मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

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पापा इस बार मैं मत नहीं दूँगा, मोनू ने साफ हाथ खड़े कर दिए थे।

क्यूँ नहीं बेटा? मताधिकार का प्रयोग करो, वर्ना शिकायत मत करना! पिताजी ने भी फरमान सुना दिया। कोई फायदा नहीं हर बार आप दीवाली पर मिठाइयों के लिए सबसे मत लेते हैं, मैंने हमेशा लड्डू को मत दिया और जीतता तो पेड़ा ही है, मुझे पेड़ा पसंद नहीं। फायदा नहीं चुन कर। मोनू का हृदय परिवर्तन से साफ मना कर रहा था।

अच्छा, हो सकता है है तुम्हारे एक मत के अभाव में लड्डू हार जाए? पिताजी ने ब्रह्मास्त्र फेंका। लड्डू को चखने की इच्छा मोनू से कुछ भी करवा सकती थी, एक बार तो आना ही चाहिए तब त्योहार बनेगा "अच्छा वाला।"

मोनू ने मत डाला और परिणाम में बहुमत से लड्डू विजयी हुआ, मोनू का सीना खुशी से चौड़ा हुआ जा रहा था आखिर उसका मताधिकार काम आया। और शुभ मुहूर्त में लड्डू प्लेट में आया, उसके स्वाद का असीम आनंद पहले से ही मस्तिष्क में घूम रहा था। पर ये क्या..? ये तो स्वाद में पेड़े की तरह ही है.. पिताजी!! धोखा.. मेरे मताधिकार का ये फल, ये तो एक जैसा स्वाद है। मोनू को ठगे जाने की अनुभूति हो रही थी।

बेटा, तुम मीठे का आनंद लो.. मिठाइयाँ सब एक ही है यहां बस रंग रूप अलग है.. बस विश्वास करो की तुम्हारी पसंद है, अच्छी ही होगी और हाँ हिसाब से खाओ ज्यादा खाना नुकसान देह होगी। पिताजी ने मोनू को दिव्य ज्ञान दिया और बाकियों को त्यौहार की शुभकामनाएं देने चले गए।

तो इतने दिनों से मैं यूँ ही मृगतृष्णा में जी रहा था। मोनू ने गहरी साँस ली।



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