फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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"अभी तक सो रही है! शाम के 6 बज गए हैं। कब चाय बनेगी? जल्दी करो, तुम्हारे पापा जी कब से इंतजार कर रहे हैं। तुम्हें सुनाई भी दे रहा है क्या? या कान में रुई डालकर सो गई हो क्या? जल्दी बना दो।"

"आ रही हूं मम्मी जी, वो थोड़ा सिरदर्द कर रहा था, तो दवाई लेकर लेटी तो नींद आ गयी। "

"ये तुम्हारा रोज का बहाना है, अब जाकर चाय बना दो। उसमें चीनी कम ही डालना और अदरक, इलाइची जरूर डालना।"

"ठीक है मम्मी जी" 

"सुनो रिया बहू, अभी शर्मा अंकल आंटी आएंगे, डिनर हमारे साथ ही करेंगे। तुम मटर पनीर की सब्जी और आलू गोभी की सब्जी, पाइनएप्पल वाला रायता और शाही पुलाव के साथ चपाती बना लेना। और थोड़ा ड्राइंगरूम की सफाई भी कर लेना, डस्टिंग कर लेना और कोई साड़ी पहन लेना। क्या ये सलवार सूट पहन कर बहनजी बन जाती हो और अब मुझे परेशान मत करना, मेरा ध्यान का समय हो गया है तो मैं मंदिर में बैठी हूं।" 


रात के 8 बजे तक अंकल आंटी भी आ गये, उनके आते ही घर का माहौल ही बदल गया। मम्मी जी तो उछल उछल कर काम कर रही थी और रिया अपनी साड़ी में उलझ कर कभी मम्मी जी और कभी काम को देख रही थी। तभी रोते हुए मुन्ने को अपने पति रवि की देकर खाना बनाने में जुट गयी।

पापा, मम्मी जी और अंकल आंटी, रिया के पति और उसकी बेटी ने मिलकर खाना खा लिया और अब रिया की बारी थी। तो मम्मी जी बोल पड़ी "अपना खाना ले लो और मुन्ने को लेकर अपने कमरे में चली जाओ। हम सब ड्राइंगरूम में बैठकर थोड़ी बातें करेंगें।"

"अच्छी बात है मम्मी जी" रिया बोल कर आने कमरे में चली गयी।

रिया की बेटी आइसक्रीम की ज़िद करने लगी तो उसकी सास बोली "अरे रवि इसे ले जा आइसक्रीम दिलवा कर ले आ। फिर वो दोनो भी चले गए। 


अब शुरू हुई मम्मी जी की कहानियां, जिसमे किसी न किसी बहाने से रिया का ज़िक्र आ ही जाता था। उसका उठना, बैठना, चलना, बात करना, काम करना, बच्चों के पालने, उनकी परवरिश को लेकर सभी किस्से आकर रिया पर ही खत्म होते थे। आज भी यही था। 

उनकी ये सब बातें रिया सुनकर भी अनसुना कर दिया करती थी क्योंकि जब आपको साथ रहना होता है, तो छोटी छोटी बातों को अपने दिल से नहीं लगाना चाहिए। रवि भी अपनी माँ के व्यवहार को जानता था तो वह हमेशा रिया से कहता कि "तुम मेरी माँ की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया करो।" रिया को सब सुनाई दे रहा था, लेकिन रोज की तरह रिया चुप थी। लेकिन आज उसने मन में ठान लिया कि आज तो वह अपनी सास से इस बारे में बात जरूर करेगी।


सबके जाने के बाद रिया अपनी सास के कमरे में गयी और बोली "आज तो हद ही पार कर दी मम्मी जी आपने। हर बार मैं आपकी बातों को अनसुना करती रही क्योंकि मुझे मेरे घरवालों ने सिखाया है कि बड़े कोई बात बोल भी दें तो बुरा नहीं मानना चाहिए। बड़ों की बातों में कड़वाहट हो तो, वो भी आपके लिए मिश्री होती है, जिसका पता आपको बाद में लगता है। मेरे माता पिता के दिये संस्कारों के कारण ही मैं आज तक चुप थी, लेकिन अब और नहीं। आज आपने आंटी जी के सामने मेरी बुराइयों की वो तो ठीक, लेकिन मेरे माता पिता के बारे में बोलने का आपको कोई हक नहीं है। मैंने पहले दिन से ही इस घर को अपना समझा, सबके साथ रिश्तों को निभाया लेकिन फिर भी मैं पराई ही रही कभी आप सबने मुझे अपने परिवार का हिस्सा नहीं माना।

आपको मेरे परिवार वाले जब पसंद नहीं थे तो रिश्ता ही क्यों किया था। आपके अब ये सब कहने से कुछ नहीं होने वाला, जब आपने मुझे अपने बेटे के लिए पसंद किया था तब देखना था। अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। अब जब हमें एक साथ रहना है तो आपको अपने व्यवहार को सुधारने की जरूरत है। यदि आप इसी प्रकार से आने वालों के सामने मेरे परिवार वालों की बुराई करोगे, मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करोगे, तो फिर आप भी देख लेना। भगवान ने मुझे भी ज़ुबान दी है जो बोलना बहुत अच्छे से जानती है। फिर मत कहना कि रिया तुमने ये क्या किया।"


इतना कहकर रिया वहां से चली गयी और सास आने वाले ख़तरे को देखकर चुपचाप रिया को देखती रही।



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