मसीहा
मसीहा
यह कहानी है विपुल की, जो कि दसवीं कक्षा का छात्र था। पढ़ाई में ठीक ठाक, लेकिन हंसी ठिठोली और शरारत में अव्वल! अल्हड़पन के रहते वो सिर्फ हंसी मजाक और मस्ती के बारे में ही सोचता था। किसी बात की उसे कोई सीरियसनेस ही नहीं थी।
बात उस वक्त की है जब बोर्ड की परीक्षाए नजदीक आ रही थी। सभी बच्चे तैयारी में लगे थे। विपुल पढ़ाई में भले ही होशियार नहीं था। लेकिन ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से उसे लगता था, कि वह तो आसानी से पास हो जाएगा। सभी बच्चे तैयारी में जुट गए थे। विपुल पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद में अब भी उतना ही समय बिता रहा था। उसके माता-पिता उसे बार-बार समझाते थे, कि गया हुआ वक्त दोबारा लौटकर नहीं आता। तुम्हारी खेलकूद तुम बाद में भी कर सकते हो। लेकिन अभी तम्हें परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए।फिर थोडी देर में वो खेलकूद में लग जाता था, उसका स्वभाव ही ऐसा हो गया था।
आखिर वो दिन दिन भी आ गया जिस दिन से बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होनी थी। परीक्षा का पहला दिन था ,सभी बच्चे ग्राउंड में इकट्ठा थे। कुछ बच्चों ने हाथ में अभी भी अपनी पुस्तकें पकड़ी हुई थी और पढ़ते हुए याद करने की कोशिश कर रहे थे। कुछ बातें कर रहे थे। विपुल सब को देख रहा था। उसकी हंसी मजाक चल रही थी। तभी उसका एक मित्र उससे पूछता है विपुल तूने हॉल टिकट चेक कर लिया? उसके बिना हम अंदर परीक्षा हॉल में दाखिल नहीं हो सकते ?
मुझे चेक करने की क्या जरूरत है। मैंने तो उसे पास में रखा ही है , ओवर कॉन्फिडेंस भरे स्वर में विपुल कहता है ! कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता जै इस पर। सभी अपने काम में लग जाते है। तभी स्कूल की घंटी बजती है और बच्चे क्लास रूम की ओर भागते हैं। विपुल मजे से चलता हुआ जा रहा था। उसे पता था हॉल टिकट उसने कंपास बॉक्स में ही रखा है। लेकिन उसके हाथ से कंपास बॉक्स छूट जाता है और उसके अंदर रखे हुए सभी सामान गिर जाते हैं। वह फटाफट उन्हें उठाता है। तभी वह देखता है कि उसके कंपास बॉक्स में हॉल टिकट तो है ही नहीं।
कुछ पल के लिए वह घबरा जाता है। वह तुरंत खड़ा होता है और अपनी जेबें चेक करता है। लेकिन हॉल टिकट उसे नहीं मिलता है। अब तो उसकी बहुत बुरी हालत हो जाती है।
वह कुछ समझ ही नहीं पाता है कि क्या करें ? उसका सारा कॉन्फिडेंस एक पल में चकनाचूर हो जाता है और वह जोर जोर से रोने लग जाता है। पास में एक नौजवान लड़का खड़ा होता है उससे होने का कारण पूछता है और कारण जानने पर बिना विलंब किए शीघ्र उसे अपनी बाइक पर बिठाकर उसके घर ले जाता है। घर पहुंचने पर वह फटाफट अंदर जाकर अपने रुम में हॉल टिकट खोजता है और वह उसे पलंग के नीचे गिरा मिलता है। वह उसे लेकर गाड़ी पर बैठ जाता है और दोनो वापिस स्कूल की तरफ भागते है। सिक्योरिटी के रोकने पर पूरी बात शॉर्ट में बताते हैं विपुल बाइक से उतर कर जाने ही लगता है तभी पलट कर देखता है उस नौजवान की ओर। पास आकर उन्हें वो कसकर गले लगाता है और बोलता हूं अंकल आप भगवान है मसीहा है आपने आज मुझे बचा लिया नहीं तो मेरा पूरा भविष्य खराब हो जाता।वो नौजवान कहता है कोई बात नहीं बेटा तुम फटाफट जाओ पहले परीक्षा दो। तुम्हें पहलें ही पहले काफी देर हो चुकी हैं। वह फटाफट क्लास में जाता है पूरे ध्यान के साथ अपना पेपर लिखता है उसका इतना समय इस भाग दौड़ में बर्बाद हो गया था। लेकिन फिर भी वह अपना पेपर पूरा लिखकर टीचर के हाथ में दे देता है। जब वह क्लास रूम से बाहर आता है तो वह पहले वाला विपुल नहीं रहता है उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। उसे अपनी गलती का भी एहसास हो जाता है और वह अपने जिम्मेदारियों को भी समझने लगता है। सच में वह बंदा मसीहा ही था जो कुछ पल के लिए विपुल के जीवन में आता है और उसे हमेशा के लिए सुधार कर चला जाता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कॉन्फिडेंस होना जरूरी है लेकिन ओवरकॉन्फिडेंस रखना बात बुरी है।
