लड़कियों की किस्मत
लड़कियों की किस्मत
ये कहानी है तीन बहनों की आशा, रजनी और मीरा की, बड़े घर की बेटियों की जीवन यात्रा की।
बेटियां पैदा करते ही माता - पिता की सबसे पहली चिंता, उन लोगों के विवाह की होती हैं। इन तीनों बहनों के पांच भाई थे। इनके पिता आर्मी में नौकरी करते थे।
जब बड़ी बेटी आशा की शादी हुई तब उसके पिताजी नौकरी पर थे, अतः लड़का देखने नहीं जा सके थे। आशा के छोटे भाई ने उसका विवाह एक ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक से कर दिया। उन्हें वह लड़का पसंद आया क्योंकि वो पढ़ा लिखा था, लेकिन उसकी कोई पक्की जीविका नहीं थी। विवाह सम्पन्न हुआ और आशा गर्भवती हुई। उसके पति को उनकी सौतेली मां ने घर से निकाल दिया।
कहानी की दूसरी चरित्र है, रजनी आशा कि छोटी बहन। रजनी पढ़ने में ज्यादा तेज नहीं थी, लेकिन रसोई और सिलाई के काम में वह निपुण थी।
परिवार ने पिछले लड़की के विवाह में जो गलती कर दी थी, वह दूसरी शादी में नहीं करना चाहते थे। रजनी के लिए एक पढ़ा लिखा और पेशेवर इंसान की खोज की गई और उनके साथ शादी करवाई गई।
रजनी जब विवाह कर ससुराल पहुंची तो उसकी ननदों ने उसे बहुत तंग किया। कभी - कभी तो मार पीट करने पर भी उतारू हो जाती थी। ननदें अपने भाई के पैसों पर, किसी और की लड़की को आराम से रहते हुए नहीं देखना चाहती थी।
रजनी और उसके पति घर छोड़ कर, भाड़े के घर में चले गए। वहां रजनी को धीरे - धीरे पता चला कि उसका पति नींद में चलता है और कभी कभी तो उस पर गुस्सा करके हाथ भी उठाता है।
आशा के जीवन में इतनी गरीबी थी और रजनी के जीवन में इतनी अमीरी, मगर दोनों के जीवन में ही शांति नहीं थी। परेशानियों से भरा हुआ जीवन था, मगर दोनों जुझती रही क्योंकि दोनों ही जानते थे मायके वाले अब कोई मदद नहीं करेंगे। अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़नी होगी। न रक्षाबंधन वाली कलाइयां न मां का आंचल, बेटियों का कोई सहारा नहीं होता। बेटियों की केवल किस्मत होती है, इसी किस्मत के नाम पर हर दिन बेटियां कुर्बान होती हैं, कभी गर्भ में तो कभी परिवार या समाज में।
कहानी का तीसरा चरित्र है, मीरा। अपनी आठों भाई बहनों में सबसे छोटी। मीरा को सजना संवरना बहुत पसंद था। वो दसवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद आगे नहीं पढ़ पाईं । मां बीमार रहने लगी और बिटिया भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी।
मीरा का विवाह तेईस साल की उम्र में हुई। मीरा के ससुराल में सास-ससुर नहीं थे। मीरा के पति चरित्रहीन थे और अपनी पत्नी के अलावा कहीं और उनका प्रेम संबंध था। मीरा रोती थी और ये बात अपने परिवार वालों को बता दिया कि वो इस आदमी के साथ एक साथ नहीं रहेगी।
मीरा ने उस आदमी से विवाह विच्छेद कर लिया। विच्छेद के उपरांत वो मायके लौट आई, लेकिन परिवार का व्यवहार आचरण मीरा के प्रति बहुत ग़लत हो गया। मीरा को कभी- कभी, आत्महत्या कर लेने की इच्छा होती।
मीरा का विवाह भी अंततः एक कृषक से करवाया गया। जो ज्यादा अमीर नहीं था लेकिन पढ़ा लिखा बहुत था।
शादियां तीनों बहनों की ही हुई। शादी से एक ही बात समझ में आता है कि यही लड़कियों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, परंतु ऐसा नहीं है।
परिस्थितियों की जिम्मेदारी कोई नहीं ले सकता, न परिवार न समाज। समय अग्निपरीक्षा लेता है और हम मनुष्य अग्निपरीक्षा देते हैं।
लड़कियां रोज ब्याही जाती हैं, लड़कियां ब्याहता होकर भी लाखों समस्याओं का शिकार होती हैं, उनका विवाह विच्छेद होता है और फिर पुनर्विवाह भी होता हैं। विवाह सुख का कारण नहीं है, लेकिन विवाह अतिआवश्यक भी नहीं। भ्रूण हत्या, बलात्कार, दहेज, यौन शोषण कितनी ही यातनाओं का शिकार परंतु फिर भी परिवार और समाज के लाज बचाने की जिम्मेदारी बेटियों की ही होती हैं।
"समाप्त"
