मोर पंख व लकड़हारा
मोर पंख व लकड़हारा
एक लकड़हारा प्रतिदिन जंगल से लकड़ियाँ लाकर बाजार में बेचता था। उन पैसो से उसके परिवार का गुजारा चलता था। एक दिन उसने अपने एक साथी को बाजार में मोर पंख बेचते हुए देखा। उसने पूछा भाई ये पंख कितने में बिक जाते हैं तो उसके साथी ने कहा कि 10 रुपये का एक पंख बिक जाता है यह सुनकर उसके मन में लालच जाग्रत हुआ उसने निश्चय किया कि वह भी मोरों को मारकर उनके पंख बेचकर ज्यादा कमाई करेगा। सो वह दूसरे दिन से ही जंगल में जाकर मोर को मारता और उसके पंख बाजार में बेच देता। अब पहले से कई गुना ज्यादा आमदनी उसको होने लगी वह ऐशो - आराम की जिन्दगी बसर करने लगा। एक दिन उसका ये कारनामा कक्षा 5 में पढ़ने वाली उसकी बेटी ने देखा तो वह बहुत उदास हुई उसने डरते - डरते अपने बाबूजी से कहा कि बाबू जी मोरों को मारना बहुत बड़ा कानूनी अपराध है यदि शासन को पता चल गया कि तुम ऐसा काम करते हो तो तुम्हें जेल जाना होगा व अर्थदण्ड अलग से भरना पड़ेगा। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है उसकी सुरक्षा करना हम सबका दायित्व है अत : मेरी आपसे ये प्रार्थना है कि आप अब से यह काम करना बन्द कर दो हम पहले जैसे ही गुजर - बसर कर लेंगे। यह सुनकर लकड़हारा का माथा ठनका उसने सोचा मैंने अज्ञानता में ये क्या कर दिया उसने तुरन्त दृढ़ निश्चय किया कि वो अब से मोर नहीं मारेगा और न ही अन्य किसी को मोर मारने देगा उसने अपनी बिटिया को शाबासी दी और कहा कि बेटा तूने मेरी आँख खोल दी मैं कितना बड़ा अपराध कर रहा था।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है
( 1 ) बच्चों को पढ़ाने की शिक्षा मिलती है ।
( 2 ) अज्ञानता में ही अपराध होते हैं ।
( 3 ) जब जागे तभी सवेरा ।
