कुश्ती

कुश्ती

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झम्मन लाल, धीरा और बीरा की दुश्मनी अब अलग लेवल पर जा पहुँची थी, तीनो के तीनो एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे, एक दूसरे को नीचा दिखाने का अवसर वो चूकते नहीं थे। दिलदार सिंह के तबेले पर बेगार करते हुए वो एक-एक पैसे के मोहताज हो चुके थे। पहले उन्हें अपने घर से आने-जाने की अनुमति थी लेकिन अब दिलदार सिंह को उनका तबेले से बाहर जाना मंजूर नहीं था। जितनी बार उन्हें आज़ाद किया वो किसी न कसी झमेले में फंस कर थाने की हवालात में पहुँच जाते थे और फिर उसे ही थानेदारों की जेबें गर्म करके उन्हें जेल जाने से बचाना पड़ता था। ये बात अलग थी कि उनकी रिहाई में जितना भी पैसा लगता था दिलदार उससे दस गुना दाम की बेगार कराता था उनसे, लेकिन दिलदार उनके बार-बार पुलिस के लफड़े में फँसने से आजिज आ चुका था आखिर उन लफंगो को थाने से रिहा कराने से उसकी समाज सेवक वाली छवि पर पर भी बट्टा लग रहा था।

बेगार का आधा समय यानी तीन महीने गुजर जाने के बाद दिलदार सिंह ने उन तीनों को तबेले के १०० मीटर के दायरे में एक सप्ताह में सिर्फ एक बार एक घंटे के लिए घूमने की अनुमति इस शर्त के साथ दी थी कि- अगर वो फिर बदमाशी कर थाने पहुंचे तो वो किसी भी कीमत पर उन्हें छुड़ाने नहीं आएगा।

आज ऐसा ही दिन था, आज तीनों एक घंटे के लिए तबेले से बाहर निकले थे। बिना पैसे के तबेले से बाहर आने का कुछ फायदा नहीं था इसलिए तीनों की दरख्वास्त पर दिलदार सिंह ने २५ रुपये की रेजगारी झम्मन लाल के हाथ पर रख दी थी।

"बेटे ये पैसा तुमको अपना छह महीने काम करने का ठेका खत्म करने के बाद एक दिन तबेले में काम करके चुकाना पड़ेगा।" -दिलदार सिंह ने पैसा देते समय गुर्रा कर कहा था।

२५ रूपये में क्या आ सकता था? इस बात पर ज्यादा बुद्धि लगाने की जरूरत नहीं थी; इसलिए तीनो ने तय किया कि नुक्कड़ के हलवाई चंडी दास की दुकान से गर्मा-गर्म जलेबी खरीद कर खाई जाये।

"२५ की जलेबी तोल दे छोटू।" -झम्मन लाल ने दानवाकार हलवाई की और चुटकी बजा कर कहा।

छः फिट का दानवाकार पहलवान हलवाई खुद को छोटू पुकारे जाने से सुलग उठा लेकिन ग्राहक को भगवान का दर्जा देते हुए उसने जलेबी तल कर एक अख़बार के टुकड़े पर रख कर तीनों के सामने पड़ी बैंच पर रख दी।

तबेले का बकवास खाना खाकर ऊब चुके धीरा, बीरा और झम्मन लाल जलेबियों पर टूट पड़े। जिसके हाथ जितनी जलेबी लगी वो उतनी जलेबी चट कर गया। पाँच मिनट बाद तीनों अपनी उँगलियों को चाट रहे थे।

"चल बे जलेबी के दाम चुका दे हम तुझे पान की दुकान पर मिलेंगे।" -कहकर धीरा; बीरा के साथ उठ खड़ा हुआ।

"अबे ठहरो मैं भी चलता हूँ, कुछ जुगाड़ लगाता हूँ उधारी के पान का।" -कहते हुए झम्मन लाल ने पैसा निकालने के लिए अपनी पैंट की जेब में हाथ डाला। पैंट की जेब में हाथ डालते ही उसके होश उड़ गए, उसकी जेब फटी हुई थी और सारा पैसा फटी जेब के रास्ते गिर चुका था।

"क्या हुआ होश क्यों उड़ गए.........?" -हलवाई उसके चेहरे की रंगत को देख कर बोला।

"उस्ताद पैसा तो फटी जेब से बाहर गिर गया।" -झम्मन लाल परेशान होते हुए बोला।

"बेटा छोटू पैसा तो तुझे देना पड़ेगा, नहीं तो वो हाल करूँगा की तुम्हारे सात पुस्ते याद रखेंगी।" -हलवाई छोटू शब्द पर जोर देकर गुर्रा कर बोला।

"पैसा है नहीं तो दूँ कहाँ से?" -झम्मन लाल कुछ हिम्मत दिखाते हुए बोला।

"पैसा तू क्या तेरे फरिश्ते भी देंगे, वो तेरे दोनों साथी कहाँ गए? अबे लल्लू, बल्लू जाओ पकड़ लाओ उन दोनों को भी।" -हलवाई ने अपने नौकरों को आदेश दिया।

धीरा और बीरा जिन्होंने झम्मन लाल की जेब से गिरते सिक्के देख कर समझ लिया था कि उसकी जेब खाली है, इसलिए वो पान की दुकान पर जाने के बहाने तबेले की और भाग चले। उन्हें उम्मीद थी कि झम्मन लाल को आज जूते पड़ने तय है, इसलिए दोनों हँसते हुए तबेले की तरफ भागे चले जा रहे थे।

लेकिन तभी दो साइकिल सवारों ने उनका रास्ता रोक लिया और उनमें से एक उपहास के साथ बोला- "क्यों बे जलेबी हजम करने के लिए दौड़ रहे हो? पैसे कौन देगा?"

"पैसा वही देगा जिसने आर्डर किया था।" -धीरा चालाकी दिखाते हुए बोला।

"वो तो कड़का है अब तो उस्ताद तुम से ही वसूलेगा पैसा। शराफत से चलो हमारे साथ नहीं तो हमे ले जाना आता है।

थोड़ी देर बाद धीरा और बीरा साईकिल चला रहे थे और हलवाई के नौकर लल्लू और बल्लू दोनों साइकिलों के कैरियर पर लदे हुए थे। कुछ  देर बाद वो तीनों हलवाई के सामने लाचार खड़े थे।

"बेटे या तो जलेबी का दाम चुका दो नहीं तो अभी बुलाता हूँ पुलिस को फोन करके।" -हलवाई गुर्रा कर बोला।

पुलिस के नाम से तीनों को दिलदार सिंह की धमकी याद आ गई और तीनों रिरिया कर बोले- "अरे नहीं उस्ताद जी ऐसा न करो हम तुम्हारी दुकान के सब बर्तन माँझ देंगे।"

"अबे वो तो पुरानी सजा हो गई कुछ नई बात करो।" -हलवाई उपहास के साथ बोला।

"उस्ताद जी हमे एक घंटे में तबेले पहुंचना है आप जो सजा दोगे वो मंजूर है हमें।" -तीनो एक सुर में बोले। 

"तो बेटे तुम तीनों को कुश्ती लड़नी पड़ेगी मुझ से; उसके बाद तुम तीनों पुलिस के लफड़े और जलेबी की कीमत से बरी।" -हलवाई मुस्करा कर बोला।

"अरे उस्ताद हमें कुश्ती नहीं आती........" -धीरा हलवाई के डील-डोल को देखते हुए बोला।

"बेटे या तो जलेबी के दाम, या थाने की सैर या तो कुश्ती तीनों में से एक को चुन लो।" -हलवाई दांतो को किटकिटाते हुए बोला।

"उस्ताद हम कुश्ती ही लड़ लेंगे........." -तीनों ने रोते हुए एक सुर में कहा।

१० मिनट बाद हलवाई ने उन्हें दुकान के सामने पड़े प्लाट में अखाडा खोदने पर लगा दिया। बाद में पहलवान छाप हलवाई ने तीनों को कुश्ती में ऐसे-ऐसे दांव लगा के मारा कि तीनो चलने फिरने लायक भी न बचे।

२ घंटे बाद जब तीनों तबेले में पहुँचे तो तब तक तीनों की कुश्ती की खबर दिलदार सिंह तक पहुंच चुकी थी।

उन्हें देख कर वो गुर्रा कर बोला- "आ गए हाथ पैर तुड़वा के, ले लिए मजे तबेले से बाहर की सैर के, चलो उठाओ गोबर के टोकरे और लग जाओ अपने काम पर।

तीनों ने अपने टूटते बदन को सहलाते हुए गोबर के टोकरे उठाये और गोबर ढुलाई के काम पर लग गए।


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