मोहे बावरी बोले लोग रे
मोहे बावरी बोले लोग रे
"दीदी! वो घाट पर जो लड़की खड़ी थी। बड़ी सुन्दर सी...वो पागल है क्या? कुछ बोले तो जवाब ही नहीं दे रही थी। बड़ा अजीब सा था उसके चेहरे का भाव!"
सुप्रिया ने सुरभि दीदी के हाथ से चाय का कप लेते हुए कहा।
"तू चाय पी ले फटाफट, फिर मुझे फोटो दिखइयो जो तुने घाट पर ली थी। मेरे मोबाइल से मुई फोटो उतनी अच्छी नहीं आती। चेहरे के दाग धब्बे सारे दिखते हैं। तेरे फोन से तो चेहरा एकदम चिक्कन लगता है और... एकदम सुन्दर भी!"
सुरभि ने जैसे बात टालने के गर्ज़ से कहा जो सुप्रिया समझ गई। आखिर कैसे नहीं समझती। बचपन से दोनों बहनों को ज़ब अंदेशा होता कि अभी ये बात करना उचित नहीं या कोई उनकी बात सुन रहा है तो ऐसे ही बात बदलकर कोई भी ऐसी बात करने लग जाती थी जिससे उनकी बात छुपकर सुननेवालों की रूचि समाप्त हो जाती थी। आज भी सुरभि को बेहतर पता था कि बगल के कमरे में प्रिया भाभी उन दोनों बहनों की बातें सुनने की कोशिश ज़रूर कर रही होंगी।
अब तक सुप्रिया भी समझ चुकी थी कि अब ज़्यादा इस विषय पर बात नहीं करनी है।
सुप्रिया अबके पूरे पाँच साल बाद बनारस आई है। इतने अरसे बाद मायके आना उसके लिए कोई उत्सव से कम नहीं था। वैसे उत्सव में ही तो आई थी वह। एकलौते लाडले भतीजे अंशुल का यज्ञपवित संस्कार था और इसमें छोटी बुआ कैसे ना आती। ज़ब अंशुल का जन्म हुआ था तो काज़रपराई की रस्म भी सुप्रिया ने ही तो की थी। तबसे अब आ पाई है। एक तो अम्मा, भैया, भाभी, दोनों बच्चों अंशुल और अंतरा से मिलने की ख़ुशी और दूसरी तरफ दिद्दा से मिलने की बेताबी...
सुप्रिया तो ट्रेन में भी ख़ुशी से बिल्कुल ना सो पाई थी।सुरभि का ससुराल भी एक ही शहर में था। अतः जाने से पहले सुप्रिया को ज़नेऊ संस्कार के बाद अपने घर कुछ दिन रुकने का आग्रह करते हुए बोली,
"छोटी! जनेऊ के बाद कुछ दिन दिद्दा के घर रहकर जइयो नहीं तो बात नहीं करुँगी हाँ...!"
"अरे दिद्दा! ऐसे कैसे हमसे बात ना करोगी? हम तुम्हारे घर ही जम जाएंगी, सोच लो। फिर मत कहना कि ई छुटकी तो जाने का नाम ही नहीं ले रही!"
नटखट सुप्रिया अभी भी अपनी सुरभि दीदी के सामने बच्ची सी बन जाती थी।
"अरे, छुटकी! मैं तो अपनी किस्मत को सराहुँगी जो तुम कुछ दिन मेरे पास रह लोगी तो। ऐसे बिदेस जाकर बस गई हो सात समुन्दर पार कि पाँच साल में तो तुम्हारा चेहरा देखना नसीब हुआ है!"
सुरभि सुप्रिया को गले लगाकर प्यार करते हुए बोली।यह देखकर अम्मा का जी ज़ुड़ा गया। बचपन से दोनों बहनें एक दूसरे पर जान छिड़कती थीं। सुरभि तो जैसे सुप्रिया की देखभाल माँ की तरह ही करती थी। दोनों बहनों में लगभग आठ साल का फर्क था। बीच में था संजय दोनों बहनों का इकलौता भाई।
अपने छोटे से संसार में गायत्री देवी ने अपने बच्चों को आपस में प्रेम की कड़ी से ही तो जोड़ रखा था।
क्रमशः
