मेहमान
मेहमान
सरिता अपने बेटे को "धूमकेतु" के बारे में पढ़ा रही थी। सूर्य के पास आने पर इसके अंदर के धूल, धुआँ और गैस वाष्पित होकर दूर तक फैल जाती हैं और चमकने लगती है। निश्चित समय मे ही दोबारा पृथ्वी से दिखता है। वगैरह वगैरह....
यह सब पढ़ाते पढ़ाते वो अपने बचपन में पहुंच गयी।
उसके साथ के हर चौथे बच्चे के परिवार में एक धूमकेतु होता ही था, जो 2/3 साल में दीवाली पर दिखायी देता था। खूब आवभगत होती थी इन पत्थर, धूल, बर्फ रूपी भावनाओं से बने धूमकेतु प्रजाति के रिश्तेदारों की, क्योंकि कोई दुबई से आता था, किसी के यहां USA से आते थे, किसी के मुम्बई से ही आते थे।
शान शौकत दिखाते, शेखी बघारते, अपनी झूठी चमक बिखेरते और चार छः दिन मे ग़ायब हो जाते थे। घर के बुजुर्गों को अगली किसी दीवाली पर आने का विश्वास दिला कर।
उनके किस्सों रूपी चमकीली पुंछ उन घरों मे कई दिन तक घूमती रहती थी।
सरिता सोचती रही कि कभी उसके किसी दोस्त के दादी दादा अपनी किसी जरूरत के लिये मुम्बई या कहीं और बाहर गये हो। लेकिन उसे कोई भी ऐसा याद नहीं आया। जब तक वे सक्षम रहे, खुद का भी स्वयं किया और 2/3 साल में मेहमान बन कर आने वाले अपने बच्चों का भी खूब किया। बाद में तो ये मेहमान उनको कंधा देने भी नहीं आ पाये क्योंकि उनके आने का भी निश्चित समय जो होता था "धूमकेतु" की ही तरह!!