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Sandeep Murarka

Others

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पद्मश्री प्रो. दिगम्बर हांसदा

पद्मश्री प्रो. दिगम्बर हांसदा

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जन्म : 16 अक्टूबर 1939

जन्म स्थान : दोवापानी, पोस्ट बेको, घाटशिला क्षेत्र, जिला पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड

वर्तमान निवास : सारजोम टोला, करनडीह, जमशेदपुर

पिता : *सुरबलि हांसदा*

माता : *सोमाय हांसदा*

जीवन परिचय - प्रो. दिगम्बर हांसदा का जन्म जमशेदपुर के समीप गांव दोवापानी में एक ट्राइबल कृषक परिवार में हुआ था। कुशाग्र बुध्दि हांसदा की प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई, उन्होने बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाई स्कूल से दी। उन्होने 1963 में राँची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और 1965 में एमए किया। उसके बाद टिस्को आदिवासी वेलफेयर सोसायटी से जुड़ गए। कॉलेज के दिनोँ से ही प्रो. हांसदा समाजसेवा व ट्राइबल्स हितों की रक्षा के कार्यों में रुचि लेने लगे थे। इनकी पत्नी पार्वती हांसदा का स्वर्गवास हो चुका है , इनके दो पुत्र पूरन एवं कुंवर और तीन पुत्रियाँ सरोजनी व मयोना एवं एक पुत्री तुलसी का निधन हो चुका है। 

योगदान - ट्राईबल्स और उनकी भाषा के उत्थान के क्षेत्र में प्रोफेसर हांसदा का महत्वपूर्ण योगदान है। वे केन्द्र सरकार के ट्राईबल अनुसंधान संस्थान एवं साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे और उन्होंने सिलेबस की कई पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स संग्रहित किया। उन्होंने भारतीय संविधान का संथाली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद करने के साथ ही कई पुस्तकें भी लिखीं । स्कूल कॉलेज की पुस्तको में संथाली भाषा को जुड़वाने का श्रेय प्रो दिगम्बर को ही जाता हैं। प्रो. हांसदा लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे। रिटायरमेंट के बाद भी काफी समय तक कॉलेज में संथाली की कक्षाएँ लेते रहे।

वर्ष 2017 में दिगंबर हांसदा आईआईएम बोधगया के गवर्निंग बॉडी के सदस्य बनाए गए । प्रो हांसदा ने ग्रामीण क्षेत्रो में टाटा स्टील एवं सरकार के सहयोग से कई विद्यालय प्रारम्भ करवाए। प्रो. हांसदा ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संथाली भाषा) के सदस्य रहे है, सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर , ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जोहारथन कमिटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे, जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संथाली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नयी दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रह चुके हैं।

दिगंबर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी काम किया। ज्वलंत समस्या पत्थलगढी को गलत परम्परा मानने वाले विद्वान प्रो. हांसदा सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले वृहत व्यक्तिव के स्वामी हैं। 

ट्राइबल्स में शिक्षा के प्रसारक, शिक्षाविद, साहित्यकार, ट्राइबल एक्टीविस्ट, समाजसेवी व उससे बढ़कर नेक इंसान के रूप में प्रो. हांसदा से झारखण्ड की अलग पहचान है। 

कृतियाँ - सरना गद्य-पद्य संग्रह, संथाली लोककथा संग्रह, भारोतेर लौकिक देव देवी, गंगमाला , संथालों का गोत्र

सम्मान एवं पुरस्कार - वर्ष 2018 में संथाली भाषा के विद्वान ' प्रो. दिगम्बर हांसदा' को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। ऑल इण्डिया संथाली फिल्म एसोसिएशन द्वारा प्रो. हांसदा को लाईव टाइम ऐचिवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया है। वर्ष 2009 में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन ने उन्हे स्मारक सम्मान से सम्मानित किया वहीँ भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा उन्हें डॉ. अंबेदकर फेलोशिप प्रदान किया जा चुका है। इंटरनेशनल फ्रेंडशीप सोसायटी नई दिल्ली ने इनको भारत गौरव सम्मान से सम्मानित किया हैं , इसके अलावा 37 बटालियन एनसीसी व अन्य कई संस्थानो  द्वारा प्रो. हांसदा को सम्मानित किया जा चुका हैं।


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