मोबाइल
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" ओहो ये माँ भी न पूरी रात बाथरूम के चक्कर लगाती रहती है"सुरभि ने फौरन मोबाइल किताबों के नीचे दबा लिया।वह पिछले दो घंटे से दोस्तों से चैटिंग कर रही थी।वह जल्दी से याद करने का अभिनय करने लगी।
"कल परीक्षा है, भगवान मेरी बिटिया को कामयाबी दे! दिन रात मेहनत कर रही है !", करुणा ने सुरभि के कमरे में झांका । बिटिया को चाय पसंद नहीं यह सोच कर रात एक बजे कॉफ़ी बनाने रसोई में घुस गई।
" कैसी तैयारी चल रही है ? बढ़िया ही होगी ,बेटी किसकी है? ये लो कॉफ़ी पियो।थोड़ा आराम कर लो।" माँ ने कॉफ़ी का मग थमाते हुए खुद जी सवाल जवाब कर डाले।
"पता नहीं माँ, इस बार डर लग रहा है,"सुरभि धीरे से बोली।
अरे, डर और फौजी की बेटी को ? वो भी पेपर से ? हो ही नहीं सकता।मुझे पता है मेरी बेटी अपने पिता के सपने को पूरा ज़रूर करेगी। डॉक्टर बन कर फौज में भर्ती होगी।
सुरभि की नजरें स्वतः दीवार पर टंगी पिता की तस्वीर पर चिपक गयी।खुद पर ग्लानि हुई और गुस्सा भी आने लगा।माँ को मोबाइल पकड़ाते हुए बोली," माँ, ये मोबाईल अपने साथ ले जाओ।बहुत समय बरबाद करता है। और हाँ, मैं मागूँ तो भी मत देना," सुरभि लाड से बोली।
अरे मोबाइल रख तू अपने पास।मुझे पता है मेरी बेटी को कोई बाधा रोक नहीं सकती।मैं चक्कर लगाती रहूंगी तेरे कमरे में।कुछ चाहिए तो बोलना।" सुरभि के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर करुणा अपने कमरे में चली गयी।
" मुझे माँ के विश्वास को खंडित नहीं होने देना।अपने पिता के सपने को पूरा करना है।ये मोबाइल नहीं मेरे सपनों का दुश्मन है।" मोबाइल स्विच ऑफ कर अलमारी में रखती हुई सुरभि सोचने लगी।
"माँ, आप आराम से सो जाओ।आपकी तबीयत भी ठीक नहीं।मुझे रात भर जागना पड़ेगा,
सिलेबस ज़्यादा है।कुछ चाहिए होगा तो आपको उठा दूंगी।" ऊंची आवाज में सुरभि ने कहा और एक नए आत्मविश्वास के साथ परीक्षा की तैयारी में जुट गई।