पहाड़ों की एक शादी

पहाड़ों की एक शादी

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मैं अक्सर पहाड़ों में ट्रैकिंग के लिए जाता रहता हूँ। मेरी ये कोशिश होती है कि मैं किसी होमसटे में ही रहूँ ताकि मुझे उस जगह के रीति रिवाजों को जानने

का मौका मिले और साथ ही साथ उस जगह के खानपान का भी स्वाद चख सकूँ। इस बार मैं हिमाचल के दूर दराज के एक गाँव में रुका। जिस घर में मैं इस बार रुका था उस का मालिक रौनक सिंह मेरी ही उम्र का था। पढ़ा लिखा भी था। हम अक्सर कुछ वक़्त बातें कर लेते थे। उसी दौरान गाँव में एक शादी थी। रौनक सिंह ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उस शादी में जाना चाहता हूँ और पहाड़ों की शादी के रीति रिवाज देखना चाहता हूँ। मैं भी काफी उत्सुक था और झट हाँ कर दी। अगले दिन ही शादी थी। हम दोनों लड़की वालों के घर पहुँच गए। पहाड़ों में लोग बड़े सीधे सादे और खुश मिज़ाज होते हैं। उन्होंने मेरे साथ ऐसे बर्ताव किया जैसे कि मैं कोई वशिष्ट मेहमान हूँ। एक लड़का मेरे लिए कुर्सी ले आया और चाय के लिए मेज भी लगा दी। इतने में बारात आ गयी दूल्हे को एक बड़े सोफे पर बैठाया गया।

लड़के और लड़की वालों के रिश्तेदार आपस में मिलनी कर रहे थे। लड़की वाले लड़के वालों को एक लोई और शगुन के पैसे दे रहे थे। लड़की के पिता काफी गरीब लग रहे थे पर शादी के इंतज़ाम से लगता था शायद उन्होंने कुछ कर्ज लिया होगा। मैंने रौनक सिंह से पूछा तो उसने कहा की शादी पर कर्ज लेना तो आम बात है। इतने में दारू का दौर भी शुरू हो गया। पहाड़ी लोग मेहनती बहुत होते हैं और जश्न के मौके पर दारू भी जी भर के पीते हैं। एक आदमी नशे में टुन्न होकर नागिन डांस करने लगा। कुछ लोग उसे मना भी कर रहे थे पर वो मान ही नहीं रहा था। दूल्हा दुल्हन की जयमाला और फेरे होने के बाद विदाई का वक़्त भी आ गया। इस दौरान वहां लगातार मंगल गीत गाए जा रहे थे। रौनक सिंह मुझे उन हिमाचली लोक गीतों का हिंदी में मतलब

समझा देता था। पहाड़ों में ज्यादातर लोक गीत प्रकृति पर आधारित होते हैं। विदाई के लिए दुल्हन को डोली में बिठा दिया गया। बारात पास के

ही एक गाँव में जानी थी तो दूल्हा और बाकी लोग पैदल ही चल रहे थे। मैं भी उनके साथ साथ चल पड़ा। रास्ते में हलकी बूंदा बांदी होने लगी और फिर बर्फ पड़ने लगी। उन लोगों को थोड़ी परेशानी हो रही थी पर मैं इस मौसम का आनंद ले रहा था। कुछ देर चलने के बाद मैं वापिस आ गया। मेरे लिए ये सफर बहुत यादगार रहा।



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