हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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खूनी वर्दी : भाग -2

खूनी वर्दी : भाग -2

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गतांक से आगे 


अतुल को पहली पोस्टिंग कोतवाली थाने में मिली । सबसे पुराना थाना । 30-40 का स्टाफ । इंस्पेक्टर रेंक का थाना इंचार्ज । तीन सब इंस्पेक्टर । पांच ए एस आई । बाकी हैड कांस्टेबल और कांस्टेबल । दो महिला पुलिस कर्मी । रोजाना पंद्रह से बीस मुकदमों की रिपोर्ट दर्ज होती थी थाने में । राजेश चौधरी थाना इंचार्ज था । थाना इंचार्ज का काम केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट करना और नेताओं के फोन पर निर्देशों की पालना करना था । सारा वक्त बस इसी काम में निकल जाता था । केसेज को देखने के लिए उसके पास समय नहीं होता था । उक्त दोनों कामों के अलावा जो थोड़ा बहुत समय बचता था वह "मंथली उगाही योजना" की मॉनिटरिंग में जाता था । बाकायदा एक रजिस्टर तैयार किया गया था । किस महीने में किस पार्टी से कितनी उगाही हुई और किस किस को कितनी कितनी दी गई । पूरा ब्यौरा रहता था उसमें । 


बेइमानी में सबसे अधिक ईमानदारी होती है । चूंकि "बंदरबांट" का मामला होता है । जरा सी लापरवाही तबाही का आलम बन सकती है । इसलिए एक नियम बना दिया गया था "उगाही में कोई बेइमानी नहीं और वितरण पूरी ईमानदारी से" । यह ध्येय वाक्य बन गया था सब थानों के लिए । वैसे तो हर एक को इस नियम का पता होता था मगर अतुल अभी नया नया आया था इसलिए उसे विशेष रूप से "इस पवित्र नियम" के बारे में बताया गया । पुलिस में एक "दीक्षा संस्कार" भी होता है । जिस प्रकार हर एक संगठन में प्रवेश के समय उस संगठन के मूलभूत सिद्धांत ना केवल पढ़ाए जाते हैं अपितु उनके बारे में शपथ भी दिलवाई जाती है । उसी प्रकार यहां पर भी दीक्षा संस्कार कराया जाता है । 


अतुल का "दीक्षा संस्कार" आरंभ हुआ । इस संस्कार में सबसे पहले तो "मंथली उगाही योजना" को बताया गया । फिर यह समझाया गया कि पुलिस एक "गिरोह" है और इस गिरोह में सभी सदस्यों का यह दायित्व है कि वह अपने गिरोह के अन्य सदस्यों के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं करेगा , चाहे कुछ भी हो जाए । यदि मजबूर किया जाता है कार्यवाही करने के लिए तो अपने उच्च अधिकारियों को पूरी बात बताई जाये उसके पश्चात उनके निर्देशों के अनुसार काम किया जाये और समय समय पर उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट की जाये । यह इसी दीक्षा संस्कार समारोह का ही परिणाम है कि सारे पुलिस वाले एक दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं । 


दीक्षा संस्कार के अंत में एक "शपथ ग्रहण समारोह" भी होता है जिसमें नये रंगरूट को शपथ दिलवाई जाती है कि उसे दीक्षा संस्कार में जो भी ज्ञान बांटा गया है , जो भी बातें बताई गई हैं उनको हमेशा ध्यान रखेगा , उनकी सदा पालना करेगा और उनसे विचलन नहीं करेगा । 


अतुल ने भी दीक्षा ले ली थी । मगर अभी तो वह नया नया था इसलिए नये नये रंगरूट का मन देश सेवा में रमता है । अतुल को "दीक्षा संस्कार" की बातें बड़ी अटपटी लगीं । पर अकेला आदमी करे भी तो क्या करे ? 


अतुल चूंकि सब इंस्पेक्टर था इसलिए उसे अनुसंधान अधिकारी बनाया जाने लगा । अभी नया नया था इसलिए जटिल प्रकरण उसे नहीं दिये जाते थे । छोटे छोटे केस जो चोरी , साधारण सी मारपीट के होते थे , वही दिये गए । उन केसों में अतुल मन लगाकर काम करने लगा । वह बुद्धिमान तो था ही और मन से भी काम कर रहा था इसलिए चोरी की वारदात का खुलासा बड़ी जल्दी होने लगा । जैसे ही अतुल जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करता , थाना इंचार्ज प्रेस ब्रीफिंग कर के सारा श्रेय खुद ले जाता था । इसके बावजूद पुलिस विभाग में उसकी कामयाबी के चर्चे होने लगे । 


एक दिन अतुल अपने केबिन में बैठा हुआ काम कर रहा था कि एक अरदली आया और कहने लगा कि आपको इंचार्ज साहब बुला रहे हैं । वह इंचार्ज साहब के चैंबर में गया तो देखा कि इंचार्ज साहब बहुत परेशान हैं और बार बार अपने बाल नोंच रहे हैं । अतुल ने हाजिरी लगाते हुए कहा "सर" 

"आओ अतुल । अभी अभी कमिश्नर साहब का फोन आया था । बहुत गुस्सा हो रहे थे । कह रहे थे कि "फलां" मंत्री जी की दो भैंस चोरी हो गई हैं । आज ही ढूंढकर पहुंचानी हैं उन्हें "। 


क्रमशः 



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