नतीजा

नतीजा

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मास्टर जी कक्षा में आये तो उनके गाल गुस्से में तमतमा रहे थे।

"मैं परीक्षा के दिन नहीं आया तो तुम लोगों ने खुले आम नक़ल की, सब ने प्रश्नों के एक से उत्तर लिख दिए ?"

सारी कक्षा सर झुका कर खड़ी हो गयी। पर मोहन, विनीत और कैलाश ज़िद पर अड़ गए।

एक बोला

"नहीं सर, हमने कोई नक़ल नहीं की। बस संयोग है ?"

दूसरा बोला

"सर हम पक्के दोस्त हैं न। साथ ही तैयारी की थी। बस इसलिए उत्तर भी एक जैसे हैं। "

तीसरा बोला

"मास्साब एक ही किताब से पढ़े इसलिए एक जैसा उत्तर लग रहा है। "

मास्टर जी ने भी कच्ची गोलियाँ थोड़े ही खेली थी।

बोले : "चलो अब तुम सब को बस एक प्रश्न का उत्तर लिखना है। उस एक प्रश्न के आधार पर ही तुम्हारे अंक मार्कशीट में लगेंगे।"

अब तीनों परेशान हो गए। जाने मास्टर जी क्या पूछ लें ?

मास्टर जी ने प्रश्न पूछा तो तीनों के चेहरे खिल उठे।

कितना आसान प्रश्न था। बस पचास शब्दों में ये लिखना था की इतिहास की किताब पढ़ कर क्या सीखा ?

तीनों खुशी -खुशी लिखने बैठे ही थे कि मास्टर जी की आवाज़ कक्षा में एक बार फिर गूंजी। फिर क्या, मास्टर जी की बात सुन कर तीनों के चेहरे पर मुर्दनी छा गयी।

मास्टर जी ने बस यही कहा था कि :

"ध्यान रहे। अंक तभी मिलेंगे जब संयोग से या एक साथ पढ़ाई करने के कारण या एक ही किताब से पढ़ने के कारण -तुम सब के जवाब एक जैसे हों। जवाब एक सा नहीं हुआ तो तीनों फेल। "

अब भी नतीजा बताने की जरूरत है क्या ??


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