मैं अपराधी नहीं
मैं अपराधी नहीं
रितु जब से शादी करके आई थी तब से सभी का आंखों का तारा बन गई थी। सास रमा जी तो पलकों पर बिठा कर रखती थीं। रितु थी ही इतनी प्यारी। छरहरी काया, लंबे बाल, सुंदरता के साथ संस्कार, रितु को सबसे अलग करता था।
रमा जी भी अपनी बहू की तारीफ करती ना थकती थीं। सास बहू की इस जोड़ी से जलने वाले भी कम ना थे। उनमें से एक थी रमा जी की जेठानी सरिता जी जिनकी खुद की बहू से बनती नहीं थी और वे पूरी कोशिश करने लगी कि रमा जी भी रितु से ना बने, पर सरिता जी के अरमानों पर पानी फिर गया।
कुछ महीनों बाद ही रितु ने खुश खबरी दी, जल्द ही वह मां बनने वाली थी। अब तो रमा जी के पैर जमी पर ही नहीं पड़ रहे थे। रमा जी भी रितु का बहुत ध्यान रखतीं।
लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था, कुछ कारण वश रितु का गृभ पात होगया। डॉक्टर ने समझाया डरने की कोई बात नहीं है, कभी कभी शुरुआती महीनों में ऐसा हो जाता है, साथ ही कुछ दवाइयां दे दीं और आराम करने की हिदायत।
रितु और रमा जी को भी बहुत दुख हुआ। दुख की घड़ी में रितु के पति समीर ने रितु को संभाला। जब सरिता जी के कानों तक ये बात पहुंची तो वो बहुत खुश हुई और बनावटी संवेदना का पिटारा लिए रमा जी के घर पहुंच गईं। "रमा बहुत दुख हुआ सुन कर" सरिता जी ने रमा जी से कहा।
"कोई बात नहीं जीजी, जैसा भगवान को मंजूर। भगवान चाहेगें तो जल्दी ही किलकारी गूंजेगी" रमा जी ने कहा।
"रमा वो तो तेरी बहू चाहेगी तो होगा" सरिता जी ने तंज कसा।
"आप क्या कहना चाहती हो जीजी" रमा जी ने सरिता जी से पूछा।
"तू बहुत भोली है रमा हो सकता है तेरी बहू इतनी जल्दी मां बनना ही ना चाहती हो।खुद ही अबॉर्शन कर दिया हो आज कल तो कितनी दवाइयां आती हैं,शरीर से भी कितनी दुबली पतली है, ताकत ही कहां है उसके शरीर में। मैं तुझे एक दो टोटके बता दूंगी, जल्दी ही तू दादी बन जाएगी"।
रमा जी सरिता जी की बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए थी पर एक शक ने रमा जी के मन में घर कर गया।
रितु ने भी ध्यान दिया की रमा जी के व्यवहार में बदलाव आ गया है। पहले जहां रितु की छरहरी काया रमा जी को सुंदर लगती थी अब कमजोरी लगने लगी। अब रमा जी पहले की तरह बात नहीं करती थीं। हमेशा खाने पीने के लिए टोकती रहती। चाट मसाला खाना बिल्कुल नहीं खाने देतीं। कभी कहती चुकंदर खाओ शरीर कमजोर है, कभी कहती पालक।
कभी कोई मिलने आता नया टोटका बता जाता तो और रमा जी उसमें लग जातीं। कभी कहतीं इसका व्रत करो कभी इसका। कभी किसी आयुर्वेदिक नुस्खे शुरू कर देतीं।
रितु इन सबसे परेशान हो चुकी थी। पर वो रमा जी को कुछ बोल कर तकलीफ़ नहीं देना चाहती थी। पर कभी तो बोलना ही पड़ता।
रितु रमा जी के पास गई और प्यार से रमा जी कहा "मां मैं जानती हूं कि आप बहुत परेशान हो, मुझे भी बच्चे को खोने का दुख है, पर आपका ऐसा करना मुझे और दुखी कर रहा है। मैं बीमार नहीं हूं स्वस्थ हूं, मुझे ऐसे अलग महसूस ना कराएं कि मुझसे कोई अपराध हो गया है। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। कहते कहते रितु की आंखों में आंसू आ गए।
रमा जी ने रितु को गले लगाते हुए कहा कि मुझसे गलती हो गई, लोगों की बातों में आकर तेरे पर शक किया, तेरे पर रोक टोक की। माफ करना मुझे, जरूरत के समय तेरे को संभालने के बजाए और तकलीफ दे दी। रमा जी अपने आपको रोक नहीं पाईं और पश्चाताप के आंसू निकलते गए।
