क्या यही प्यार
क्या यही प्यार
तीन दिन बाद आज कोहरे की चादर से निकल सूरज ने आसमान में अपनी सुनहरी किरणें फैला दी थी । इस ठंडी के गुलाबी मौसम में कुनकुनी धूप ,सौंधी सौंधी फूलों की खुश्बू में, बगीचे में सर्द हवाओं में धूप सेंकना बहुत ही अच्छा लग रहा था ।गुलाबी धूप की तपन बहुत आत्मिक सुखदायक थी ।मन के भीतर ना जाने कितना कुछ चल रहा था ।
आकाशवाणी पर गीत बज रहा था ...एक प्यार का नग्मा है , मौजौं की रवानी हेै जिन्दगी.................।
उसने एक ठन्डी सांस लेकर धूप सेंकते हुए आलोक का पत्र पढ़ना शुरू किया .."विभाग याद है विभा ? हमेशा तुम पूछती थी," प्रेम क्या है ?और मैं बस मुस्कुरा कर कह उठता था…
जान जाओगी जब किसी से होगा
यही कह तुम्हारी आंखों में झांक उनको पढ़ने की कोशिश करता था ।"
विभा प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती ,ना ही उसके समीकरण ,सूत्र, सिद्धान्त नियुक्त किये जा सकते हैं, प्रेम का कोई अन्त नहीं है ।प्रेम का अन्त सुखद ही हो ऐसा भी नही है ।
प्रेम विस्तार है जीवन का ! पहली बार जब हम मिले थे ।तुम एक चुलबुली बेपरवाह सी लड़की की तरह मिली मुझे, जो उड़ना चाहती थी बिना पंख के, जीवन में सतरंगी रगं भरती अपना अलग आसमान चुनती कोई लापरवाह सी लड़की । बहुत कुछ बोलती रहती थी ,मेरी हर बात को जैसे हवा मे उड़ा रही हो ।तुम्हारी झील सी आँखे देख कर । मैने तब तुम्हारी आंखो में झांक कर पूछा भी था कि "मै कौन हूं ,तुम्हारा मित्र हूं ,या कुछ और?"
तुमने जवाब नहीं दिया था ।आज तक भी इंतजार है तुम्हारे जवाब का, ।
"क्यों डरती हो , अपने भीतर लड़की से ?" वो भी सपने देखना चाहती है जीवन मे रंग भरना चाहती है..... ।अब बेपरवाह रहना बन्दर करो और अपनी सोचो । जीवन इसी का नाम है ।
मैने प्रेम किया है तुमसे ,हमेशा खुश रहो बस ये यही हमेशा चाहा ।तुम्हें खुश देखना चाहता हूं। तुम्हें मित्र बनाकर भी खुश हूं।पर चाहता हूं तुम अपने आप से ईमानदार रहो, किसी भी डर से उबर जाओ। तुम वही करो जो तुम्हारा मन चाहे ।तुमने मेरी बात को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया ।
अपने आप से इमानदारी रखो।कब तक ऐसा ही चलेगा ?
कब तक धोखा दोगी अपनी आत्मा को ?
क्या ये सब ठीक है ? नहीं मैं तुम को इस तरह घुटते नहीं देख सकता ।
गालो पर ढुलकते आसुंओ को पोंछ वह मन ही मन बुदबुदाई…
"हां आलोक अब वह मन का कहाँ मानेगा ,वैसे भी राघव को शादी जैसी प्रथा पर विश्वास ही नहीं।
उसने फोन उठाया और आलोक को लगाकर हैलो कहा ही था कि फिर से उसके कानों में गाने की गुँज सुनाई दी .....नैनो की मत सुनिओ जी ,नैनो की मत जानिओ,
नैना ठग लेगे ....।
