प्रिय कौआ
प्रिय कौआ
हमारी लोक कथाओं और पौराणिक कहानियों में पशु पक्षियों को भी महत्वपूर्ण भूमिका में रखा गया है। सनातन संस्कृति में सभी जीव जंतुओं का सम्मान है। रीतिरिवाजों के माध्यम से भी मनुष्यों के अलावा पशु पक्षियों को भी सामाजिक और धार्मिक कार्यों में शामिल किया गया है। किसी दिन कुत्ते का ज्यादा महत्त्व है तो किसी दिन कौए का। ये सबसे आसान उदाहरण है। फिर गाय का सम्मान तो सारे देश में है। विशेष कर हिन्दुओं के बीच। बहुत से घरों में पहली रोटी गाय के नाम से निकाली जाती है। और गाय को खिलाई जाती है. अनेक देवी और देवताओं के वाहन भी कोई पशु या पक्षी हैं। गणेश जी का वाहन चूहा, तो शिव का वाहन नंदी बैल। दुर्गा देवी सिंह पर सवारी करती है तो विष्णु का वाहन पक्षी गरुण है। कार्तिकेय मोर की सवारी करते है। मृत्यु के देवता यमराज का वाहन भैसा है।
रामकथा कहने में काकभुशुण्डि, जो कौवे के शरीर वाले एक ऋषि थे का कोई मुकाबला नहीं। फिर राम की वानर सेना के पराक्रम को कौन नहीं जानता।
इन सारी बातों को याद करने का कारण कौए ही हैं।
मेरी कालोनी में मेरे आवास के ठीक बाहर एक अंजाना बड़ा पेड़ है। किसी ने बताया था चेरी का पेड़ है। उसमें छोटे छोटे बेर जैसे फल लगते हैं जिनमें न पक्षियों की रूचि है न मनुष्यों की। उन्हें कोई लेता नहीं। सब झड़ कर जमीन पर बिछे रहते है। उस पेड़ पर कुछ अन्य पक्षियों के साथ बहुतायत में कौवे रहते हैं। हमारा निवास दो मंजिलें मकान की दूसरी मंजिल पर है। पेड़ का सघन हिस्स्सा मेरी बालकनी के सामने है और उसकी शाखायें मेरी बालकनी को छूती हैं।
पशु पक्षियों को दाना पानी देना मेरी पत्नी के संस्कारों में से एक है। वह कभी कभी कौवों को भी कुछ खाने को दे देतीं हैं।
आश्चर्य जनक बात ये है कि उस पेड़ पर सैकड़ों कौवे व् अन्य पक्षी रहते हैं लेकिन एक कौवे ने मेरे घर से मिलने वाले खाद्य पदार्थों पर अपना एकाधिकार बना लिया है । कभी कभार कोई अन्य कौवा अगर मेरी बालकनी में उसके समय पर आता है तो वह उसे लड़ कर भगा देता है।
कमाल ये भी है। सुबह दोपहर और शाम को हमारे नाश्ते, खाने और शाम की चाय के निश्चित समय पर वह हमारे घर की बालकनी की मुंडेर पर आ बैठता है और कांव काँव करने लगता है और खाने को जो भी देते है लेकर उड़ जाता है और आसपास की किसी छत पर या पेड़ की किसी डाल पर बैठ कर खाता हैं।
मुझे कभी कभी हंसी आती है कि लोग रंगबिरंगी चिड़ियाँ, तोता, मैना या कबूतर जैसे पक्षी पालते है।
मेरे यहाँ कौवा पल गया है। वह हर रोज निश्चित समय पर आकर हक़ से अपने हिस्से का भोजन मांगता है। इसके के लिये वह बालकनी के दरवाजे की और मुँह करके कांव कांव करता है। उस समय उसके हाव भाव बड़े मासूम होते हैं। कौवा बहुत चालक पक्षी माना जाता है। यह बड़ा सजग भी होता है। कभी किसी कौवे के करीब जाने की कोशिश कीजिये , पकड़ना तो दूर की बात है वह आपको अपनी तरफ आता हुआ देख कर ही उड़ जायेगा।
मेरे घर आने वाला कौवा विश्वास पूर्वक हमारे काफी करीब आ जाता है।
सच बतायें तो पहले कौवे का बोलना कर्कश लगता था। अब उसकी बोली में भी मिठास लगती है।
आजकल भी करोना वायरस के डर से लोगों से मेल मुलाकत लगभग न के बराबर होती है। अतः उस कौवे का आना अच्छा लगता है। लगता है अपना जान पहचान वाला कोई तो है जो नियमित मिल जाता है। थोड़ा नहीं बहुत मन बहल जाता है।