Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Children Stories

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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नेकी कर दरिया में डाल

नेकी कर दरिया में डाल

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बहुत समय पहले की बात है,उस समय उज्जैन नगरी में महाराजा विक्रमादित्य का शासन था। वो अपनी प्रजा को पुत्रवत मानते थे। उन्ही के राज्य में भोलू नाम का एक केवट रहता था। वह क्षिप्रा नदी पर लोगो को अपनी नाव से एक तट से दूसरे तट तक पहुंचाने का कार्य बहुत ईमानदारी से करता था। उसका नित्य क्रम था,रोज मछलियों को दाना डालना। वह पिछले 10 सालों से ऐसा कर रहा था। भोलू की आर्थिक स्थिति ठीक नहींं थी।

एकदिन जब वह मछलियों को दाना डाल रहा था तो जल से अचानक एक जलपरी प्रकट हुई। उसके मुख मंडल के आसपास एक अलग ही आभा थी। उसके हाथ मे एक जादू की छड़ी थी। वो बोली,भोलू में तुम्हारी अच्छाई व ईमानदारी से बहुत प्रभावित हूं,बोल तुम्हे क्या वर चाहिये।

भोलू बोला कुछ नही देवी। बस आपका आशीर्वाद चाहिये। बाकी मेरा गुजारा चल जाता है। जलपरी उसकी निर्लोभी प्रवृति से बहुत प्रभावित हुई। वो बोली,में तुमसे बहुत खुश हूं,तुम एक नेक दिल इंसान हो,में तुम्हे रोज 100 सोने की अशर्फियाँ देने आऊँगी। यह कहकर जल परी जल के भीतर गायब हो गई। 100-100 सोने की अशर्फियाँ रोज मिलने से भोलू की आर्थिक स्थिति सुधरने लग गई। उसने बहुत सारी नावे खरीद ली। फिर भी वह अपना कार्य ईमानदारी से करता और रोज शाम को मछलियों को दाना डालता था।

उसी राज्य में बालू नाम का एक कपटी बनिया भी रहता था। वह भोलू को अच्छी तरह से जानता था। भोलू की आर्थिक स्थिति में सुधार देखकर,वह सोचने लगा,आख़िर भोलू के पास इतना धन कैसे आया। वह उसका धन हड़पने की कपटी योजना बनाने लगा। बालू,भोलू की हर गतिविधि पर नज़र रखने लगा,शाम के समय जब भोलू मछलियों को दाना डाल रहा था,उस समय बालू ने देखा की एक जलपरी भोलू को सोने की अशर्फियो की कोई पोटली दे रही है। बालू के शैतानी दिमाग एक विचार आया,वह पूरे दिनभर साधू का वेश बनाकर क्षिप्रा नदी के किनारे बैठ जाता और शाम को मछलियों को दाना डालकर अपने घर चला जाता था। चौथे दिन शाम के वक्त जलपरी जल से प्रकट हुई,वो बोली,बोलो बेटा तुझे क्या वर चाहिए। बालू बनिया शहद लगाकर बोला,देवी मुझे अपने लिये कुछ नही चाहिये बस गरीब लोगों के भले के लिये धन की आवश्यकता है और में ठहरा एक सन्यासी आदमी,कैसे उनका भला करूँं?

आप यदि मुझ पर प्रशन्न है तो मुझे ऐसा वर दे,में जिसे छुऊँ वो सोने का बन जाये,साथ ही ऐसा तब हो जब में चाहूं। मेरी ईच्छा न हो तो,मेरे छूने पर वस्तु सोने की न हो। जलपरी कहती है ऐसा ही होगा पर एक शर्त है ऐसा तब होगा जब तक तुम्हारे हाथ सलामत है,ऐसा कहकर जलपरी जल में गायब हो जाती है। बालू पहले ही दुष्ट होता है,अब और ज़्यादा दुष्ट हो जाता है। वह नेकी के स्थान पर लोगो को और ज़्यादा लूटने लग जाता है। कुछ महीनों बाद उज्जैन में अकाल पड़ता है। उस समय भी बालू बनिया नही सुधरता है,वह एक रुपये की चीज के दो रुपये लेने लगता है।

उसकी शिकायत महाराजा विक्रमादित्य के पास भी पहुंचती है। वो एक नागरिक का भेष बनाकर बालू बनिया की दुकान पर पहुंचते है। बनिया उनको भी ठगने की कोशिश करता है। महाराज अपना भेष उतारते है,महाराज को सामने देखकर बनिया थरथर कांपने लगता है। वह महाराज के क़दमो में गिरकर माफ़ी मांगने लगता है,ओ उज्जैन के महान शासक,कृपया मुझे क्षमा कर दो, में आपकी शरण मे हूं। महाराज को उस पर दया आ जाती है, वो उसे आर्थिक दंड देकर छोड़ देते है। कुछ समय तक तो बालू बनिया ईमानदारी से अपनी दुकान चलाता है।

पर बालू बनिया के मन से कपट अभी पूर्णतया नही जाता है। वह वापिस बेईमानी करने लगता है। इस घटना के एक साल बाद उज्जैन में हैजा की महामारी फैलती है। इधर महाराज जनता की बहुत ज़्यादा मदद करते है, इससे राजकोष बिल्कुल समाप्त हो जाता है। महाराज नगर के सभी अमीर आदमियों को संकट की इस घड़ी में दान करने के लिये बोलते है। भोलू केवट अपनी सारी सम्पति लोगो की भलाई के लिये राजकोष में जमा करा देता है। बालू बनिया एक रुपये का दान तो दूर की बात,वह लोगो को और ज्यादा ठगने लगता है।

महाराज अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिये सादे वेश में अपने सिपाहियों के साथ बालू बनिया के मोहल्ले में पहुंचते है। वहां वो जाकर देखते है,बालू बनिये की हरकतों में कोई सुधार नही आया है,अब वो पहले से भी ज्यादा लालची हो गया है,वो तुरन्त अपने सिपाहियों को उस बनिये को गिरफ्तार करने का आदेश देते है। बालू बनिये को राजदरबार में लाया जाता है। महाराज को उस पर बहुत गुस्सा आता है।

देश पर संकट के काल मे भी इसे कालाबाजारी सूझ रही है। लोगो को खाने के लिये दो वक्त की रोटी नसीब नही हो रही है और इसे लालच सूझ रहा है। जिन हाथों से ये बेईमानी कर रहा है,उन हाथों को तुरन्त काट दिया जाये। साथ ही इसकी सारी सम्पति राजकोष में जमा की जाये, जिससे आम जनता का भला किया जा सके। अब उस आदमी को मेरे सामने लाया जाये

जिसने अपनी परवाह न करते हुए अपनी सारी सम्पति देश के नाम कर दी है। भोलू केवट को आवाज लगाई जाती है। महाराज खुद खड़े होकर उसे गले लगाते है। तथा कहते है आप जैसे महानुभावो से ही धर्म की रक्षा होती है। सत्य,ईमानदारी की विजय होती है। भोलू केवट बोलता है,ऐसा कुछ नही है महाराज,आप मुझ जैसे तुच्छ सेवक का भी मान बढ़ा रहे है,ये आपकी महानता है। वो बोलता है,

नेकी कर दरिया में डाल

यही है केवल सत्य का बाल

महाराज उसकी बातों से बहुत खुश होते है। भोलू केवट को वो अपने राजदरबार में एक महत्वपूर्ण पद प्रदान करते है।


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