sonal johari

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पार्ट 20 :-क्या अनामिका बापस आयेंगी ?

पार्ट 20 :-क्या अनामिका बापस आयेंगी ?

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आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि सूरज और अंकित जब अनामिका के घर जाते हैं तो डर की वजह से सूरज अंकित को जबरदस्ती बापस ले आता है और साथ ही कॉलेज से पता कर ये बताता है कि अनामिका नहीं रही,अंकित पुलिस स्टेशन जाकर इंस्पेक्टर नवीन से मिलता है ..और सूरज से बातचीत के दौरान उत्तेजित होकर घर से निकल जाता है ..अब आगे

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

नवीन अनामिका केस की फाइल चेक करने के बाद ..राव सर से मिलने पहुंच गया ...राव सर, ऑफिस से निकलने की तैयारी में थे ,कुछ जरूरी फाइल और पेपर बैग में रख रहे थे ..नवीन को देखा तो ठिठक गए और बोले

"नवीन ...तुम ...अचानक...कैसे आना हुआ "?


नवीन :-"क्यों मेरा आना आपको अच्छा नहीं लगा "?


राव सर:-(फीकी सी मुस्कान के साथ ) पुलिस वालों का आना किसे अच्छा लगता है "?


नवीन :-"हा.. हा.. हा ...अह... अह ...बात तो ठीक है 

(कुर्सी पर बैठते हुए ) यूँ ही आज चौक वाली रोड से होकर गुजर रहा था...एक केस के सिलसिले में ...तो नजर उस बंगले पर चली गयी ..आप की याद आ गयी सोचा मिलता चलूँ ..एक कप चाय भी हो जाएगी .."    


राव सर:-"हम्म ..(संपत की ओर देखकर ) जरा कहो किसी से केंटीन में,.. कि दो कप चाय भेजे और साथ में कुछ खाने को ...संपत के हटते ही नवीन खोजी आंखों से इधर उधर ताकते हुए "सुना है राहुल..आपका भतीजा आ गया है विदेश से ...कुछ मॉल -वॉल का काम शुरु करने वाले हैं आप यहाँ ...बंगले पर"


राव सर :- (सारी फाइल रखने के बाद बैग साइड में रखते हुए )

"हम्म सही सुना है ...एक दो दिन में काम शुरू करेंगे "


नवीन :-"क्या आप बता सकते हैं कि किससे खरीदा है आपने ये बंगला "? 


राव सर :-"हाँ ..क्यों नहीं ..माणिक चंद से...तुम क्यों पूछ रहे हो ?"


नवीन :-"ऐसे ही....मॉल की जरूरत क्या है ? ...अच्छे खासे रहने की जगह है 


राव सर:- "इतना बड़ा हादसा हुआ है ...वहाँ रहना तो दूर कोई झांकना तक नहीं चाहता ...राहुल तो बड़ी मुश्किल से संयत होने भी लगा था ...लेकिन ... "


नवीन :-(राव सर के चेहरे पर नजर गढाते हुए )" लेकिन क्या"?


राव सर :" अंकित ...बड़ा तमाशा कर दिया उसने ...उसे लगता है अनामिका जीवित है ...ना सिर्फ इतना बल्कि वो उससे प्रेम करता है और कहता है दो दिन पहले मिला है उससे "


नवीन :-" हो सकता है मिला हो..." तब तक चाय आ गयी.... और बड़ी फुर्ती से नवीन ने कप उठा कर चाय में एक सिप कर लिया ..राव सर उसे घूर कर देखते रहे और बड़े संजीदा होकर बोले..

राव सर :-" नवीन ...मौत हुई है उसकी..."


नवीन :-"क्या पता कोई रसूख वाला.. पैसे के लिए झूठ बोल रहा हो ..लड़की को गायब कर दिया हो "


राव सर :-" और लड़की क्यों गायब करेगा कोई "?


नवीन :-" प्रोपर्टी के लिए लोग अपने संबंधी लोगों तक को मार देते हैं ....ये तो फिर भी लड़की को गायब कराना है ....' 


राव सर :-"मुझे ऐसा क्यों लगता है ..अंकित मिला है तुमसे ..."


नवीन :-" अगर मिला भी है तो ...क्या बुराई है इसमें ?...सबको अधिकार है.. कानूनी मदद का "


राव सर :-" ये ना तो कानून है ...और ना ही मदद ...बस्स पागलपन है ..महीनों हो गए अनामिका की मौत को ...तुम तो पुलिस में हो ...फाइल उठा कर देखा होता "


नवीन :-"प्रोपर्टी के लिये लोग सालों साल घपला करते हैं ...ये तो बस्स महीनों की बात है ...वो दो दिन पहले ही मिला है उससे ...पागल तो है नहीं अंकित ...जो उसकी बात को झुठला दिया जाए ...रही बात फाइल की..? बन्द फाइल को खोलने में देर कितनी लगती है..?


राव सर :--"ये तुम कह रहे हो? ....तुम वही हो ना ? जिसे रुचिका केस में अंकित सीधे -सीधे अपराधी लग रहा था"?


नवीन :-"शक था मुझे उस पर...शक करना हमारी ड्यूटी का हिस्सा है....जैसे (घूरते हुए ).. इस वक़्त... मुझे आप पर शक है"


राव सर:-(आवेग में आते हुए ) "तुम पागल हो चुके हो ...सच कहते हैं लोग पुलिस वाले किसी के सगे नहीं हो सकते ...निकल जाओ यहाँ से ..मैंने कहा नि...क...लो "


नवीन :-"मैं भी ...रुकने नहीं आया यहाँ...जल्द लौटूंगा... बंगले पर स्टे के आर्डर के साथ ...समझे चाचा जी "

अपना अपना कैप मेज से उठाया और तेज़ी से चलता हुआ बाहर निकल गया ...उसके बाहर निकलते ही राव सर 'धम्म ' से कुर्सी पर बैठ गए ,खुद को संयत करने के लिए ,उन्होंने उंगलियों को बालों में फेरते हुए आंखे बंद कर ली .....

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नवीन ,अनामिका केस की फाइल पढ़ ही रहा था ...कि अंकित हाँफता हुआ पहुंच गया उसके पास ...मेज़ पर दोनो हाथ रख नवीन की ओर झुक गया और बोला

"कुछ ...पता लगा नवीन सर "?


नवीन :-"क्या हुआ तुम्हें ...तबियत खराब लग रही है तुम्हारी "


अंकित :-(बुझी आवाज में ) "तबियत ...हुम् ....मुझे मेरी जिंदगी खराब लग रही है ...एक -एक पल नरक के समान बीत रहा है ...आप बताइए ना...कुछ पता लगा ? "


नवीन :-(अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए )"

अंकित....हिम्मत मत हारो...मैं गया था राव से मिलने ...केस थोड़ा पेचीदा है ..तहकीकात करने में थोड़ा वक्त लगेगा ..भरोसा रखो कोई कसर नहीं छोडूंगा "


अंकित :-(नवीन का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए)"तब तक उसे कुछ हो गया ..तो ...उन लोगों ने उसे कहीं कोई नुकसान पहुंचाया तो .....तो क्या होगा "?


नवीन :-"भावुकता से नहीं ...दिमाग से सोचो ..कुछ करना ही होता तो उन्हे ...तो अब तक क्यों जीवित रखते ..तुम उससे कैसे मिल पाते ?......सोचने वाली बात ये है कि पांच महीने पहले जो लड़की अखवारों में मर चुकी है ...तुम्हारे अनुसार जिंदा है ....कल उस बंगले की सर्च कराता हूँ"


अंकित :-"अभी क्यों नहीं ? ...अभी चलिये मेरे साथ ...चलिये "


नवीन :-(अचकचाते हुए ) "मैं पुलिस में जरूर हूँ ...लेकिन ऐसे पुराने बंगले ..और अंधेरे से मुझे पता नहीं क्यों...वो ...वो "


अंकित :-"क्या ?


नवीन :-(मुँह फेरते हुए ) मैं सहज महसूस नहीं करता ...कल जाऊंगा दिन में टीम के साथ ...वैसे भी आज जब देखा दूर से तो, ....वो सिवाय एक पुराने और सुनसान बंगले के अलावा कुछ नहीं...मुझे नहीं लगता कुछ हो सकता है वहाँ..फिर भी ....जाऊंगा तुम्हारी खातिर "


नवीन की ये बात सुन अंकित चिड़ गया और हाथ झटकते हुए वहाँ से निकल गया ..."अंकित ..सुनो तो ..."नवीन ने आवाज दी ..लेकिन उसने अनसुना कर दिया ...

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अंकित पहली बार अनामिका के घर की ओर चलते चलते थक गया था ... अपने दोनों हाथ घुटनो पर रख कर कुछ देर हांफता रहा फिर आगे बढ़ा ..रोड से नीचे जाने वाले रास्ते पर कदम रखा ...सुखी पत्तियों की आवाज ने पहली बार उसका ध्यान खींचा ...एक पल वो ठहरा और आगे बढ़ गया ..बेहद अंधेरा और दमघोंटू वातावरण लगा उसे ..जो रास्ता उसे दूधिया रोशनी से डूबा लगता था..आज बेहद सुनसान... वो बुदबुदाया 'सब सूरज की बातों का असर है ' सिर झटक कर आगे बढ़ा... अनामिका के घर के बाहर तो ,वही फिर पैर रखा ...फिर नियत जगह से दाएं ..और बाएं ..थोड़ी दूरी पर ...ये सोच कि शायद जगह भूल तो नहीं गया ..कई बार दोहराने के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो ...अँधेरे में नजरें गढ़ा.. मोटी तने की कल वाली लकड़ी उठा ली ..अभी दरवाजे में मारी भी ना होगी कि तेज़ कानफोड़ू झींगुरों की आवाज ने ध्यान भंग कर दिया ..फिर लगा जैसे उसके पीछे से कोई गुजरा हो ...वो तेज़ आवाज में बोला "अनामिका ...अनामिका ..."कोई उत्तर नहीं...उसने लकड़ी नीचे फेंक दी ...और सिर उठाकर बंगले को ऊपर तक देखा ...हमेशा रोशनी में जगमगाता ये बहुत वीरान और डरावना लगा...फिर खुद से बोला 'दुखी हूं ना ..हर चीज़ बुरी लग रही है' ....फिर उठा ली मोटी तने वाली लकड़ी और दे मारी दरवाजे में ...कई वार... लगातार... एक ही जगह चोट पड़ने से दरवाजा खुल गया ..उसने लकड़ी नीचे फेंकी पूरी ताकत झोकते हुए दरवाजा खोल दिया ..

अंदर धुप्प अंधेरा जहाँ -तहाँ से बस्स चांद की रोशनी ही थी जो खुली खिड़कियों से अंदर आ रही थी ...उसी के सहारे वो आंखों पर पूरा जोर दे देकर देख रहा था ..."अनामि...का ".....कहाँ हो तुम " ...देखो.. मैं ...अंकित ....तुम्हारा अंकित आया है ..." ऊपर लटकते झूमर पर नजर डाली ...हमेशा रोशनी बिखेरता झूमर मानों मुंह बायें खड़ा हो ....फिर खुद से ही बोलते हुए ...सब इतना सुनसान क्यों लग रहा है ...किचिन ...हां किचिन में देखता हूँ ...किचिन में मानो किसी ने धूल झोंक दी हो ...जाले और गंदगी से भरा हुआ..'ये ये क्या ...अभी दो तीन पहले उसने मुझे खाना खिलाया था ...हांफता सा बाहर आया सीढिया देखी तो उसे याद हो आया ...यही ...यहीं ..उसे बाहों में लिया था मैंने..."..वो उसी सीढी पैर रख कर उसे महसूस करने लगा .

..'अनामिका ...कहाँ ...हो ....तुम ...कहाँ.... हो "

वहाँ से आगे बढ़ा और टैरेस पर चला गया ...जोर से बोला 'यहाँ ...मैंने तुम्हें प्रपोज किया था अनामिका ...तुमने कितने प्यार से मेरे लिए खाना बनाया था....यहाँ...यहाँ टेबिल रखी थी ..यहाँ तुम बैठी थी...टेबिल ...यहीं होगी (इधर उधर देखते हुए) टेबिल नहीं दिखती तो .. 

झाड़ और कबाड़ हटाते हुए देखता है ...लेकिन कहीं नहीं दिखती ...हताशा में उसकी आंखों से आँसू निकल आते हैं..ये सब है क्या ...ना टेबिल ...ना .. कुर्सी ...अररे ....मैं भी कैसा पागल हूँ... उसने नीचे रख दी होगी ..हाँ यही होगा ...फिर टैरेस से नीचे की ओर झाँकते हुए वहाँ ...वहाँ ...मैं तुम्हारे साथ बैठा था...तालाब के पास ..,

फिर सीढियों से उतरते हुए नीचे आता है ..और बंगले के पीछे की तरफ जाकर सबसे पहले तालाब तक जाता है ..हाथ से पानी छूने के लिए वो तालाब में हाथ डालता है लेकिन पानी की एक बूंद तक नहीं ..उसका आश्चर्य से मुँह खुल जाता है...ये ...ये..क्या ..ये तो पानी से भरा हुआ था ..बत्तख थी इसमें ...ना जाने कहाँ गए या शायद अंधेरे में ...नहीं चाँद की रोशनी तो है ...शायद मन ही दुखी है मेरा ....कि एकाएक नजर गमले पर चली जाती है ...दौड़ते हुए गमले को उठा लेता है...उसे ऊपर की ओर उठा कर ..दूसरे हाथ को ऐसे मोड़ता है जैसे अनामिका को उठा लिया हो...फिर मुस्कुरा कर 

"देखो ....अनामिका.. सारी जिंदगी तुम्हे ऐसे ही उठाये रख सकता हूँ"...

'हऊ ..ऊ ..ऊ ' करती सियारों की रोने की आवाज से अंकित की ध्यान भंग हुआ ...लेकिन ना उसे डर ना कोई घबराहट ..जोर से बोला मार डालो मुझे ..बिना उसके ये जिंदगी है भी किस काम की

'अनामिका ...ओह्ह ...कहाँ हो तुम ...कहाँ.. हो ....लौट आओ.... नहीं जी पाउँगा तुम्हारे बिना ...नहीं जी पाऊँगा...'

फिर नजर ..मिट्टी पर पड़ते ही...वो मिट्टी के पास गया .

.'तुमने उस दिन गमले में मिट्टी भर नहीं पाई थी ..मैं भर देता हूँ ...और गमले में मिट्टी भरने लगा ...निराशा ...हताशा ..और आशंका का मिला जुला रूप हुआ...और आंखों से आँसू बह निकले..और अंकित फफक -फफक कर रोने लगा ..कुछ पल में. बेहोशी छाने लगी ...और वहीं गिर गया ..कि अचानक सामने से एक तेज़ रोशनी उसे अपनी ओर आते दिखी ...ताकत लगा आंखे खोलने की कोशिश की ..देखने की कोशिश की तो लगा कि.रोशनी उसी की ओर बढ़ती आ रही थी..देखते रहने की कोशिश की...

लेकिन आंखे खोले रखने की हिम्मत नहीं बची अंकित में, और उसने आँखे बंद कर ली ...

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पंखे के चलने की आवाज की कानों में पड़ी ...उसने धीरे से आंखे खोल दी ...देखा सामने ..सूरज का चेहरा दिखा ...अंकित ने उठने की कोशिश की तो सूरज ने उसके कंधो को पकड़ते हुए बापस लिटा दिया "लेटे रहो अंकित ..बहुत कमजोरी है तुम्हें ..."


अंकित :-"मैं तो ...मैं.. तो वहाँ अनामिका के घर के बाहर था ...यहाँ कैसे "?


सूरज :-"कितना रोका तुम्हे ...गुस्से में तो किसी की सुनते ही नहीं तुम...मैं तो कपड़े भी पहने हुए नहीं था ...टी शर्ट ...पहनकर ...चप्पल डाली पैरों में... तब तक तो तुम मानो उड़ गए ...पीछे पीछे मै पहुँचा पुलिस स्टेशन ...नवीन ने बताया तुम अभी अभी निकले हो ...


अंकित:-(अपने सिर पर हाथ रखते हुए)...आह ...फिर "?


सूरज :-"क्या दर्द है ...(अंकित के 'ना ' में सिर हिलाने पर ) फिर क्या ...समझ गया मैं तुम वहीं गए होंगे ...मैंने बोला उससे कि कुछ सिपाहियों को मेरे साथ भेज दो ...लेकिन उसने मना कर दिया ...मुझसे भी वहाँ जाने को मना करने लगा ...


अंकित :-" हम्म ...फिर ..?"


सूरज :-"फिर क्या ...वहाँ बहुत अँधेरा होता है...टोर्च तो काम करने से रही ...मशाल जला कर ले गया ...और देखो...सही निकला मैं..वहीँ बेहोश पड़े थे तुम "


अंकित :-"तेज़ रोशनी देखी थी जो मेरे पास आती जा रही थी..फिर कुछ याद नहीं"


सूरज :-"मशाल लेकर मैं ही आ रहा था ...वही दिखी होगी ..अंकित ...मैंने वो दरवाजा खुला हुआ देखा यार ...तुमने... खोला ना "?


अंकित :-(शून्य में देखते हुए )" हम्म...लेकिन वो नहीं दिखी ...नहीं दिखी "

सूरज उसके कंधे पर हाथ रखते हुए"सब ठीक हो जाएगा यार "

अंकित :-"तुमने कहा वहाँ ,तुम्हें डर लगा था ...फिर कैसे गए "?


सूरज :-"कोई भी डर...तुम्हारी जान और हमारी दोस्ती से बढ़कर नहीं "

अंकित बढ़ा और उसने सूरज को गले लगा लिया 

"तुम्हारे जैसे दोस्त बड़े नसीब से मिलते हैं... पता नहीं कुछ कर भी पाऊँगा तुम्हारे लिए ...या नहीं "


सूरज :-"ऐसा क्यों बोल रहे हो ...कोई बिजनेस है क्या...तुमने जब मेरी जान बचाई मैंने तो शुक्रिया भी नही बोला ...याद है "?


अंकित :-(आंखों में चमक लाते हुए )" हे सूरज ...तुमने देखा था ना उसे ...


सूरज :-"किसे "?


अंकित :-"अररे ...अनामिका को यार और किसे ?...जब तुम खड्ढे में गिरे थे .उसने तुम्हें बाहर निकालने में मदद की थी" 


सूरज :-"मैं सच कहता हूँ.. यार मैंने झलक तक नहीं देखी थी भाभी की ...पहले भी कई बार याद करने की कोशिश कर चुका हूं"


अंकित:-"तुम उस वक़्त परेशान थे ...इसलिए नहीं देख पाया होगा तुमने ...वो ना होती तो शायद मैं तुम्हें उस दिन खड्ढे में से निकाल नहीं पाता "

अंकित को संजीदा देखकर सूरज ने बात बदलते हुए कहा

"जब मैं तुम्हें लेकर आया तो तुम्हारी मुँह बोली माँ ने जोर दिया कि तुम्हें यहाँ ले आऊं ...और ये कोई डॉ शाहदुल्ला का क्लीनिक है ..हा हा हा ..


सूरज :-(मुस्कुराते हुए ) तुम भी यार ...अच्छे डॉ हैं ये ,पहले भी मां ला चुकी हैं यहाँ ...और ..'मुँह बोली '..क्या ...माँ सिर्फ माँ होती हैं ...सरोज आंटी मेरी माँ ही हैं ...है कहाँ वो ?"

सूरज :-(उंगली से सड़क की ओर इशारा करते हुए ) वो देखो ...वो आ रही हैं "

अंकित बुदबुदाते हुए ...ये बात पहले मेरे दिमाग मे क्यों नहीं आयी ...जैसे ही सरोज अंकित के पास आई ..अंकित उनका हाथ पकड़ते हुए "माँ एक बात बताओ ...याद है आपको जब अंकल ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया था ...


सरोज :-(नजरें चुराती हुई सी ) उन्हें माफ कर दे अंकित

..अपनी इस गलती को मान लिया है उन्होंने "


अंकित :-"अररे ...मुझे उनसे कोई नाराजगी नहीं ...आप सुनिए तो ...याद है जब आपके हाथ पर मैंने तीन हज़ार रुपए रखे थे ..


सरोज :-"हाँ ..हाँ ...याद है.(.फिर अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए) तुझे पैसे चाहिए ...बोल ना कितने पैसे चाहिए"


अंकित :-"पैसे नहीं माँ .वो लड़की ...वो जिसने आप के सामने पूछा था कि 'कितना किराया है' फिर उसने चार हज़ार रुपए दिए थे मुझे जिनमे से तीन हज़ार आपको दे दिए थे ...वो लड़की आपने देखी थी ना "


सरोज :-(सूरज की ओर देखकर फिर अंकित से ) कौन सी लड़की ? मैंने तो किसी को नहीं देखा था "


अंकित :-(आवाज तेज़ करते हुए) " कैसी बात कर रहीं हैं आप ? ठीक से याद कीजिये ना ...वो बिल्कुल मेरे पास खड़ी थी ...अररे आपके सामने ही तो उसने मुझे पैसे दिए थे"


सरोज :-"तूने पैसे दिए थे ..सच है ...एक हज़ार रुपये तेरे पास बचे थे... देखा था ...तू दरवाजे की ओर मुँह करके बात कर रहा था अजीब सा तो लगा ...फिर लगा तू परेशान है इसलिए ..


अंकित ,सूरज की ओर आश्चर्य से देखकर "ये बोले क्या जा रही हैं यार ..इनके बिल्कुल ठीक सामने थी वो "

सरोज दुखी होते हुए ,साड़ी का पल्लू मुँह पर रख कर

"मैंने किसी को नहीं देखा ...किसी को नहीं " सूरज ने अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "आराम से यार "

और सरोज वहाँ से उठ कर चली गयीं ....थोड़ी देर सूरज ,अंकित को डिस्चार्ज कर के घर ले आया ..शॉल ओढ़े और सिर पर पट्टी बाँधे अंकित के सामने जब दरवाजा खोलते ही सरोज दिखीं तो अंकित ने उनसे ये बोलते हुए कि

"माँ ..माफ कर दो मुझे..इतनी तेज आवाज में बात नहीं करनी चाहिए थी मुझे ..दरवाजे की ओट की वजह से नहीं देख पायी होंगी आप..जो हुआ भूल जाइए " 


सरोज :-(अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए ) "मैं तुझसे बिल्कुल नाराज नहीं हूं..बस्स ये तेरी हालत नहीं देखी। जाती मुझसे...अच्छा तुम दोंनो ऊपर जाओ

मैं कुछ अच्छा सा बना कर लाती हूँ"

दोनो अंकित के कमरे में आ गए ...और अंकित अपना सिर पकड़कर बैठ गया ..

अंकित :-"सिगरेट है क्या"?


सूरज :-" हाँ... है ..क्यों"?


अंकित :-"लाओ एक दो ..तो जरा "


सूरज :-"(आश्चर्य से) तुम पिओगे ? (अंकित के हाँ में सिर हिलाते ही ) हरगिज़ नहीं ...मैं तुम्हें इस राह पर नहीं मुड़ने दूँगा ..


अंकित :-"तुम देते हो या दुकान से लाऊ अभी "


सुरज :-"ठीक है ..(सिगरेट जला कर देते हुए) लेकिन देखो बस्स आज ...आदत नहीं पड़नी चाहिए "

पहला कश लेते ही अंकित को खाँसी आ जाती है और सूरज उसकी पीठ पर हाथ फेर ,उसे दिलासा देते हुए कहता है

"मैं तुम्हें देवदास नहीं बनने दूँगा,सब ठीक हो जाएगा.यार... फिक्र मत करो "


अंकित :-"तुम्हारी शादी को कितना वक्त हुआ होगा"?


सूरज :-"हुए होंगे चार या पांच साल ..क्यों"


अंकित:-"तुम्हें शुरू से ही पता था..कि ये शादी ठीक नहीं ...और आज भी वही लगता है ...इसका मतलब जानते हो ?"


सूरज :-(मुँह खोले हुए )"क्या कहना चाहते हो "?


अंकित :-" यही ...कि वक़्त के साथ कभी कुछ ठीक नहीं होता ...कभी नहीं ..हम ही हार मानकर ..मजबूरी का नाम लेकर समझौता कर लेते हैं ...फिर सारी जिंदगी तिल - तिल मरते रहते हैं"

सूरज के चुप होने पर अंकित ने कहना जारी रखा 

...तुम्हे दुःख नहीं पहुंचाना चाहता.. बल्कि समझाना चाहता हूँ,

सूरज :-"बात ठीक है तुम्हारी ....सच मे ठीक है .लेकिन फिलहाल तुम्हारे केस में अब तक जो सामने आया है ...सिवाय सब्र के और हो भी क्या सकता है.."


अंकित :-"..एक ही फलसफा रहा है मेरी जिंदगी का 'जब तक एक काम खत्म ना हो ,दूसरे काम को हाथ मत लगाओ ..चाहे वो पढ़ाई हो या जिंदगी.. मैंने यही नियम अपनाया है"


सूरज :-"अब तो सब कहते हैं... कि भाभी ..."


अंकित :-"सब से कोई मतलब नहीं मुझे ..प्यार मैं करता हूँ उससे ...सब नहीं....अगर किसी ने उसे गायब कराया है,तो चाहे जो हो.वो ..छोड़ूंगा नहीं उसे ...खुद गायब हुई है ..तब तो सामने आना ही होगा, ....उसे जवाब देना होगा मेरे सवालों का.(आवाज तेज़ करते हुए ) कोई मज़ाक है क्या ..अंकित की जिंदगी ?..कि कोई आया मेरे जज़्बातों के साथ खेला और चला गया ..कहाँ गयी होगी आसमान में? ...तो उतरेगी नीचे... अगर जमीन में होगी तो ,खड्डा खोद कर निकालूँगा.. मर गयी होगी ,तो रो लूंगा ..सब में समझौता किया है मैंने.. चाहे पढाई का फ़ील्ड हो..चाहे नौकरी हो ...या माँ का ना रहना .. जानते हो क्यों?..क्योंकि सौ परसेंट नहीं दिया अपनी ओर से कभी...लेकिन इस रिश्ते को ...अनामिका को ..सौ परसेंट दिया है ...और बदले में सौ परसेंट ही चाहिए मुझे ...एक परसेंट कम नहीं...


फिर सूरज को पाँच सौ रुपए पकड़ाते हुए "..सूरज ..एक या दो बोतल खरीद कर दे जाओ मुझे ..ताकि सो सकू और तुम अपने घर जाओ बीबी ..बच्चों को देखो ..मेरी फिक्र मत करो ..जब तक उससे मिल नहीं लूँगा.. ..देख नहीं लूँगा तब तक...हार नहीं मानूँगा... ना तो ये चेप्टर बन्द होने दूँगा ...ना ही मरूँगा..."


बात पूरी कर अंकित ने सिगरेट फ़ेंकी उसे अपने पैर से बुझाया और तेज़ कदमों से बाहर निकल गया .............

सूरज बड़े ध्यान से उसे सुनता रहा और अंकित के पीछे पीछे दौड़ गया....................................


अगला पार्ट जल्दी ही।



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