कलावती
कलावती
नन्ही कलावती के हाथों में जैसे जादू था।वह बहुत ही छोटी उम्र में मिट्टी के छोटे बड़े हर तरह के सुंदर बरतन बनाना जानती थी। उसने अपने पापा को बचपन से ही मिट्टी से चाक पर बरतन बनाते हुए देखा। स्कूल से आते ही वह चाक के पास बैठ जाती। अपने पिता के हाथों को मिट्टी और चाक पर घूमते हुए देखा करती। धीरे धीरे वह नकल करने लगी। टेढ़े मेढे बर्तन खिलोने आदि बनाने लगी।
पिता ने प्रोत्साहित किया। कलावती का हाथ चाक पर अद्भुत तरीके से काम करने लगा।बरतन,खिलौने,मूर्तियां,गमले, फूलदान जैसी कलाकृति बहुत सफाई और आकर्षक रूप रंगों में ढालने लगी। उसके पिता हैरान थे। उनकी नन्हीं बेटी ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। कलावती की कृतियों में नये डिजाइन,नये आकार,नये स्वरूप सब कुछ बेहद खास था।
उसके हाथों बने बरतन आदि को लेकर उसके पिता हाट जाते पूरा सामान शीघ्र ही बिक जाता। बैलगाड़ी खाली हो जाती थी ।
कहते हैं बच्चे बड़ों के पिता होते हैं।सात साल की उम्र तक वे अपने माता पिता और परिवार संग रहते बहुत कुछ सीख लेते हैं।
कलावती इसका अनूठा उदाहरण थी।
कलावती के माता पिता कुम्हार थे। उसने बचपन से ही माता को मिट्टी गूंधते हुए पापा को चाक चलाते,बरतन बनाते हुए देखा ।जब माँ खाना बनाती और पिता काम से बाहर जाते तो वह चाक पर अपने नन्हे हाथों से कुछ कुछ बनाती। उसके माँ पिता सदा उसकी सराहना करते।
कलावती को स्कूल भेजा गया। किंतु उसे मिट्टी और चाक से इतना प्यार था कि स्कूल जाना भी नहीं भाता था। पंद्रह साल की उम्र में वह राष्ट्रीय कलाकार बन गई।
हर तरफ उसकी कला की धूम मची थी।वह जिस चीज को भी देखती उसे मिट्टी चाक और अपने हाथों से हूबहू ढाल लेती थी। हर राज्य में उसके बनाए मिट्टी के बर्तन, खिलोने आदि की प्रदर्शनी लगाई जाने लगी।
गांव के सरपंच ने पंचायत की जमीन पर
कलावती द्वारा बनाई कलाकृतियों का संग्रहालय बना दिया। कलावती का गांव भारत और विदेशों से आए सैलानियों का आकर्षण का केंद्र बन गया।
भगवान ने कलावती को हुनर दिया था।उसके अंदर का कलाकार बचपन में ही जाग गया।उसे अपनी कला के लिए जिला एवं राज्य स्तर पर कई प्रशंसा-पत्र मिले। और अपने हुनर मेहनत और लगन से राष्ट्रीय कलाकार बन गई।
सरकार चाहती थी कि भारत में कलावती जैसे बहुत से कलाकार पैदा हों इसलिए सरकार ने माटी कलाकृति संस्थान बनाने के लिए कलावती को ऋण उपलब्ध कराया। कलावती उक्त संस्था के माध्यम से भारत के सभी बच्चों को प्रशिक्षण देने लगी।