी तो उन्हें प्यारी है!" स्नेहा बोली।
" पर मम्मा बेटी प्यारी है तो क्या कोई बहू के साथ ऐसा करता!" बुलबुल गुस्से में बोली।
" बेटा वो मुझे इतना सा डांटती है और इतना सारा प्यार करती है तो मैं उनकी डांट देख उनसे गुस्सा रहूं या उस वक़्त डांट सुन कर सारी जिंदगी को उनसे अपने प्यारे रिश्ते को बनाए रखुं!" स्नेहा प्यार से बोली।
"उफ्फ मम्मा आप और आप के लॉजिक!" बुलबुल बोली।
" ये कोई लॉजिक नहीं ये रिश्तों के गणित है बेटा जो तुम धीरे धीरे समझोगी क्योंकि इसी से रिश्ते बने रह सकते!" स्नेहा बोली।
" सही कहा बहू तुमने तुम सच में रिश्तों संभाल कर रखना जानती हो !" तभी बुलबुल की दादी पुष्पा जी आकर बोली।
" मांजी भात की सब तैयारी हो गई आप देख लीजिए कोई कमी तो नहीं!" स्नेहा पुष्पा जी से बोली।
" जब तुमने किया है सब तो कोई कमी नहीं होगी मैं जानती हूं सौदामिनी किस्मत वाली है कि मेरे ना रहने से भी उसका मायका सलामत रहेगा इतनी अच्छी भाभी जो है उसकी जो रिश्ते बनाना ही नहीं निभाना भी जानती!" पुष्पा जी बोली।
उधर शादी में....
" देखो मेरे भाई भाभी कितना अच्छा भात लाए हैं !" सौदामिनी सबको ये बोलती नहीं थक रही थी साथ ही उनकी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी!
" सच में मम्मा मामी तो बिल्कुल आपकी तरह प्यार करती मुझसे!" पल्लवी बोली।
" मम्मा वहां शादी में बुआ आपकी इतनी तारीफ कर रही थी जबकि यहां वो आपकी शिकायत करती!" शादी से आ बुलबुल स्नेहा से बोली।
" बेटा यही तो होते हैं रिश्ते आपस में लड़े झगड़े कुछ भी करें पर दूसरों के सामने कभी एक दूसरे को नीचा नहीं दिखाते बल्कि उनके साथ खड़े रहते!" स्नेहा बोली।
" मम्मा मैं समझ गई सब !" बुलबुल बोली।
" क्या समझी मेरी लाडो!" स्नेहा प्यार से उसके सिर पर हाथ फैराते बोली।
" यही की जो रिश्ते हमे मिलते हैं उन्हें बनाए रखना हमारे हाथ में है अगर हम कुछ बातों को इग्नोर करेंगे तो अपनों का ढेर सारा प्यार पाएंगे और जरा जरा सी बात पर लड़ेंगे तो रिश्तों को खो देंगे यही है रिश्तों का सच्चा गणित!" बुलबुल बोली।
" बिल्कुल सही मेरी लाडो अब तू इसे गांठ बांध लियो जिससे आगे को तुम्हे भी रिश्ते संभालने हैं!" पुष्पा जी बोली और बुलबुल को गले लगा लिया।
सच में दोस्तों रिश्ते सच में रिश्ते तभी बनते जब हम उन्हें निभाते और रिश्ते निभाने के लिए उनमें गणित बैठना जरूरी है ।