मित्र
मित्र
आज तीन दिन हो गए, शेखर की कोई खबर नहीं मिल रही है, न कोई फोन न ही मैसेज ,प्रिया बहुत चिंतित है।
मन ही मन गुस्सा भी आ रहा कि भले परिवार के साथ घूमने गया है वह ,इसका मतलब यह नहीं कि कुशल क्षेम का एक मैसेज भी नहीं करे।
प्रिया को लग रहा मानो कल की ही बात हो जब वह निशा के साथ कॉफी पीने गई थी और वहीं दोनों की मुलाकात शेखर से हो गई थी। पुराने सहपाठी से मिलकर दोनों बहुत ही खुश थीं ।फोन नंबर का आदान-प्रदान हुआ फिर संपर्क बना रहा।
साथ पढ़ते हुए कभी प्रिया की उस से कोई खास दोस्ती नहीं थी, लेकिन अब दुबारा मिलने पर अक्सर बात हो जाती थी।
कॉलेज की बातें याद करते करते, एक दूसरे की पसंद नापसंद घर परिवार सभी की बातें होने लगीं । आदत में इतनी समानताएँ की अब अच्छी मित्रता हो गई थी।
अगर एक-दो दिन कोई खोज खबर ना मिले तो चिंता भी होने लगती थी क्योंकि एक आदत सी बन गई थी कि दिन में कम से कम एक बार फोन या मैसेज तो हो ही जाता था।
प्रिया सोच रही है अब कि बार फोन आने दो उसका दिमाग़ ठीक कर देगी कि वह कितनी चिंतित थी उसकी कोई खबर ना मिलने से और उसको परवाह भी नहीं।
यह सब सोचते वो ऑफिस के लिए निकलने ही वाली थी, वैसे भी आज उसको कुछ देर हो गई है,तभी दरवाजे की घंटी बजी।
"अरे तुम! वह भी बिना बताए।" —प्रिया आश्चर्य से बोली।
"अब तुम इतनी बार बुला चुकी थी तो हमने भी सोचा वापसी में तुम्हारे घर होते हुए चलें तुमको श्रीमती जी से मिलना था तो यह सरप्राइज भी दे दें।"
"हेलो!" —नंदिनी ने प्रिया से विनम्रता से बोला।
प्रिया ने ऑफिस फोन करके छुट्टी ले ली और साथ ही आकाश को भी फोन किया— "हो सके तो आप अभी आ जाइए या फिर जल्दी आ जाइएगा शेखर परिवार के साथ आया है।"
शेखर का फोन न आने से जितनी चिंता थी प्रिया के चेहरे पर वह काफूर हो चुकी थी। वह मन ही मन यह सोच रही शायद ऐसे ही मित्र को सोलमेट का नाम दिया जा सकता है।
