कर्फ्यू का तीसरा दिन
कर्फ्यू का तीसरा दिन
आज मन बहुत अजीब सा हो रहा है छत पर घूम आती हूँ वैसे तो कहाँ समय रखा है इस भागदौड़ भरी जिंदगी में ,अरे थोड़ा समय निकाल कर पौधे को सही कर दूं वैसे तो रोज ही करती हूँ लेकिन ज्यादा समय नहीं दे पाती हूँ आज मैं सारे पौधों का कुछ ज्यादा ही समय दूंगी जिससे कि मेरा मन भी अच्छा हो जाएगा और मुझे खुशी होगी जैसे छत पर जाकर देखा तो वहां एक अच्छा नजारा था माता-पिता अपने बच्चों के साथ खेल रही थे कुछ पतंग उड़ा रहे थे कुछ बैट बॉल खेल रहे थे बच्चे बहुत खुश लग रही थे क्योंकि इस कोरोना वायरस की वजह से बच्चों पर पढ़ाई का कोई बोझ नहीं था आजकल बच्चों पर पढ़ाई का बोझ इतना है कि बच्चों के खेलने का समय ही नहीं।