लड़कपन
लड़कपन
बचपन में शरारत सभी करते हैं । हर बचपन किसी ना किसी कहानी से प्रेरित होता है ।
ऐसे ही एक घटना मेरे बचपन से जुड़ी मेरे लड़कपन से सम्बन्धित है जब हम समाजिक लोक-लाज को लेकर बहुत डर गये थे।
घटना उस समय की है जब मेरी उम्र दस ग्यारह साल की थी । हम बाजार गये थे घर के कुछ काम से कि लौटते समय रास्ते में दो लड़कियां बकरी चरा रही थीं । हमनें उनके करीब पहुंचा और उनके बचपन का हाव-भाव देखा तो अच्छा लगा कुछ देर के लिए हम भी वहीं रुक गए।
कुछ आपस में इधर-उधर की बातें होते-होते मैं उनसे सीधे जुबान से इजहार कर बैठा । फिर क्या था दोनों माई- माई चिल्लानें लगीं । उधर उसका घर भी करीब था बगीचे से जिधर हम लोग एक दूजे से सिर्फ कहासुनी ही कर रहे थे। अचानक उसकी माँ की आवाज जब मेरे कानों में पड़ी तो मेरी सब सीटी पटाखा बन्द और वहाँ से तुरन्त भाग लिए।
बैठ गया डर दिमाग़ और दिल में कि कहीं वह उलाहना घर ले जाकर मेरी शिक़ायतन कर दे ।हुआ कुछ नहीं था , बचपन की हँसी मजाक समझो मगर दिल बहुत डर गया था यह सोचकर कि कितनी बड़ी सामाजिक बुराई होगी मेरी..!
आज भी जब उस घटना को याद करता हूँ तो दिल पहले ही मना कर देता है नहीं, यह गलत है । किसी के इज्जत के साथ खिलवाड़ करना या किसी का हँसी मजाक में उपहास उड़ाना बहुत ही गन्दा काम होता है ।
उसी घटना से डरकर आज तक मैं सबके साथ घुलमिल कर बातें करता हूँ मगर मेरी नीयत में कोई खोट नहीं रहती है ।
सभी मेरे इस व्यवहार से खुश रहते हैं हँसी-मजाक को छोड़कर मेरी सबसे मित्रवत व्यवहार होता है ।
एक बात की मुझे सीख मिली मेरे इस डर के चलते मैंने मन को बाँधकर दिल सदैव अपने वश में करना सीख गया , जिससे समाज में मेरी प्रतिष्ठा बढ़ गयी..!
अब दुनिया को ही कुछ ना कुछ सीख देनें की कोशिश करता रहता हूँ । चरित्र से बढ़कर इस संसार में कुछ भी नहीं है । यदि आप एक बार समाज की नजरों में बदनाम हो गये दुनिया की कोई शक्ति या धन आपको उबार नहीं सकती।
बचपन के लड़कपन को समझकर जीवन जीने में ही भलाई है । मत उलझना जोश से तुम होश खोकर वरना हमेशा के लिए बदनाम हो जायेगी तेरी ज़िन्दगी।
