मातृभूमि

मातृभूमि

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जन्म स्थली यानी कि मातृभूमि से किसे प्यार नहीं होता है?

अपने देश गांव से प्रेम किसे नहीं होता है?

रोजगार और पैसे के ख़ातिर इन्सान दुनिया में कहीं भी रहे मगर वह अपनी जन्म स्थली को कभी नहीं भूलता !

हमारी क़िस्मत कहो या गांव घर का प्रेम जो हम वहीं के होकर रह गये जिधर मेरा जन्म हुआ था ।

प्रयास तो सभी करते हैं मगर हर इंसान अपनी नसीब से आगे बढ़ता है ।

यदि आदमी की जरूरते ना होती तो कौन परदेश गमन करता एक यही उसकी जरुरत और पैसा उसे दूर ले जाती है अपनों से ।

मेरा सौभाग्य है कि मैं जिधर जन्मा वहीं के होकर रह गया और क़िस्मत के साथ ना देने को मेरा दुर्भाग्य कह लो।

इस बेरोजगार की ज़िन्दगी में जो हम कहीं जा नहीं सके ।देखता हूँ आज जब लोग परदेश से घर वापस लौटते हैं जैसे घर गांव से उनका मन ही नहीं भरता है ।

परदेश की गाथा और उनकी परेशानियों को सुनकर मन अंदर से प्रसन्न होता है कि चलो यहीं ठीक हैं हम ।

नमक रोटी ही सही मगर सकून तो है । बग़ैर किसी परेशानी के दिन-रात बीत रहा है ।



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