Sajida Akram

Children Stories Horror

4.3  

Sajida Akram

Children Stories Horror

रहस्यमयी हवेली

रहस्यमयी हवेली

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75 साल पुरानी हवेली थी हमारे गांव में, हमने बचपन में अपने दादी से उस हवेली की रहस्यमयी कहानियां सुनती थी, कुछ-कुछ यादें हैं। हम अपने दादा के साथ उस हवेली को देखने की ज़िद की तो दादा ने हवेली के बरामदें तक ले गए मगर, वहाँ की ख़ोफनाक आवाज़ों से हम बच्चेंं डर गए।

दादा ने कहा- इसीलिए मना कर रहा था।

हम बाहर से ही लौट आए, हवेली बहुत आलीशान थी, 125 कमरे थे, बहुत बड़ा दरबार हाल था, बड़े-बड़े झूमर लगे थे पर सब पर धूल,और जाले लगे थे, कई साल से ताले नहीं खुले थे, एक दिन हम बच्चों ने गांव के चौकीदार से ज़िद की हवेली की कहानी सुनाओ, उसने हम सबको समझाया कि दिन में कहानी नहीं सुनते पुरानी कहावत है "मामा"रास्ता भूल जातें हैं।

बच्चों को कहा चौपाल पर शाम को हवेली की कहानी सुनात चौकीदार ने बताया ये हवेली "जमींदार राघवेंद्र सिंह की थी ,उनके दो बेटे थे ,वीरभद्र सिंह, छोटा बेटा जयेंद्र सिंह परिवार के साथ रहते थे,"वीरभद्र सिंहअपने पिता का "ज़मींदारी का काम देखता था, जयेन्द्र सिंह हॉयर एजुकेशन के लिए विदेश चला जाता है। अच्छी ख़ुशहाल ज़िन्दगी चल रही थी, बस एक दिन ऐसा ग्रहण लगा उस घर को "वीरभद्र सिंह "अपनी फेमिली के साथ शहर से लौट रहा था, साथ में उनकी माता जी भी "सावत्री देवी"थी, पहाड़ी क्षैत्र में कार अनियंत्रित हो कर खाई में गिर गई थी। कोई भी नहीं बचा अब सिर्फ "जमींदार रावेन्द्र सिंह ही बचे थे,और छोटा जयेन्द्र सिंह विदेश में ही बस गया था, वहीं किसी गोरी मेम से शादी करली ....!

 जमींदार राघवेंद्र सिंह बहुत टूट गए थे, उनके दूर की रिश्तेदार बहन -बहनोई और भांजे आकर रहने लगे, वो उनके दर्द में शामिल होने आए और वही के हो कर रह गए।

धीर-धीरे उनकी जमींदारी पर कब्ज़ा करने की साजिश करने लगे, जमींदार राघवेंद्र सिंह के बहुत आग्रह पर जयेंद्र सिंह की भारत आने की ख़बर आई। "जमींदारराघवेंद्र सिंह बड़े ख़ुश हो गए उन्होंने ने अपने बेटेऔर बहू, पोते की आने की ख़ुशी में बड़ा "रात्रि भोज"का आयोजन किया कुछ करीबी लोग थे सब पीने खाने में मस्त थे ...!

रात आधी से ज़्यादा हो गई थी सब नशे में धुत्त थे, जमींदार के भांजे ने सब पर तलवार से कत्लेआम कर दिया। जितने करीबी रिश्तेदार थे सब को मार दिया, यहां तक जमींदार के उस मासूम पोते को भी नहीं छोड़ा ....!

फिर कई सालों बाद जमींदार की बहन, बहनोई, भांजे की भी उस हवेली मेंं अकाल मौत हो गई।

बस जब से ही इस हवेली को "रहस्यमयी हवेली" कहने लगे...!

"अभी कुछ सालों बाद गांव में एक शादी समारोह में अपने फेमिली के साथ, सोचा बच्चों को गांव की सैर करा लाएं...

बच्चे खेत-खलिहान, टयूबवेल और कुएँ, नदियां देखकर ख़ुश हुए ,आजकल शहरों में, गांव की वो ताज़ा हवाएं, वो हरियाली से भरे खेत, खेत की मेड़ पर बैठकर हरे चने घास में सेंककर खाते बच्चे, बड़े......

उस दिन बच्चों ने ख़ूब मज़े किये, साथ ही मुझसे "रहस्यमयी हवेली" की कहानी भी सुनाई जो हमने अपने बुज़ुर्गों से सुनी, वहीं आज भी उस हवेली में कोई नहीं जाता। एक ब्रोकर ने लालच में उस हवेली के झूठे काग़जात बनाकर बेचना चाहा लेकिन वो भी सौदा करने के बाद ही अकाल मृत्यु हो गई, हवेली में एक फिल्म की शूटिंग के लिए लोगों ने साफ-सफाई करवा कर कुछ दिन डेरा डाला मगर उनमें से एक -दो भाग गए, एक -दो साथी मर गए।


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