लोरी
लोरी
मीनू के जन्म के समय हुई उसकी माँ की मृत्यु के बाद, उसके पिता ने इस भय से की कहीं। उनका अपनी बच्ची से प्यार कम न हो जाए।
दूसरी शादी नहीं की और हमेशा अपनी ओर से यही कोशिश की, कि उसे माँ की कमी कभी महसूस ना हो।
और जब जब भी वो अपनी बच्ची को ये कहते हुए सुनते की "मेरे तो पापा ही मेरी माँ भी है" तब बहुत खुश होते उन्हें लगता कि वे अपनी कोशिश में सफल होते जा रहे है।
पर जब छोटी बच्ची ने उन्हें बताया कि आज क्लास में उसकी सहेली ने एक लोरी सुनाई, जिसपर सभी बच्चों सहित क्लास टीचर ने भी उसकी बहुत तारीफ की।
बच्ची की बात सुन एक पल को वो भी मुस्कुरा दिये, फिर मीनू ने मासूमियत से पूछा कि पापा ये लोरी क्या होती है।
इसपर पिता उसे समझाते हुए बोले, बेटा ये वो गीत होता है जो बच्चों को बचपन में सुलाने के लिए गया जाता है।
पिता की बात सुन जब मीनू ने पूछा कि पापा मुझे तो कभी आपने लोरी सुनाई ही नहीं।
तब उसका यह प्रश्न उसके पिता के अंतर को झकझोर गया।
उन्हें अब सहसा लगा कि शायद तभी भगवान ने माँ को इतना ऊँचा स्थान दिया है, कि कोई लाख कोशिशों के बाद भी वहां तक कभी नहीं पहुँच पता।
और इतना सोचते ही उनकी आंखों में नमी सी उभर आई।