नौकरानी की बेटी
नौकरानी की बेटी
"क्या हुआ बेटा? तुम्हारी आँखें इतनी लाल क्यों हैं? क्या तुम रो रही थी"?? अवनी की माँ प्रिया अपनी पंद्रह साल की बेटी जो अपनी सहेली के घर से लौट कर आई है। उससे ये जानने की कोशिश कर रही है कि क्या हुआ है? पर अवनि ऐसे ही बात को टाल कर अपने कमरे में चली गई।
प्रिया परेशान सी उसके कमरे में पहुँच गई। और अवनी से बहुत प्यार से सर पर हाथ फिराते हुए एक बार फिर पूँछा.... "क्या हुआ बेटा?? तू तो मेरा बहादुर बच्चा है न, मुझे अपनी परेशानी बताओगी नहीं तो , मैं उसे दूर कैसे करूँगी?"
इस बार अवनी अपनी भावनाओं पर काबू न रख सकी और अपनी माँ को परे धकेलते हुए गुस्से में बोली.... " मुझे पता चल गया कि आप मेरी सगी माँ नहीं हो। मैं तो आपकी नौकरानी की बेटी हूँ। "
अवनी के मुँह से ऐसी बातें सुनकर प्रिया को जैसे बिजली का झटका लगा हो। वो लड़खड़ाते हुए कमरे की दीवार से सट गई। और आँखों से अविरल आँसू बह निकलें। वो तो ये भूल ही गई थी ।पर आज एक बार फिरसे ये भयानक सच्चाई उसके सामने आ गई जिसे वो अब याद भी नहीं करना चाहती थी।
उस दिन प्रिया की बहुत जरूरी मीटिंग थी।पति दिनेश किसी काम से शहर से बाहर गये थे। तो मजबूरी में वो अपनी कामवाली कांता के सहारे अपने पाँच साल के बेटे अर्पित को छोड़ कर ऑफिस चली गई।
वैसे हमेशा अर्पित को दिनेश संभाल लेते थे। उनका काम भी ऐसा था जिसे वो घर पर रह कर कर लेते थे। अर्पित बहुत शैतान था। पलक झपकते ही वो कोई न कोई शैतानी कर ही लेता। पर दिनेश और प्रिया उसकी बहुत अच्छे से परवरिश कर रहे थे।
उसे हमेशा समझाते रहते कि "ज्यादा शैतानी करने से उसे कितना नुकसान हो सकता है। वो भी धीरे -धीरे समझ रहा था।
पर कांता अभी उसे शायद नहीं समझ पाई थी। समझती भी कैसे अभी उसे प्रिया के घर पर काम करते सिर्फ दो महीने ही तो हुए थे।
प्रिया ने कांता को अपने घर में ही रख लिया था। क्योंकि कांता के पति का जहरीली शराब पीने से देहांत हो गया था। और कांता और उसकी छै महीने की बच्ची के सर पर कोई छत भी नहीं थी।
प्रिया हमेशा कांता को अर्पित की शैतानियों के बारे में बताती रहती थी। उस दिन भी जब वो अर्पित को कांता के भरोसे छोड़ कर जा रही थी। तो खास हिदायत देकर गई थी कि *वो घर का कोई काम न करे। बस अर्पित और अपनी बेटी का ख्याल रखे। वो जल्द ही ऑफिस से वापिस आ जायेगी।
और अर्पित को भी समझाया था कि वो"आन्टी को ज्यादा परेशान न करें। "
ऑफिस की मीटिंग खत्म भी नहीं हो पाई थी कि प्रिया के पड़ोसी का फोन आ गया था। जल्दी घर आने को बोल उन्होंने भी फोन काट दिया था। जो हुआ था शायद वो बता भी नही पा रहे थे।
किसी अनहोनी की आशंका से घबरा कर प्रिया घर पहुँची। जहाँ पता चला कि कहीं से उड़कर एक पतंग छज्जे पर फँस गई थी। जिसे निकालने के लालच में अर्पित उसी छज्जे पर लटक गया। जिसे कांता बचाने गई ,पर बचा न सकी और अर्पित के साथ वो भी तीसरे माले से नीचे आ गई।
अर्पित अपने रोते बिलखते माँ, पापा को और कांता अपनी नन्ही सी बच्ची को छोड़ कर इस दुनिया से जा चुके थे।
इस भयंकर समय में जैसे दोनों ने एक दूसरे को संभाला था। नन्ही अवनि जहाँ प्रिया और दिनेश की जीने की वजह बन गई। वहीं अपनी माँ के जाने के बाद अनाथ हुई बच्ची को माँ, बाप दोनों का प्यार मिल गया।
दिनेश ने कितनी बार प्रिया से बोला कि अवनी को सब सच बता देते है। पर हरबार प्रिया अपने ममता के हाथो मजबूर होकर ये बोल कर दिनेश को मना कर देती कि "क्या जरूरत है बताने की। अब वो सिर्फ मेरी बेटी है। "
दिनेश भी अवनी से बहुत प्यार करता तो वो भी मान जाता । वो भी यही सोचता कि जब हम इतना प्यार करते है तो सच्चाई बता कर अवनी के मन को बेकार में ही दुखी क्यों करना।
पर आज सच्चाई ऐसे सामने आयेगी ये प्रिया ने सपने में भी नहीं सोचा था। प्रिया ने फोन करके दिनेश को बुला लिया। पर दिनेश के आने से पहले ही अवनी ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और दौड़ कर अपनी माँ के गले लग गई। और रोते हुए बोली .........
"सॉरी मम्मी मेरी फ्रेंड की मम्मी ने मुझसे बोला की मैं आपकी बेटी नहीं हूँ। मैं एक नौकरानी की बेटी हूँ। तो मुझे बहुत गुस्सा आ गया । और गुस्से में आपसे कितना कुछ गलत बोल दिया। मुझे माफ करदो मम्मी मुझे पता है वो झूठ बोल रही थी। आप तो मेरी और सिर्फ मेरी प्यारी मम्मी हो। है न?? "
पर आज प्रिया ने सोच लिया की अवनी को सच्चाई बता ही देगी। आखिर कब तक झूठ बोलेगीं। कभी न कभी तो उसे पता चलेगा ही। आज की तरह अगर फिर किसी ने कहा तो उसे और भी बुरा लगेगा। प्रिया ये सब सोच ही रही थी की पीछे से दिनेश की आवाज आई.......
"नहीं बेटा ये आपकी मम्मी नहीं है। आपकी फ्रेंड की मम्मी ने जो भी कहा वो सच है। आप हमारी नौकरानी कांता की बेटी हो।"............. और दिनेश ने एक सांस में शुरू से आखिर तक सारी कहानी सुना दी।
और आखिर में रोते हुए बोला" अवनी हम दोनों ने तुम्हे पूरे दिल से अपनाया है। और अबतो तुम्ही हमारी जिन्दगी हो।"
इतना सुन अवनी ने अपने रोते हुए माँ, पापा के गले में हाथ डाल लटकते हुए कहा..... "माफ कर दो मुझे मम्मी, पापा ।आप दोनों तो दुनिया के सबसे अच्छे मम्मी ,पापा हो।"
अवनी के मन में सच्चाई जान कर प्यार कम नहीं हुआ था ! बल्कि प्यार के साथ सम्मान और भी बढ़ गया था।
अवनी ने प्रिया और दिनेश के आँसुओ को अपनी प्यार भरी और शरारती हरकतों से हंसी में बदल दिया।
अब तीनों रिश्तों की सच्चाई के साथ बहुत प्यार और हंसी खुशी से रहने लगे। अब न तो अवनी के मन में कोई शक था और न प्रिया को सच्चाई छुपाने की टेंशन।
