मिली साहा

Children Stories

4.8  

मिली साहा

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खुशियों का आसमान

खुशियों का आसमान

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"अम्मा! अरी ओ अम्मा!..... कहांँ है तू ?... कुछ बोलती क्यों नहीं ? मेरा दाखिला हुआ कि नहीं?........ तू स्कूल गई भी थी या रास्ते से ही वापस आ गई?....... मेरी किताब, मेरा बस्ता कुछ नहीं लाई क्या?"..….... रोज़ मीनू अपनी माँ से यही सवाल किया करती थी।

मीनू अपनी अम्मा (माँ) के साथ एक छोटे से गांँव में रहती थी, मीनू के पिता नहीं थे, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, किसी तरह से घर का गुज़ारा चल पाता था। मीनू की मांँ कुछ घरों में काम करके बस दो वक्त की रोटी का ही इंतजाम कर पाती थी। ऐसे में मीनू का स्कूल में दाखिला कराना उसके लिए असंभव था। उधर दूसरी तरफ़ मीनू को पढ़ने का बहुत शौक़ था वो बाकी बच्चों को स्कूल जाते हुए देखती थी तो मायूस हो जाती थी, उसका भी मन करता था........."वो भी बसता टांग कर, स्कूल की ड्रेस पहन कर सुबह -सुबह स्कूल जाए"......और उसकी मांँ उसे "टिफिन में खाना और पानी की बोतल" दे। पर मीनू का यह सपना उसकी मांँ पूरा करने में पूर्णतया असमर्थ थी।

मीनू जब भी स्कूल के बारे में कोई सवाल करती, मीनू की मांँ उसे हंँसकर टाल देती थी। वो कहती..... "अरे! अभी तू बहुत छोटी है बिटिया, जब बड़ी होगी तब तेरा दाखिला स्कूल में करा दूंँगी।" और यह कहते हुए मीनू की मांँ अंदर ही अंदर खुद से लड़ती थी। खुद को कोसती रहती थी कि अपनी बिटिया की छोटी सी ख्वाहिश भी वो पूरी नहीं कर पा रही। यही सब सोचते सोचते उसे अपने पति की याद आ जाती कि काश! वो साथ होते तो हमें यह दिन देखना नहीं पड़ता।

मीनू की मांँ पूरी मेहनत करती थी उसने और भी कई घर काम के लिए पकड़ लिए। पर स्कूल की फीस, ड्रेस और किताबों के लिए पैसों का पूरा इंतजाम नहीं हो पा रहा था। मीनू की मासूमियत भरे सवालों का उसके पास कोई ज़वाब नहीं था। खैर! इसी जद्दोजहद में मीनू और उसकी मांँ की ज़िंदगी कट रही थी।

एक दिन जब मीनू की मांँ काम पर निकल गई, तो मीनू ने सोचा.......अम्मा तो कुछ करती नहीं, मैं ही स्कूल के मास्टर से दाखिले के लिए ‌बात करके आती हूँ और इतना कहकर मीनू घर से निकल गई। स्कूल मीनू के घर से करीब दो किलोमीटर दूर था। पर मीनू एक होशियार लड़की थी उसे स्कूल का रास्ता पता था वो चलती गई अपनी धुन में आगे बढ़ती गई।

अभी कुछ ही दूर पहुंँची थी कि उसे एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी। मीनू ने इधर उधर देखा पर वहांँ कोई नहीं था। किंतु जैसे ही उसने कदम बढ़ाया रोने की आवाज़ अचानक से तीव्र हो गई। अब मीनू को लगने लगा कोई तो है जो मुसीबत में है, मीनू अपनी मांँ की बात याद कर मन में ही बुदबुदाने लगी, "अम्मा ने कहा था कोई मुसीबत में हो तो उसकी मदद ज़रूर करनी चाहिए"। मीनू चारों तरफ़ उस आवाज़ को ढूँढने लगी, तभी मीनू ने झाड़ियों के पीछे देखा की एक छोटी सी लड़की का पैर दलदल में फंँस गया है, और कंटीली झाड़ियों से उसका शरीर भी लहूलुहान हो गया है। ऐसा लग रहा था मानो वह बहुत देर से वहांँ फंँसी हुई है। मीनू खुद बहुत छोटी थी किंतु फिर भी वो उस बच्ची की मदद करना चाहती थी।

उस छोटी बच्ची ने बचने के लिए झाड़ियों को कस कर पकड़ा हुआ था किंतु वहांँ से निकल नहीं पा रही थी। मीनू ने सबसे पहले उस बच्ची का ध्यान अपनी ओर खींचा और कहा........ तुम चिंता मत करो!...... "मैं तुझे यहांँ से ज़रूर निकाल दूँगी", तुझे कुछ नहीं होगा!..... बस तू झाड़ियों को कसकर पकड़े रहना।" मीनू की बातें सुनकर उस छोटी बच्ची का डर कुछ हद तक कम हुआ। मीनू मन ही मन उसे बाहर निकालने की तरकीब सोचने लगी। फिर कुछ सोचकर मीनू झाड़ियों की तरफ़ बढ़ी उसने कुछ मजबूत झाड़ियों को अपने एक हाथ से पकड़ा और दूसरा हाथ उस छोटी बच्ची की तरफ बढ़ाया। मीनू कहने लगी....... "अरी ओ ! छोटी बच्ची......." मेरा हाथ कसकर पकड़ ले मैं तुझे अपनी तरफ खींच लूंँगी" छोटी बच्ची ने मीनू का हाथ पकड़ने की कई बार कोशिश की किंतु उसका हाथ उस तक नहीं पहुंँच रहा था तब मीनू ने अपनी परवाह ना करते हुए बच्ची की तरफ़ अपने शरीर को थोड़ा और अधिक बढ़ाया। अब की बार मीनू का हाथ उस छोटी बच्ची ने थाम लिया। जैसे ही मीनू के हाथों में छोटी बच्ची का हाथ आया उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसे लगा अब वह इस मुसीबत से ज़रूर निकल जाएगी।

और किस्मत ने भी साथ दिया मीनू ने उस बच्ची को बचा लिया। किंतु उस बच्ची को बचाने में मीनू का हाथ भी झाड़ियों को पकड़ने के कारण लहूलुहान हो गया था। पर मीनू को छोटी बच्ची की खुशी के आगे अपना दर्द नहीं दिखा। उसने ज़मीन से थोड़ी मिट्टी उठाई और अपने ज़ख्मों पर लगा कर मुस्कुराने लगी। फिर मीनू उस बच्ची से पूछने लगी......."तू कौन है? यहांँ कैसे आ गई? तेरा घर कहांँ है?" अभी मीनू यही सब सवाल उस बच्ची से कर ही रही थी कि दूर कुछ शोर सुनाई दिया। जब वो पास आए तो पता चला वे लोग उस छोटी बच्ची के माता-पिता हैं। उन्होंने अपनी बच्ची को देखते ही उसे गले से लगा लिया। उस छोटी बच्ची ने अपने माता पिता को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो यहांँ फँसी और किस प्रकार मीनू ने जान पर खेलकर उसकी मदद की।

अपनी बच्ची को पाकर जैसे उनकी ज़िंदगी उनके पास लौट आई हो। उन्होंने मीनू से कहा...... तुमने हमारी बच्ची की जान बचाई है तुम्हें जो चाहिए हम तुम्हारे लिए करेंगे। पर मीनू ने बड़ी मासूमियत से कहा......"मेरी मांँ कहती है किसी की मदद के बदले कुछ लिया नहीं जाता"। मुझे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन उस बच्ची के माता-पिता नहीं माने वो जोर देकर उससे कहने लगे। तब मीनू ने अपनी इच्छा बताई कि उसे स्कूल में पढ़ना है, पर उसकी मांँ के पास इतने पैसे नहीं कि वो उसका दाखिला स्कूल में करा सके। मीनू की बातें सुनकर उस छोटी बच्ची के माता-पिता ने मीनू की मांँ से मिलने का निश्चय किया। उन्होंने मीनू से कहा क्या तुम हमें अपने घर ले जा सकती हो? अपनी मांँ से मिलवाने के लिए। मीनू झट से तैयार हो गई.... हांँ- हांँ क्यों नहीं...... माँ तुम सब लोगों से मिलकर बहुत खुश होगी। इतना कहकर मीनू उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई जहांँ मीनू की मांँ पहले से ही मौजूद थी। मीनू की मांँ मीनू को देखते ही डांटने लगी "तू बिना बताए कहांँ चली गई थी? मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूंँ, मीनू की मांँ का सारा ध्यान मीनू की तरफ़ ही था इसलिए मीनू के साथ आए लोगों को वो देख नहीं पाई। तब मीनू ने ही कहा.........."अरी, अम्मा! देख तो सही कौन आया है? तुझसे मिलने।"

"अ.... अ.... अ... आप?.... आप लोग कौन? और मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?" तब छोटी बच्ची के माता-पिता ने सारी कहानी मीनू की मांँ को बताई। यह वाक्या सुनकर मीनू की मांँ ने मीनू को गले से लगा लिया। फिर मीनू और उस छोटी बच्ची के ज़ख्मों पर मरहम भी लगाया। छोटी बच्ची के माता-पिता ने मीनू की मांँ से कहा........"हम मीनू की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाने को तैयार हैं" आप इसे स्कूल में दाखिला दिलवा दें। आपकी बच्ची बहुत होशियार है पढ़ लिख कर बहुत आगे बढ़ेगी। पहले तो मीनू की मांँ तैयार नहीं हुई किन्तु बहुत समझाने पर मान गई।

अब मीनू भी रोज़ स्कूल जाती है और बच्चों की तरह...... पीठ पर बसता, गले में पानी की बोतल और उसकी मांँ का दिया हुआ टिफिन...... मीनू को तो मानो उसकी खुशियों का आसमां मिल गया।

और अब मीनू का रोज़ का सवाल भी बदल गया.... अब मीनू कहती...... "अम्मा,अरी ओ अम्मा! मैं स्कूल से आ गई कहांँ है तू?"...... और इस सवाल के बदलने के साथ मीनू की जिंदगी भी बदल गई।

मीनू की मदद का उसे एक उचित इनाम मिला। इससे बेहतर इनाम शायद ही कुछ और होता मीनू और उसकी ज़िंदगी के लिए।



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