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मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Children Stories

4.6  

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

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पापा की गिफ्ट (कहानी)

पापा की गिफ्ट (कहानी)

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"चलो ये अच्छा रहा। आज से लॉक डाउन उन इलाकों से हटा लिया गया, जो इलाके ग्रीन जोन में आते हैं।" सिंह साहब ने अखबार का पेज पलटते हुए गहरी साँस ली।

" तो फिर पापा, हमारा इलाका कौन से ज़ोन में आता है? रेड में कि ग्रीन में।" दस वर्षीय बेटी ऐश्वर्या ने जिज्ञासावस पूछा।

"बेटी, हमारे इलाके में शुरू में तो कुछ कैरोना के पॉजिटिव केस निकले। लेकिन हमारे मुहल्ले की विकास समिति ने स्वास्थ्य विभाग को जांच कराने में पूर्ण सहयोग दिया। और उनके द्वारा जारी की गई सावधानियों का सख्ती से पालन किया। जिसके परिणाम स्वरूप पूरी तरह से उसकी रोकथाम की जा सकी। और जो पीड़ित थे वे भी शीघ्र ही ठीक भी हो गए। उन्हें क्वारीनटाइन के पश्चात छोड़ दिया गया। अब हमारा इलाका ग्रीन ज़ोन में है।"

" अरे ये तो अच्छा है। अब मैं दीपू के यहाँ भी खेलने जा सकतीं हुँ। है न?"

"नहीं बेटे। अभी कुछ दिन हमें सबसे एक निश्चित दूरी बना कर रखने की आदत डालनी सीखनी होगी।"

"तो फिर बाजार कैसे जाएंगे?" 

"बाजार की दुकानें भी अलग-अलग दिन खुलेंगे। एक साथ सभी नहीं खुलेगी।"

" पापा गिफ्ट की दुकान देखिये इसमें कब खुलेगी?"

"मैं देख कर बताता हूँ इसमें। .... अरे ये रहा, मंगलवार को।"

"मम्मी कह रहीं थीं इतने दिन में घर का सारा राशन खत्म हो गया और गुल्लक के पैसे भी।"

"अरे हाँ, मुझे पैसे भी तो निकलवाने जाना है, एटीएम पर। तुम लोगों ने जाने ही नहीं दिया। मेरे हाथ में जो भी कैश था वह तो पहले लॉक डाउन में ही निपट गया था। दूसरे लॉक डाउन में तुम्हारी मम्मी के पास बचत की जमा पूँजी भी जाती रही। लेकिन तीसरे लॉक डाउन ने तो ऐश्वर्या, तुम्हारी गुल्लक ने कमाल ही कर दिया। मेरे बार-बार कहने पर भी तुम लोगों ने एटीएम पर संक्रमण का खतरा होने के कारण नहीं जाने दिया। सच कहूँ, तुम्हारी गुल्लक का सहारा न होता तो फिर मुझे निकलना ही पड़ता।" 

" अरे पापा, आपको पता ही नहीं है। मम्मी कह रही थीं। आपका जन्मदिन आने वाला है।"

"अरे हाँ, मैं तो भूल ही गया। अब इस विपदा की घड़ी में क्या जन्मदिन मनाएँगे? तुम्हें पता है कितने लोग मुसीबत में इधर से उधर मारे-मारे फिर रहे हैं।

- हाँ पापा, हमने भी यही सोचा है कि हम जन्मदिन सादगी से ही मनाएँगे। मम्मी केक, घर पर बना लेंगी। लेकिन पापा मुझे आपको गिफ्ट लेने जाना है। ले चलिये न आप हमें।"

""अब गिफ्ट की क्या ज़रूरत है? मैं थोड़ी कोई बच्चा हूँ। कभी भी ले लेंगे।"

"नहीं पापा प्लीज, मुझे तो आपको अभी ही गिफ्ट देनी है। आप कब बता रहे थे । जनरल स्टोर खुलने का दिन । अरे याद आया। मंगलवार। कल ही तो है।कल चलेंगे हम लोग, आपके लिए गिफ्ट लेने।"

"अच्छा बता, मेरी बिटिया रानी ऐसी क्या गिफ्ट दे रही है, जो बहुत जरूरी है?

"पापा मैं ने सोचा है। मैं आपको गिफ्ट में बहुत बड़ी सी गुल्लक दूँ।"

"ऐसा क्यों, बेटी?"

" ताकि , भगवान न करे फिर कभी ऐसी विपदा की घड़ी आए तो आपको पैसों की दिक्कत ही न आए।"

सिंह साहब ने गर्व से कहा- अरे मेरी बिटिया रानी तो बड़ी सियानी हो गई। और मम्मी-पापा ज़ोर से हंस दिए।



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