लाला की चालाकी
लाला की चालाकी
माखनी गाँव में एक लाला की परचून की दुकान थी लाला बड़ा चालाक व होशियार किस्म का व्यक्ति था गाँव एक जंगल की पहाड़ी पर बसा हुआ था ।गाँव के लोग ज्यादातर अनपढ़ थे।लाला की एकमात्र दुकान थी सो लाला लोगों को औने - पौने दामों में अपना सामान बेचा करता था। यहाँ तक कि भाव करने के बाद भी पैसा ज्यादा कमा लेता था। व सामान भी कम तोला करता था ।गाँव की भोली - भाली जनता लाला का शिकार वर्षों से बनती आ रही थी। गाँव में सरकारी प्राथमिक विधालय खुल गया।
गाँव के बच्चे विधालय में पढ़ने जाने लगे कुछ ही वर्षों में जब बच्चे पढ़ - लिखकर समझदार हुये तब उन्होंने लाला की चालाकी पकड़ी। सभी ने लाला को बेइज्जत किया सभी ने लाला को खरी - खोटी सुनाई तथा सभी ने लाला की दुकान से सामान लेना बन्द कर दिया अब तो लाला को काटो तो खून नहीं कुछ ही दिनों में लाला की भूखों मरने की नौबत आ गई। लाला जिल्लत भरी जिन्दगी तो वैसे ही जी रहा था अब तो लाला को खाने के लाले पड़ गए। लाला की दुकान बंद हो गई सभी ग्रामवासी पास के नगर जाकर सामान लाने लगे।व्यापार में ईमानदारी सर्वोपरि है लालाओं की चालाकी कुछ ही दिनों चलती है एक न एक दिन भांडा फोड़ हो ही जाता है जब भांडा - फोड़ होता है तो आदमी न घर का रहता है और न ही घाट का। आदमी की चालाकी ही उसे ले डूबती है।
शिक्षायें
( 1 ) व्यापार में ईमानदारी बहुत जरूरी है ।
( 2 ) बेईमानी कुछ ही दिन तक फलती - फूलती है ।
( 3 ) ग्राहक भगवान का रूप है इस सिद्धान्त पर व्यापार करना चाहिए।
