किसन दा

किसन दा

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हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान गणेश को फौज में भर्ती होने का सुर चढ़ा, क्योंकि उन्हीं दिनों मल्ला गाँव के किसन दा फौज में भर्ती हुये ठैरे। गाँव में फौज की नौकरी का उन दिनों बहुत अधिक क्रेज था। किसन दा भी अपने दोस्तों के साथ ऐसी गप्प हांकने वाले ठैरे कि गाँव के सब युवा लड़के फौज में भर्ती होने के लिए उत्साह से सराबोर रहने वाले हुए। वो अक्सर दोस्तों में धाक जमाने के लिए अपने भर्ती होने का वृतांत नमक में शक्कर मिलाकर किया करते थे- "माँ कसम, रेस तो मैंने ऐसे फाड़ी कि ढाई मिनट में ही पूरी कर दी। पहले तो मैं पीछे था, लेकिन दूसरे चक्कर में ही ढेड़ सौ लड़कों को पछाड़ दिया। रेस पूरी होने पर जब मैं पहले नंबर पर आया तो सब देखते रह गये। हवलदार, मेजर, सुबदार सबने शाबाशी दी। एक मेजर ने तो पीठ थपथपाकर कहा- "शाबाश बेटा, तू हमारी रेजिमेंट का मिल्खा सिंह बनेगा। शादी भी तेरी पी.टी.ऊषा जैसी रेसर से ही करायेंगे।"


थोड़ी देर रूकने के बाद वो फिर कहते- " चीन अप तो मैंने लगातार बीस मार दिए थे। सब चकित रह पड़े। जब गड्ढा कूदने की बारी आई तो कोई लड़का दूसरी बार में गड्ढा पार करता तो कोई तीसरी बार में। मैंने पहली ही बार में पार कर दिया। सिपाही बोला- "शाबाश यार, तुझे देखकर तो ऐसा लगा जैसे हनुमान जी ने समुद्र में छलांग लगाई हो।" किसन दा के ऐसे वृतांतों को सुनकर सब लड़के चकित रह जाते थे। ऐसे ही वृतांतों को सुनकर गणेश सिंह भी किसन दा से बहुत प्रभावित हुआ। गणेश सिंह ने उन्हें अपना गुरु बनाया। वह अब किसन दा की सलाह और उनके निर्देशन में भर्ती की तैयारी करने लगा।



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