कसम
कसम
"कह दो नहीं चाहती मुझे? "
"नहीं चाहती "
"सर की कसम "
"क्या बचपना है?"
"कसम नहीं खायी तुमने !"
"हाँ !नहीं चाहती !"
"हाँ या ना !"
"ना !"
जाह्नवी ने अपने सर पर हाथ रख कसम उठा ली थी । उसके बाद राहुल कभी नहीं दिखा। फेयरवेल पार्टी के दिन उन्होंने भी एक -दूजे से विदाई ले ली । कॉलेज पूरा हो ही चुका था । फिर कौन कहाँ गया कुछ पता ना लगा ।
जाह्नवी की शादी पहले ही तय थी तो वह ब्याह कर बैंग्लोर आ गयी और दो सालों में ही अरुण को अमेरिका भेजा गया । वह भी अपने एक वर्षीय लाडली बेटी अनुषा व अरुण के साथ अमेरिका में बस गयी । आज इतने साल बीत गए। अब तो सबके केश भी खिचड़ी से हो रहे थोड़े काले और थोड़े सफ़ेद, फिर क्यों भला कॉलेज का आखिरी दिन याद आ गया। दरअसल अनुषा और उसका दोस्त रोहन खेल रहे थे । दोनों में किसी बात पर लड़ाई हो गयी ।रोहन तनकर अनुषा से कसम उठाने के लिए ज़िद्द करने लगा।
"खा कसम !"
"नहीं खाती!"
वही अंदाज़ -वही आवाज़!
एकदम से चौंक गयी कि कोई इतना एक सा कैसे हो सकता है ?तभी तो उसे सारी पुरानी बातें याद आने लगीं और वह ध्यान से देखने लगी कि कहीं रोहन, राहुल का बेटा तो नहीं? सारी बातें इंग्लिश में करने वाला हिंदी में कसम की बात कैसे कर बैठा? फिर सोचने लगी शायद भ्रम है उसका ।कितनी फिल्मी है वो भी ।ये तो अमेरिकन माँ के साथ रहता है ।कई बार मिली हूँ ।कभी स्कूल में भी इसके पिता नहीं दिखे ।अब वह तसल्ली से बैठ गयी थी और सोचने लगी कि उस दिन राहुल के सामने क्यूँ झूठी कसम उठायी थी ।उसे अपने गरीब माता -पिता और अन्य रिश्तेदारों के बीच उनका झुका सर ही नज़र आ रहा था तभी तो उसने अपने प्यार को दिल में ही दफना दिया था ।वह उन्हें रुस्वा कैसे करती? वैसे भी उसने अपने को दोस्ती तक ही सीमित रखा था। इसलिए आसानी से राहुल से बोल पायी कि वह अपने माता-पिता के अलावा किसी से प्यार नहीं करती ।
अरुण पिताजी के मित्र का इकलौता बेटा था और दोनों एक -दूसरे को बचपन से जानते थे। इसलिए पसंद -नापसंद या तेरा -मेरा परिवार जैसी कोई समस्या ही नहीं आयी ।पन्द्रह साल हँसी -ख़ुशी में बीत गए थे। जो अबतक ना आई तो अब क्या आएगी। यही सब सोचती हुयी आँखें बंद कर लेट गयी ।पर नींद की जगह, राहुल का चेहरा आँखों में नाच रहा था। कॉलेज के पहले दिन से आखिरी दिन तक की सब बातों को याद करने के बाद मन और भी बेचैन हो गया ।उसने तय किया कि आज रोहन को उसके घर छोड़ने वही जाएगी और उसके पिता के बारे में भी पता लगाएगी ।
'मायरा 'रोहन की मॉम, बहुत अच्छी लगी। उससे बातें करते ही उसकी सारी बेचैनी जाती रही। रोहन वाकई राहुल का बेटा था। कॉलेज की पढ़ाई के बाद अमेरिकन यूनिवर्सिटी से राहुल और मायरा ने साथ में एम. बी . ए किया था ।इससे पहले कि दोनों विवाह बंधन में बंधते, राहुल को पता लगा कि वह गर्भवती है । राहुल देश यह कहकर गया कि बहुत जल्द उसे बुलाएगा। एक हफ्ते के बाद विवाह की तिथि तय होने की बात फ़ोन पर बताई और टिकट भेजने वाला था । यही आखिरी कॉल था ।इसके बाद उनकी कोई बात नहीं हुई , बल्कि कोई खबर भी ना मिली ।मायरा ने फ़ोन किया भी पर राहुल का फ़ोन स्विचड ऑफ आता रहा ।उसके गांव वाले घर पर भी फ़ोन कई बार किया पर उसकी बातें कोई ना समझ सका। ना ही उसे कुछ समझ आ रहा था ।हारकर उसने संतोष कर लिया ।इस बीच वह प्यारे से बेटे रोहन की माँ बनी। बेटे के रूप में रोहन, राहुल ही था ! उसकी ख्वाहिशों के अनुरूप ही उसके बेटे को बड़ा कर रही थी ।राहुल की याद आती तो यही ख्याल आते कि हो सकता है राहुल की कोई मज़बूरी रही होगी यही भरोसा रख उसने तसल्ली कर ली। कभी ना कभी राहुल उसे याद कर लौटेगा ।
राहुल के रिकॉर्डेड वीडिओज़ ही माँ -बेटे के जीने का आधार थे ।पिता की नक़ल उतार कर,रोहन अक्सर माँ को हँसाया करता। हूबहू वही बोलने का लहज़ा, उसने उसी वीडियो से सीख लिया था। ये सब देख जाह्नवी प्रभावित हुए बिना ना रह सकी । कौन कहता है प्यार बस हिंदुस्तानी निभाते हैं यहाँ तो पूरा रिश्ता अकेली मायरा निभा रही थी और बखूबी निभा रही थी ।मन ही मन राहुल की लापरवाही पर गुस्सा और मायरा के एकनिष्ठता पर गर्व हो रहा था। उसे मायरा के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब वह दोनों को मिलाकर अपनी दोस्ती निभाएगी ।
जाह्नवी ने, उसे आश्वस्त किया कि राहुल उसके कॉलेज के समय का दोस्त है । इसलिए दूसरे दोस्तों के द्वारा उसका पता आसानी से लगा पायेगी और बहुत जल्दी वह राहुल से मिला देगी। बच्चे को पिता का साथ मिलेगा, यह सब सोच कर उसने गहरी साँस ली। मायरा की ख़ुशी का ठिकाना ना था। इन चौदह वर्षों में पहली बार कोई इतने अपनेपन से मिला था ।ख़ुशी से उसके गले लग गयी। उसके लिए जान्हवी आशा की किरण बन गयी थी ।
जाह्नवी ने कॉलेज के सभी दोस्तों को फ़ोन किया तो आखिरी कॉल के बाद उसे राहुल के माता -पिता का नंबर मिला। मायरा के साथ बैठकर उसने कांफ्रेंस कॉल किया ।
"ख़ुशी के मारे पागल हो गया था,जिस दिन वह मायरा का टिकट भेजने शहर गया। वो दिन ही उसके जीवन का अंतिम दिन बन गया। कुछ गुंडों ने रुपयों के कारण उसकी जान ले ली , हमें भी पुलिस वालों ने ही सूचना दी । हमारे पास कोई अता -पता ना था जो मायरा को सूचित कर पाते ...."उसके पिताजी ने कहा
उनसे बात कर और राहुल के बारे में जानकर वह सन्न रह गयी।जाह्नवी ने सोचा था राहुल और मायरा की बात कराएगी और सबको सरप्राइज देगी पर ख़ुशी की जगह सबकी आँखे बरबस ही बरसती रहीं ।
सात समंदर पार से सब एक -दूसरे के दुखों को अपने दुःख से ज्यादा समझ रहे थे ।चार जोड़ी आँखे बस मौन श्रद्धांजलि दिए जा रही थीं ।मायरा के आंसुओं में घोर दुःख व पछतावा था क्यूंकि उसने राहुल को ग़लत समझा था ।माता -पिता राहुल के जगह छोटे राहुल को पाने के ख़ुशी में भीग रहे थे ।आखिरकर उन्हें पोते के रूप में बेटा मिल रहा था और जान्हवी ख़ुशी में रो रही थी ।शब्दों में भले न स्वीकार किया हो पर राहुल के बिछड़ों को मिलाकर राहुल के प्रति अपनेपन व प्यार को प्रकट कर दिया था ।
उसने आनन -फानन में टिकट कराया और मायरा व रोहन को इण्डिया के लिए फ्लाइट में बैठा कर आसमान की ओर देखती हुयी बस इतना ही कहा कि हम हिंदुस्तानी 'वसुधैव कुटुंबकम' एबीसीडी के साथ ही सीख लेते हैं ,फिर तुम तो मेरे रूठे हुए दोस्त थे। तुम्हें कैसे छोड़ देती। मैंने तुम्हारे प्यार को तुम्हारे अपनों तक पहुँचा दिया है। अपने हिस्से का प्यार निभा दिया राहुल।
