Anjali Sharma

Others

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रामवती

रामवती

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दिल्ली की विषम सर्दी में सुबह के छह बजे ऐसा लगता जैसे बर्फ पड़ रही हो। मगर हर रोज़ उस समय घर की घंटी बजती। सामने दरवाज़ा खोलते ही रामवती का मुस्कुराता चेहरा दिखाई देता। दिल्ली में आये कुछ महीने हुए थे। बच्ची छोटी थी और साथ में नौकरी। घर बाहर दोनों तरफ भागदौड़।रामवती खाना बनाने आया करती थी। छोटा कद, सुन्दर नैन नक्श और हमेशा मुस्कुराती हुई आती और मेरे दिन की शुरुआत रामवती के साथ रसोई में बतियाते होती। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँव से थी। कॉलोनी के कुछ दूर अपने दो बच्चों के साथ अकेली रहती थी। एक बड़ी बेटी थी जिसकी शादी हो चुकी थी।उसके पति की गाँव में हलवाई की दुकान थी मगर कुछ सालों से किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त था और काम धंधा बंद हो गया था। ससुराल में उसके और बच्चों को पालने वाला कोई न था और उन्हें घर से निकाल दिया गया। उसकी रिश्तेदार दिल्ली में थी जिसने उसे यहां बुला लिया और वो घरों और शादियों में खाना बनाने का काम करने लगी।

बड़ा शहर और अकेली स्त्री, उसके लिए मुश्किलें कम न थीं, लोग तरह तरह की बातें बनाते। मगर सब मुश्किलों के बावजूद वह हमेशा हँसते मुस्कुराते हुए ईमानदारी से काम में लगी रहती। कुछ घरों में कई सालों से काम कर रही थी। हमारी यहाँ भी कुछ दिनों में वो घर के सदस्य की तरह घुल मिल गयी थी।घर के अन्य सदस्यों को मेरा उसके साथ ज़्यादा बात करना न भाता था। पड़ोस के लोग भी कहते, उसके बारे में बहुत कुछ कहते हैं सब। मगर क्या फर्क पड़ता है? मैं अक्सर सोचती ये बातें करने वाले लोग क्या उसके बच्चों के लिए कुछ करेंगे? कम उम्र में ब्याह दी जाने वाली इन स्त्रियों का क्या दोष है जिन्हें खुद बचपने की उम्र में शादी, बच्चे और गृहस्थी में झोंक दिया जाता है वो भी ऐसे जीवन साथी के साथ जो इन्हें बच्चों और घर ज़िम्मेदारियों के साथ अकेला छोड़ देते हैं। दिन भर वो घरों में काम करती और शाम को अपने बच्चों के साथ पार्क में चली आती। मेरी छोटी बच्ची भी उससे घुल मिल गयी थी। कुछ महीनों बाद हमारा तबादला हो गया और अब दूसरे शहर जाना था।आखिरी दिन जब वो मिलने आयी घर पर सबने कहा ज़्यादा बात न करना, ज़रुरत कहकर बहुत पैसे मांगेगी। मैंने उसे अपने मन अनुसार पैसे देने चाहे तो उसने मना कर दिया और बहुत मुश्किल से पैसे लिए।आँखों में आँसू लेकर बोली "दीदी बच्ची छोटी है, अपना और उसका ख्याल रखना।" उसकी आँखों में सच्ची भावना थी जो मैंने परिवार के भी कुछ लोगों में नहीं देखी थी। मेरा उसके साथ कोई वास्ता नहीं था मगर एक अनजान सा रिश्ता बंध गया था। एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की वेदना समझ सकती है, जो कई बार अपने भी समझ नहीं पाते। माँ के जीवन में कई संघर्ष ऐसे होते हैं जो उसका जीवन पूरी तरह बदल देते हैं चाहे वो चाहे समाज के किसी भी हिस्से से हो।  

इतने वर्षों बाद भी रामवती का चेहरा और उसके कहे शब्द याद आ जाते हैं। वो जहाँ हो सुखी हो, भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ।



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