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Vinay Panda

Others

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मिर्जापुर की शादी

मिर्जापुर की शादी

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इंतज़ार क्या होता है मन में किसी से मिलने की लालच और जो सिर्फ आशाओं पर जिएं, बड़ा कठिन होता है वो पल जब मुराद पूरी नहीं होती..!

ऐसे ही समझो मेरी कहानी , जब एक शादी समारोह में मिर्जापुर गये थे। मई माह की धूप जेठ महीने की तपन से तो वाक़िफ सभी होंगे।

लालच और मन की आशा उससे मिलने की जो मेरे बचपन की मेरी यार थी ।

दूर के रिश्तेदार जो मामा लगते थे, घुमा-फिराकर उनकी लड़की की शादी थी । शादी मेरे द्वारा ही तय करायी गयी थी इसलिए मेरा वहाँ जाना लाज़मी भी था ।

चिंता शादी की नहीं थी उतनी जितनी अकुलाहट उससे यानी कि अपने दोस्त से मिलने की थी ।

दिन के बारह बजे फोन की घण्टी बजी "बाबू कहाँ हो हम लोग जौनपुर आ गये हैं।" असल में लड़की वाले आजमगढ़ के थे । हमने भी "मामा बस पहुंच रहे हैं कहकर फोन कट किया और मोटरसाइकिल से अपन घोर दुपहरी में जौनपुर के लिए निकल पड़े ।

उमंग में तपन हो या बारिश मन डरता नहीं , किसी तरह उनके पास हम पहुंच गये ।

बस में उनका पूरा परिवार , नाते रिश्तेदार मौजूद थे जब हमें एक स्पेशल सीट मिली लोग भौंचक्का होकर हमीं को देख रहे थे ।

उधर मन तो उसके उपर लगा था कि वह आ रही है कि नहीं । रास्ते में बात हो जाती थी बीच-बीच में मोबाइल से । शाम के करीब छह गये 90 किलोमीटर की सफ़र तय करने में ,रास्ता बहुत खराब था ।

शादी समारोह का आयोजन एक होटल में था ।सात बजे पहुंचे जब हम वहाँ वह अपनी भाभी के साथ पहले से मेरा इंतज़ार कर रही थी ।

दस मिनट की भेंट-मुलाक़ात में हालचाल हुआ कि उसकी भाभी उसे तैयार होने के बहाने होटल के किसी कमरे में चली गयीं। शायद उसको आभास हो गया था ।

दिल बेचैन होकर मन घुट रहा था कि कब मुलाक़ात हो ।

जयमाल के समय एक झलक उसकी दिखी हम भी कुर्सी लेकर उसके बगल जा बैठे । संकोच से जैसे वह भी मरी जा रही थी । रह-रह के नजरें घुमाकर चोरी छिपे हम दोनों एक दूसरे को देख लिया करते थे ।

खाना वगैरह होने के बाद सोचा शादी शुरू हो कब अपनी भी मन्नत पूरी हो मिलने वाली ।

रात के बारह बजे के बाद शादी की रस्म शुरू हुई फिर भी भाभी साथ नहीं छोड़ी उसका । इंतज़ार करते भोर हो गया, घर भी हमें जल्दी आना था, सो हमने उसे इशारे से कहा कि हम जा रहे हैं। । बहाने से पास आयी एक-दो मिनट का साथ अंदर से उसका डर बस चन्द मुस्कान से उसके हम वहाँ से चल दिए ।

जिस उमंग से गये थे मन में न मिल पाने का गुरेज़ लिए घर वापस आ गये हम ।

बिना क़िस्मत और संयोग के कुछ भी नहीं होता है ।उसके प्रति चाहत आज भी रहती है मन में मगर मिलने की उम्मीद कोई नज़र नहीं आती है ।



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