राधा कृष्ण
राधा कृष्ण
एक दिन रुक्मणी ने भोजन करने के बाद "श्रीकृष्ण" को एक ग्लास दूध पीने के लिए दिया....दूध ज़्यादा गर्म होने के कारण "श्रीकृष्ण" के हृदय में लगा और "श्रीकृष्ण" के मुख से निकल गया...हे राधे ! यह सुनकर रुक्मणी बोली प्रभु ऐसा क्या है।
राधा जी का नाम आपकी ज़ुबाँ पर आपकी साँसों में बसा है।
यह तो पता हैं रुक्मणी को लेकिन फिर भी रुक्मणी "श्रीकृष्ण" से कहती हैं। मैं...भी आपसे अपार प्रेम करती हूँ...हे प्रभु! फिर भी आप हमें नहीं पुकारते हो... तभी "श्रीकृष्ण" ने कहां देवी आप कभी राधा से मिली हैं क्या और फिर मंद ही मंद मुस्कुराने लगे "श्रीकृष्ण" !
प्रेम जहां कोई मेल नहीं होता,
अर्थ जहां कोई खेल नहीं होता।
सहृदय जहां पुलकित होता हैं,
निर्मित कोई व्यक्त नहीं होता।
फिर अगले दिन रुक्मणी राधा जी से मिलने राधा जी के महल में पहुँची...राधा जी के कक्ष के बाहर रुक्मणी ने एक सुन्दर स्त्री को देखा, और उनके मुख पर तेज होने के कारण रुक्मणी ने सोचा यही राधा जी हैं और तभी उनके चरण छूने लगी और वे बोली आप कौन हैं.? फिर रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और महल में आने का कारण बताया तब वो बोली मैं...तो राधा जी की दासी हूँ...और राधा जी आपको सात द्वार के बाद मिलेगी।
मुख पर तेज रुक्मणी सोच रही,
वह कक्ष के बाहर राधा जी रही।
तभी रुक्मणी चरण छूने लगती,
फिर वे अपना परिचय देती रही।
रुक्मणी ने सात द्वार पार करना थे, और एक एक द्वार पार करते रही हर द्वार पर, रुक्मणी को एक से बढ़कर एक तेजवान दासी नज़र आती रही, और वह सोचती रही, अगर उनकी दासी इतनी रूपवान है तो फिर सोच रही थी, राधा रानी कैसी होगी , सोचते सोचते रुक्मणी राधा के कक्ष में जा पहुँची। कक्ष में
जाकर राधा जी को रुक्मणी ने देखा अत्यंत रूपवान तेजस्वी वह जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था, रुक्मणी शीघ्र उनके चरणों में गिर पड़ी,और यह क्या राधा जी के पैरों पर छाले पड़े हुए थे।
सात द्वार पार करके जा पहुंची रुक्मणी,
द्वार पार करते द्वार पर दासी नज़र आईं।
सोचती रुक्मणी रूपवान तो राधा रानी,
कक्ष में जाकर देखा रूपवान तेजस्वी।
रुक्मणी ने राधा जी से पूछा देवी आपके पैरों में छाले कैसे पड़े, तब राधा जी ने रुक्मणी से कहा आपने कल "श्रीकृष्ण" को दूध दिया वो ज्यादा गरम था, जिनके हृदय पर छाले पड़ गए। और उनके हृदय में तो सदैव मेरा वास होता हैं। यह सुनकर रुक्मणी को बहुत आश्चर्य हुआ था।
पूछा रुक्मणी ने राधा से,
आपके पैरों में छाले कैसे।
पड़े तब राधा रानी ने कहा,
श्रीकृष्ण को दूध दिया था।
वो ज्यादा गरम था जिनके,
हृदय में मेरा वास होता हैं।
