Richa Baijal

Others

5.0  

Richa Baijal

Others

नई सुबह

नई सुबह

6 mins
406


"बीबीजी कुसुम का पति अब नहीं रहा "- कहकर 'रामप्यारी ' फफक फफक कर रोने लगी। साथ ही वो अपनी पांच साल की बच्ची को कोसती जा रही थी "अरी करमजली ,अब कौन तेरा हाथ पकड़ेगा ?" और उसकी बिटिया कुसुम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । बस वो यही समझ पा रही थी कि माँ रो रही है ।

"बीबीजी हम पीपलगंज जायेंगे , हम अब कुछ दिन काम पर नहीं आएंगे ।"- उसने आँखों के आंसू पोंछते हुए कहा । "इस करमजली के ससुराल जाकर आएंगे हम "- उसने मेरी तरफ देखकर कहा।

"लेकिन ,रामप्यारी ।इसमें इस बच्ची का कसूर क्या है ?" - मैंने कुसुम के सर पर हाथ रखते हुए पूछा।

"बीबीजी,आप नहीं समझ पाओगी , ये समाज के लिए अपशकुनी हो गयी है । अब इसका ब्याह कहीं और भी न कर पाएंगे हम । जो ससुराल वाले रख लें इसको तो पिंड छूटे हमारा ,बस ।एक तो लड़की जात, बस खर्चा ही कराउत।"-रामप्यारी ने अपनी समझ से कहा ।

कुसुम सहम कर मेरे पास खड़ी थी । उसकी मासूम आँखों में न जाने कितने प्रश्न थे । सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि क्या माँ छोड़ देंगी मुझको ? उसने मेरी साड़ी को पकड़ लिया था । मैंने उस मासूम को देखा ।

"नहीं , बेटा।कुछ नहीं हुआ है " - मैंने प्यार सेउसके गाल को सहलाया ।

"बीबीजी ।हम न लाने के अब इनको ।हम तो ई के सुसराल तै जाकर पैरों में पड़ जायेंगे उनके। अब से कुसुम वहीँ रहेगी "- रामप्यारी ने अपने घूँघट को कान पर चढ़ाते हुए कहा ।

"रामप्यारी ,उसको मालूम भी नहीं है शादी का मतलब ? क्या करने जा रही हो ,समझती हो ?"

"मेमसाब , लड़की का ससुराल ही उसका घर होवे। जो हम गौना कर चुके होते ,तो बिटिया वहीँ की होतीं ।

वैसे भी , ये तो उन पर है अब कि इसको रखेंगे या नहीं ?"'

"जो न रखेंगे ,तो ।?"

"सोचे ना हैं मैडम जी,चलते हैं अब "-कहकर वो जाने को हुई ।

"रामप्यारी , कुछ पैसा चाहिए तो बताओ "-मैंने पूछा ।

"न न मैडम जी , आपके तो वैसे भी बहुत एहसान हैं । हम आते हैं इसको उनके पास देकर ।"

"सुनो ,रामप्यारी ।कुसुम मेरी बेटी जैसी है । जो तुमको जाना है तो जाओ , इसे मेरे पास रख जाओ ।"-मैंने कुसुम की तरफ देखकर कहा ।

"बीबीजी , हम वहां क्या कहेंगे ?"

"कह देना , कि कुसुम पिछले साल ही गुज़र गयी ", मैंने पांच हज़ार रूपए उसकी हथेली पर रखते हुए कहा ।

"बीबीजी ,क्या कर रही हो आप ? कुसुम की फीस का खर्चा सब आप ही करती हो । अब और नहीं लें सकते आपसे ।"

"रख लें रामप्यारी ,बस कुसुम कहीं नहीं जाएगी" - मैंने उसे अपना फैसला सुना दिया था ।

"इस मोढ़ी को हम न रख पाएंगे मेमसाब , तुम नहीं समझ रही हो ।"- रामप्यारी ने विरोध किया ।

"कुसुम बेटा , जा कर गुड़िया दीदी के साथ खेलो "मैंने कुसुम को घर के अंदर जाने को कहा ।

वो फुदकती हुई मेरी बेटी के कमरे में चली गयी । मैं उसकी आँखों कि उस चमक को आज भी महसूस कर सकती हूँ ।

"रामप्यारी ,अब समझा ।क्या कहना चाहती है तू ?"-मैंने रामप्यारी के कंधे को सहलाते हुए कहा

"देखो बीबीजी ,मेरी पांच छोरियाँ हैं ; कुसुम के नीचे भी दो हैं ।अगर ये हमारे साथ रहेगी तो म्हारी छोरियों से कौन शादी करेगा ?"- रामप्यारी ने वो पांच हज़ार अपने पॉकेट में भरते हुए कहा था । साथ ही उसने गुटखे कि वो थैली निकाल कर मुंह में मसाला भर लिया था ।

 'ऐसा मालूम हो रहा था जैसे दुनिया में शादी के सिवा कोई काम ही नहीं था ज़रूरी '

"रामप्यारी ,जब तक बच्ची बड़ी नहीं हो जाती ,इससे मिलने आती रहना ,यहाँ काम पर आती रहना । मैं तुम से तुम्हारी बच्ची नहीं छीन रही ,कभी मन हो तो उसको आकर ले जाना । नहीं भी आओगी, तो ज़रूरी नहीं है ।"-मैंने उसे समझते हुए कहा ।

"मालकिन , हम ईके सुसराल वालों को क्या बताएँगे ?"- उसने ऑंखें घुमाते हुए पूछा था मुझसे ।

"रामप्यारी , पैसे कम पड़ें तो बता देना ; और ज़रूरत हो तो ले लेना "-मैं उससे ज़्यादा कुछ कहना नहीं चाहती थी ;बस इस वक्त मैं एक जीवन को बचाना चाहती थी ।


"माँ ,चाय लेंगी ?" - कुसुम की मीठी आवाज़ ने मुझे मेरे ख्यालों से जगा दिया था ।

२१ साल की कुसुम मेरे सामने खड़ी थी । 

"माँ ,सर दबा दूँ आपका ?"- मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना वो किसी कुशल डॉक्टर की तरह मेरे सर की मसाज करने लगी थी ।

"पढाई कैसी चल रही है ,बच्चे ?"-मैंने बंद आँखों से ही पूछ लिया उससे ।

"माँ , सब फर्स्ट क्लास चल रहा है ।"- वो बहुत खुश थी । उसका डॉक्टरी का पहला साल चल रहा था । और वो वेकेशन में अपने घर वापस आयी थी ।

कुसुम को कभी कुछ बताया नहीं मैंने । रामप्यारी को उसके पैसे लगातार मिलते रहे । कभी उसने अपनी बच्ची के बारे में पूछा नहीं मुझसे । कुछ साल तक तो वो हमारे घर काम करने आती रही , फिर उसकी तबियत ठीक नहीं रहती थी ,तब उसके घर से उसका आदमी पैसे लेने आ जाया करता ।रामप्यारी को कभी कुसुम का बस्ता और उसकी पढाई समझ में आयी ही नहीं ।

"बीबीजी ,कुसुम ठीक है न ।"- उसने पिछले बरस ही मुझसे पूछा था ।

"हाँ ,तेरी बेटी डॉक्टर बनने वाली है ।"-मैंने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा था ।

"बीबीजी , अब तो ऊ हमको पहचानती भी न होगी ।"- उसने मेरी आँखों में देखकर कहा था ।

मैंने कुसुम की अधिकतर पढाई बाहर ही कराई थी ।इसलिए वो रामप्यारी को भूल गयी थी । मुझे ही माँ बुलाने लगी थी अब ।

"।वक्त आने पर बता दूंगी ,रामप्यारी , बिटिया तो तेरी ही है ।" -मैंने उसे आश्वासन दिया था ।


"माँ ,माँ "-कुसुम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया था ।

"माँ ,आप परेशान हो क्या ?"- कुसुम मेरी तरफ देख रही थी ।

 "माँ , आपकी तबियत ठीक है न , दीदी से बात हुई थी आपकी ?"-उसके हाथ प्यार से मुझे सहला रहे थे ।

"कुछ नहीं बेटा ,तुम जाकर पढाई करो ।"- मैंने आराम कुर्सी के पास पड़ी अपनी अधूरी 'नॉवेल' उठा ली थी । 

कुसुम अपने कमरे में चली गयी थी । मैंने तय किया कि रामप्यारी को कुछ समय और रुकने को कहूँगी । इस वक्त कुसुम की डॉक्टरी की पढाई चल रही थी और उसके दिमाग में ये सब डालने का कुछ भी मतलब नहीं था । वो रामप्यारी के साथ रहे , तब भी मेरी अपनी ही रहेगी । एक जीवन उस वक्त बचाना ज़रूरी था । मैंने कुसुम को चलना सिखा दिया था , अब कम से कम कहीं लड़खड़ाकर गिरेगी नहीं वो ।


मेरी ऑंखें सुकून से मुंद रही थी । कि तभी ऐसा महसूस हुई जैसे कोई 'शॉल' उढ़ा रहा हो । मैं उसके हाथों के एहसास को भला कैसे न समझती ।

"थैंक यू , बेटा ", कहकर मैंने शॉल को अपने शरीर से लपेट लिया था । 

"गुड नाईट ,माँ ", कहकर कुसुम अपने कमरे में चली गयी थी । आज भी उसकी आँखों में वही चमक और ख़ुशी थी जो मैंने सालों पहले देखी थी । 

"गुड नाईट , बेटा ।"- कहकर मैंने कुछ पलों के लिए ऑंखें मूँद ली ।


अब मुझे नई सुबह के आने का इंतज़ार था ।



Rate this content
Log in