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Surya Rao Bomidi

Others

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Surya Rao Bomidi

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महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षा

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ऑफिस में कुछ काम था नहीं क्योंकि आज विश्वकर्मा पूजा जो था। एक सहकर्मी ने प्रस्ताव रखा कि चलो कुछ नया करते हैं जिससे अपना टाइम पास भी हो जाएगा।

क्या करें? एक ने पूछा।

सब अपनी अपनी महत्वाकांक्षा बताओ जैसे आप जीवन में क्या बनना चाहते थे और क्या आपकी महत्वाकांक्षा पूर्ण हुई कि नहीं।

एक ने कहा: मैं डॉक्टर बनना चाहता था पर एंट्रेंस एग्जाम पांच बार में भी क्लियर नहीं कर पाया और यहां अधिकारी बन गया।

दूसरे ने कहा मेरी मां चाहती थी कि मैं एक डॉक्टर बनूं क्योंकि वो खुद एक डॉक्टर है पर पापा चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं क्योंकि वो खुद एक इंजीनियर हैं।

जब मेरा नंबर आया तो समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं और एक बार अपने बीते जिंदगी में झांककर देखा तो पाया कि मेरी तो एक ही महत्वाकांक्षा थी कि किसी तरह कोई भी एक नौकरी मिल जाए और किसी तरह दो वक़्त रोटी का इंतजाम हो जाए।


मैंने कहा अभावों के बीच महत्वाकांक्षा नहीं पलती, जिनकी महत्वाकांक्षा ही दो वक़्त की रोटी हो फिर उसके लिए "कुछ" बनने का सपना पालना हम जैसे लोगों के लिए बेमानी है।



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