माँ -बाप का महत्व
माँ -बाप का महत्व
पापा जिन्होंने सब की जरूरतो का हमेशा ध्यान रखा । कभी किसी को कोई कमी न होने दी ।अपने सपनों को न जाने उन्होंने कहां छुपा दिया था।
माँ घर से बाहर कभी निकली थी ,नाहीं उन्होंने बाहर की दुनिया देखी ,पापा ही सब संभालते। घर में क्या तरकारी आनी है ,बच्चों की फीस कब जानी है, बच्चों की स्कूल की ड्रेस कहाँ से आएगी, सभी की देख रेख पापा ने अपने हाथो में ली हुई थी।
वक्त रेत की तरह आगे निकल गया।
ओम भाई अमेरिका सेट हो गया और मेरी शादी होने के बाद मैं अपने ससुराल । शुरू शुरू में मेरा भी मायके आना-जाना लगा रहा मगर धीरे-धीरे वह भी कम हो गया।
भाई अमेरिका ही रहा करता था पापा ने उसकी जल्दी शादी यह सोचकर करा दी के कोई अंग्रेजन न पकड़ लाए ।
भाई ,भाभी को भी अमेरिका ले गया।
माँ पापा दोनों बुजुर्ग हो चले थे।
माँ पापा दोनों को अपने बच्चों की याद आती । पापा फोन करते तो भाई कहता काम बहुत जयादा है अगले साल आता हूँ।
माँ मुझे फोन करती -तो मैं माँ को बोलती अभी बच्चों का स्कूल खुला है अभी कैसे आऊंगी? धीरे-धीरे माँ- पापा ने आश ही छोड़ दी कि उनके बच्चे उन के पास लौटेंगे ।
एक दिन माँ का पैर सीढी से अचानक फिसला। पापा पौधों को पानी दे रहे थे। धम की आवाज आते ही,अंदर भागे देखा, मा नीचे खून में लतपथ पड़ी थी। पापा घबरा गए जल्दी से माँ को अस्पताल लेकर गए।
खून ज्यादा बहने के कारण माँ कोमा में चली गई थी।
पापा ने भाई को फोन करके सब बताया। उसने औपचारिक तरीके से दो-चार दिन बात की ।मुझे जैसे ही यह पता चला, मैं भागकर माँ के पास गयी ।उस दिन पहली बार महसूस हुआ माँ पापा हमारे जीवन में कितना महत्व है।
इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था।
उस दिन के बाद से मैंने माँ पापा को अकेले नहीं छोड़ा अपने साथ ले आई ।माँ पापा अभी भी भाई के वापस आने का इतजार कर रहे है । मगर इस बात की तसल्ली थी कि उनकी बेटी उनके के पास है।
सारे काम जरूरी होते हैं परंतु माँ पिता से बढ़कर नहीं।