V. Aaradhyaa

Others

4.5  

V. Aaradhyaa

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मुझे ही क्यों उठना पड़ता है?

मुझे ही क्यों उठना पड़ता है?

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श्रुति को फिर उठना पड़ा तो वह झल्लाकर बोली " मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई मुझे पढ़ाई से उठाकर काम करवाए!"


श्रुति ने चिढ़कर मां से कहा "तो मां की जगह उसके पापा ने जवाब दिया।


" क्या हुआ बेटा! अगर तुमने उठकर अपने भैया को पानी ही दे दिया तो...!


"आप ही देखिए ना पापा ! अभी मैं पढ़ाई कर रही हूं। कल मेरा टेस्ट है । और मां मुझे उठाकर भैया को पानी देने कह रही है। जबकि भैया तो अभी खेलकर आया है। वह अपने लिए खुद पानी ले ही सकता है ना ,? पर मम्मी हर काम के लिए मुझे ही बोलती है!"


"क्या हुआ कटखनी बिल्ली? इतना क्यों लाल पीली हो रही हो?"


"भाई! मेरा कल टेस्ट है और मैं सवालों का जवाब याद कर रही थी अब पानी देने उठी हूँ तो ऐसे समय में दुबारा से सब याद करना पड़ेगा!"

बोलकर पैर पटकती हुई विकास को पानी देकर वह फिर से पढ़ने बैठ गई।


अब जबकि वह दुबारा अपना पाठ दुहरा रही थी कि पीछे से आकर विकास ने कहा,

"सुन प्यारी बहना! ज़रा मेरा बायो का ड्राइंग बना दे। तू तो जानती ही है कि मेरे से बायो का ड्राइंग बिलकुल अच्छा नहीं बनता है!" अब तो श्रुति और भी चिढ़ गई।


उसने थोड़े गुस्से से कहा " भैया ! बस भी करो अब। आपका एग्जाम तोदो दिन बाद है। पर मेरा तो कल ही है। ऐसे में अगर मैं आपके लिए ड्रॉइंग बनाऊंगी तो अपनी पढ़ाई कब करुँगी ?"


"अरे...?तूने सुना नहीं।दादी जो हमेशा कहती रहती है कि तू पढ़कर क्या करेगी? वैसे भी लड़कियों को ज्यादा पढ़कर करना भी क्या होता है?"


अब श्रुति का धैर्य समाप्त हो गया। उसने पीछे मुड़कर पहली बार अपने भैया को पलट कर जवाब दिया,


" ठीक है भैया! लड़कियां पढ़कर कुछ नहीं करती तो...?

लड़के ही कौन सा तीर मार लेते हैं।ऐसा कौन सा काम है जो आजकल लड़कियां नहीं कर सकती? "

अब विकास के पास कोई उत्तर नहीं था।वह बिल्कुल चुप हो गया। और कहता भी क्या?


उस दिन श्रूति ने आवाज उठाकर मां और दादी को भी उनके पुराने दिनों की हद दिला दी थी। उन्हें भी याद आ गया कि कैसे उन्हें पढ़ाई पर से उठा दिया जाता था। और भी कई ऐसी ही यादें जिनमें उन्हें काम के बोझ तले लाद दिया जाता था। श्रूति की मां ने उस दिन से निश्चय किया कि अब वह श्रूति और विकास में भेदभाव नहीं करेगी।


वह अपनी बेटी के प्रति ममता और कार्तव्यबोध से भर उठी। श्रूति के लिए गर्म दूध का ग्लास लेकर उसके पास गई और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,


"ले बेटा! दूध पी ले। और अब तुझे कोई पढ़ाई के बीच से उठाकर काम नहीं कराएगा!"


"थैंक्यू मां!"


कहकर श्रूति अपनी मां से लिपट गई। आज एक मां सशक्त बनकर अपनी बेटी के साथ खड़ी थी और उसके ममता के साए में बेटी अपने उज्ज्वल भविष्य के सपने बुन रही थी।


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