लौट आ गया कमाल
लौट आ गया कमाल
पापा जी बताते हैं कि उनके पड़ोस में एक कमाल नाम का आदमी रहा करता था करता था।
सब लोगों उन्हें कमाल चाचा बोलते थे।कमाल नाम उनका इसलिए पड़ा क्योंकि वह जो भी काम करते थे उसमें धमाचौकड़ी मजा डालते। डालते डालते , हर जगह उनका आतंक ,सब लोग चाहते थे कि कमाल चाचा को गांव से बाहर निकाल दिया जाए क्योंकि जहां कमाल चाचा होते थे वहां कुछ भी अच्छा नहीं होता था।
उनके पापा ने थक हार कर उनका उनका कर उनका नाम सेना में लिखा दिया । जब उन्हें पता चला उनका नाम सेना में लिखा गया तो कमाल चाचा जो पहले से दुखी थे वहां से चले गए क्योंकि उन्होंने यह महसूस कर लिया था कि पूरे गांव वाले गांव वाले उन्हें नापसंद करते थे। जब वह सेना मे गए तो उन्होंने कड़ी मेहनत करी और अपने मन में सोचा जिन लोगों ने मुझे उस गांव से बाहर निकाला है, मैं उन्हें दुबारा वहां जाकर दिखाऊंगा ।
कमाल जब दो साल बाद दोबारा गांव में गए तो कोई उन्हें पहचान ही नहीं पाया। लंबा कद शरीर पर वर्दी ,न के बराबर बाल।
जब घर पहुंचे "माही ओ माही देख देख माही देख देख तेरा कमाल आया है "मां ने जब अपने बेटे को देखा तो वह खुद भी ना पहचान पाई कि यह कमाल है।
तभी सियाचिन के बॉर्डर पर लड़ाई शुरू हो गई कमाल चाचा को दोबारा वहां जाना पड़ा । सुबह तो आए ही थे रात में फिर निकल गए। लोगों को ठीक से पता भी नहीं चला कि कमाल चाचा आए थे और ना ही लोगों को इतनी फुर्सत थी कि वह उनसे मिलने आ सकें।
कुछ समय बाद एक तार जिसमें कमाल चाचा के ना रहने की खबर थी आया, उसमें लिखा था कि कमाल चाचा बड़ी बहादुरी से दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। जब यह खबर उनके मां-बाप को पता चली को पता चली आंखों में आंसू होते हुए भी उनका सीना फक्र से ऊंचा था । जब सेना का एक दल उनका बक्सा और वर्दी लेकर लेकर घर में घुसा तो पूरे गांव में यही बात फैली हुई थी आज कमाल फिर गांव आ गया, आज का कमाल फिर गांव आ गया।
लेकिन जब खुला और और खुला और उसमें से कमाल चाचा की वर्दी निकली तो उनके पिताजी ने कहा कहा कहा ने कहा कहा आज मेरा कमाल सा सम्मान घर वापस आया है ।
पूरे गांव ने ने शहीद को शत शत नमन किया और आज भी वहां पर कमाल चाचा की एक मूर्ति बनी है जहां पर प्रतिदिन लोग फूल चढ़ाते हैं और उनको नमन करते हैं।