पति की इज्ज़त का तो ख्याल करो
पति की इज्ज़त का तो ख्याल करो
"ये बच्चे क्यों आये हैं बहू।लव कुश के दोस्त हैं क्या?"
"नहीं ,मम्मी जी ये ट्यूशन के बच्चे हैं ."
"अच्छा यहाँ पढ़ने आते हैं, लेकिन टीचर कब आयेगी"..रोमा की सास ने पूछा।
रोमा की सास अपने मंझले बेटे बहू के साथ रहती थी ।कई सालों बाद वे अपने छोटे बेटे के यहाँ रहने आई थीं।छोटे बेटे बहू की उनसे पटती नही थी इसिलिए घर छोड़कर वे पूना रहने चले आये और छोटी मोटी नौकरी कर अपना गुजारा कर रहे थे।वह उनसे नाराज थीं लेकिन बार बार आग्रह करने पर वे पहली बार पूना आईं।
"नहीं मम्मीजी टीचर नहीं आती मैं ही पढा़ती हूँ इन्हें।"
"तुम कबसे पढा़ने लग गई बहू ?"
वो मम्मीजी अभी दो..तीन साल से वैसे भी बच्चे छोटे हैं ,घर छोटा है, काम का भी ज्यादा भार नहीं है तो सोचा ट्यूशन ले लूं, कुछ इनकम भी हो जाती है और बच्चों के साथ रहकर बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है”।
"कितना कमा लेती हो बहू महीने का?"
"कुछ ज्यादा नहीं मम्मीजी पर घर के छोटे बड़े खर्च निकल जाते हैं। बच्चे भी छोटे हैं और मंहगाई भी कितनी बढ़ी हुई है तो.."
"ठीक है ,ठीक है, बहू तू अपना काम कर ,मैं पडो़स की बुआजी से मिलकर आती हूँ।सुबह मिली तबसे बार बार बुला रही थी।"
"ठीक है मम्मी जी".
उस समय तो वे कुछ देर के लिए चली गईं लेकिन जैसे ही पापाजी घर आये उन्होंने उनके कान भरने शुरू कर दिये।और पापाजी ने रोहन से… .
"रोहन ,तुम्हारी माँ बता रही थी बहू टयूशन पढा़ती है। लगता है खानदान की नाक कटवा के ही दम लेगी।"
"ऐसी कोई बात नहीं है पापा ,वो पूरे दिन फ्री रहती है और टयूशन लेने मे क्या बुराई है?"
"सही बात है अब तू बाप से जबान लडा़येगा..?"
"रिया तुम्हें पहले ही समझाया था चार दिन के लिए बच्चों को मना कर दो।पर तुम सुनती कहां हो अब तुम्हारी वजह से घर में फालतु की बहस"..रोहन ने रिया से कहा और काम पर चला गया। कुछ देर बाद पापाजी भी बाहर चले गए।
"मम्मीजी आपको मेरे पढा़ने से कोई आपत्ति है तो मुझे बता देतीं पापाजी और रोहन के कान भरने की क्या जरुरत थी..रिया ने कहा।"
"मुझे भला क्यों आपत्ति होगी। पर तुम तो पढी़ लिखी हो बहू ,अपने पति की इज्ज़त का तो ख्याल कर लेती है ।लोग क्या सोचेंगे ,समाज क्या सोचेगा कि मेरे बेटे में कमाने का दम नहीं है इसिलिए तुम्हें यह सब करना पड़ रहा है ।इतना ही पैसे कमाने का शौक है तो कामवाली को मना कर देती ,दो हजार तो महीने के वैसे ही बच जाते।"
"मम्मीजी जब दूसरों की बहुएं जॉब पर जातीं हैं काम करती हैं तब तो आप उनकी बढ़चढ़ कर तारीफ करती हैं। और खुद की बहू काम करे तो पति की इज्ज़त पर आंच आ जाती है। मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा कोई काम कर रही हूँ जिससे इज्जत कम हो। घर बैठकर बच्चों को पढा़ने मे कोई बुराई नहीं है ।और बाकी मैं जमाने की दकियानूसी सोच की परवाह नहीं करती।मुझे फर्क पड़ता है तो सिर्फ इससें कि मेरा पति क्या सोचता है ?और उनको कोई आपत्ति नहीं है।कामवाली छोड़ देने से पैसे नहीं बचते मम्मीजी बल्कि महीने महीने डॉक्टर का खर्च जरूर बढ़ जाता है और आज के जमाने मे हर
औरत अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।अगर मैंने अपना काम करने के पीछे बाकी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा हो तो आप मुझसे शिकायत कर सकती हैं वरना मैं आपकी बातो से बिलकुल सहमत नही हूँ।
आज भी कई घरों मे ऐसी दकियानूसी सोच के चलते परिवार वाले ही अपनी बहुओं को खरी खोटी सुनाते हैं। औरों की बहुएं काम करें तो मोर्डन, स्टेंडर्ड, होशियार और खुद की बहू कमाये तो उल्टा उसका साथ देने के बजाय खानदान की इज्ज़त पर आ जाते है लोग। "
