पलायन
पलायन


आज लॉक डाउन के समय हम बस टीवी ही देखे जा रहे थे।टीवी में हर चैनल में मज़दूरों का पलायन दिखाया जा रहा था, जिस से हम क्या कोई भी अंदर से हिल सकता था।
भाई ने कहा छोड़ दो टीवी को।बंद कर दो।हम शतरंज खेलना शुरू करते है।
शतरंज का काले सफेद मोहरों वाला खेल हम सब भाई बहनों को शुरू से ही अपनी ओर खींचता रहा है।जब भी हम भाई बहन मिलते है तो हमारा फ़ेवरेट टाइम पास यही शतरंज का खेल होता है।
सब लोग आ गये और हँसी खुशी में हमारा खेल शुरू हुआ।मैंने खेल शुरू करने के लिए एक सफेद प्यादे को हाथ मे उठाया ही था तो मेरी आँखों में टीवी वाली मजदूरों के पलायन की तस्वीरें कौंध गयी।मेरे मन मे थॉट आया कि देखो सरकार ने सारी इंटरनॅशनल फ्लाइट्स और डोमेस्टिक फ्लाइट्स सब कैंसिल की गयीं थी और lockdown लगाया तो मज़दूरों के इसतरह पलायन के बारे में तो किसी को भी ख्याल नही आया और ना ही किसी ने भी सोचा था।
मैंने अपना प्यादा आगे बढ़ाया।और खेल शुरू हुआ।लेकिन मजदूरों के पलायन की ख़बर मेरे जेहन से जा नही रही थी।मैं सोचने लगी,'ये बड़े बड़े और चमकद
ार शहर क्यों इन मजदूरों को सुहा नही रहे है?सपनों की ऊँची उड़ान भरने के लिए शहर गए ये मज़दूरों की फौज क्यों खुद को असहाय,विवश पा रही है?उँची ऊँची बिल्डिंग जो उनके हाथों से बनकर तैयार हुई थी आज उन्हें वे सब उनकी तरफ पीठ फेरती सी क्यों नजर आ रही है? इन बड़े शहरों ने उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया।अब वह लोग कैसे उन बेहिस शहरों में रहे?'
भाई ने कहा,"अरे, तुम अपना ऊँट तो बचाओं।पता नही आज कैसे खेल रही हो?"
एक प्यादे को आगे रखते हुए अपना ऊँट बचाने के लिए मैंने चाल चल दी।मुझे लगा कि मैंने अपने ऊँट को तो बचा लिया इस एक प्यादे को आगे करते हुए।लेकिन इन मजदूरों को कैसे बचाया जाएं?
टीवी के रिपोर्टर की बात मेरे कानों में गूँजने लगी कि सरकार के नुमाइंदे भी इनकी सुध नही ले रहा है।
शतरंज के राजा,वजीर,हाथी,घोड़ा और ऊँट जैसे मोहरे बेजान होते है।लगता है सरकार और उसके नुमाइंदे भी बेजान और बेहिस हो गए है।
जब सारे प्यादे पलायन कर जायेंगे तब कौन राजा या वजीर रह सकता है?
बिना प्रजा का कोई राजा होता है भला?