Radha Gupta Patwari

Children Stories

5.0  

Radha Gupta Patwari

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कोई भी काम छोटा नहीं होता है

कोई भी काम छोटा नहीं होता है

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निशा की बेटी विभूति स्कूल से पढ़कर घर आई।निशा ने कहा-"विभू बेटा! टिफिन निकाल दो,सरला धो देगी।मां की बात को सुनते हुए विभूति ने अपना टिफिन बैग से निकाला और सरला को देते हुए बोला-"सरला यह लो टिफिन।"निशा जब तक कुछ समझाती विभूति कमरे में जा चुकी थी।बात आई गई हो गई।


शाम को निशा विभूति के साथ नीचे उतरी तो उसने दरबान से कहा-"भैया!अगर विभूति के पापा आए तो बोल देना मैं मार्केट तक जा रही हूँ वैसे मैंने उनको फोन करके बोल दिया है।"यह कहकर निशा विभूति के साथ बाजार निकल गई।


बाहर निकलते ही निशा को एक रिक्शे वाला मिल गया रिक्शे वाले से मोलभाव करते हुए निशा बोली-"भैया!सर्वेश्वर चौराहे तक छोड़ देना।"रिक्शा वाला बोला-"जी बहन जी बैठिए।" 


जैसे ही दोनों मार्केट पहुंची विभूति के जूता फट गया। निशा ने बोला अगर कहीं मोंची मिला तो तुम्हारे जूते सही करवा देती हूं ।इधर-उधर ढूंढने के बाद उन्हें एक मोंची मिल गया।निशा ने विभूति से कहा जूते उतार के दे दो।विभूति ने नाक-मुँह सिकोड़ते हुए जूते उतारकर मोची को ऐंठ कर देते हुए कहा-"ये लो जूते और जल्दी ठीक कर दो।" निशा ने विभूति के इस बर्ताव पर आंख दिखाइए तो विभूति चुप हो गई।


मार्केटिंग करने के बाद निशा विभूति से बोली-"घर पर खाने के लिए कुछ सब्जी ले चलते हैं। सब्जियाँँ खत्म हो गई हैंं।"यह कहकर निशा सब्जी लेने लगी। सब्जी छाँँटने के बाद निशा ने सब्जी वाले से हिसाब लेने को कहा पर सब्जीवाला बहुत व्यस्त था।जब वह नहीं सुन रहा था तो विभूति ने झाड़ते हुए बोली-"ऐ सब्जीवाले!पहले हमारा हिसाब कर दो।कब से खड़े हैं।"घबराकर सब्जी वाले ने हिसाब दे दिया पर निशा को विभूति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा।विभूति ने रौब छाड़ते हुए कहा-"देखा मम्मी एक बार हड़का दिया सब्जी वाले को ।कैसे फटाफट हिसाब कर दिया उसने।"


निशा को विभूति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा पर भरे बाजार में उसको समझाना उचित नहीं समझा।वह नोटिस कर रही थी विभूति के व्यवहार में कुछ बदलाव हो रहा है।वह सब्जीवाले, रिक्शा वाले,कामवाली,दूधवाले से तू तड़ाक करके बात करने लगी है। 


दोनों घर पहुंच गए। रात को घर की घंटी बजी।विभूति ने दरवाजा खोलते हुए कहा-"रामसिंह दूध लेकर आया है।"यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई।निशा उसके बदलते व्यवहार से हैरान थी।निशा ने दूध लिया और सीधे विभूति के कमरे में पहुंची गई।निशा ने सीधे शब्दों में कहा-"विभूति मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"विभूति बोली-"बोलो,मम्मा क्या बात है।"


निशा ने कहा-"मैं देख रही हूं,एक-दो दिन से तुम्हारे व्यवहार और बोलने के तरीक़े में काफी अंतर आ गया है।" विभूति ने कहा-"अब मैंने क्या किससे बोल दिया।ओह मम्मा प्लीज़ क्लीयर इट।"



निशा सीधे-सीधे शब्दों में कहा-"तुम कामवाली,सब्जीवाले,गार्ड,मोची,दूधवाले को तू-तड़ाक करके क्यों बोलती हो।भैया या आंटी कहकर नहीं बोल सकती हो।"


विभूति हैरान होकर बोली-"मम्मा,आपको हो क्या गया है?आप इतना सीरियस क्यों हो रहे हो,इस बात को लेकर।अरे छोटे लोग हैं ये।भैया या आंटी बोलने की क्या जरूरत है? इनका स्टैंडर्ड हमारे स्टैंडर्ड से मैच नहीं करता है।"


निशा बेटी को समझाते हुए बोली-"बेटा,सिर्फ स्टैंडर्ड ही सब कुछ होता है क्या?इन लोगों का आत्मसम्मान नहीं है क्या?ये लोग क्या हम लोगों से भीख माँग रहे हैं या फ्री में कुछ लेते हैं ?नहीं न।ये लोग मेहनत करके कमाते हैं खाते हैं।ये लोग गरीब हैं तो इन लोगों की क्या गलती।इन लोगों की भी इज्जत होती है।हमें कभी भी अपने पैसे का गुरूर नहीं करना चाहिए।टाइम इज़ वैरी पावरफुल।स्टैंडर्ड कभी भी किसी का बदल सकता है।इन लोगों का पद भले ही छोटा हो पर इनकी उम्र तो हमसे बड़ी है।वह दूधवाला तुम्हारे दादाजी के उम्र से कितना बड़ा है।क्या तुम अपने दादाजी का नाम का लेकर बुलाओगी?नहीं न।हम मेरे बात का मतलब समझ गई होगी।"


विभूति को अपनी गलती का एहसास हो गया था और उसने माँ से आइंदा ऐसा न बोलने का वादा किया।


 दोस्तों ,हम अपने आसपास ऐसा जरूर देखते हैं कि हमारे बच्चे इन लोगों से तू तड़ाक करके बात करते हैं या इनका नाम लेते हैं जो कि बहुत गलत है।यह लोग 2 जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।अगर हमको भैया या आंटी कह कर बुलाते हैं तो इनको इनके चेहरे पर अलग खुशी आ जाती है।




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